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आजमगढ़

पूर्वांचल के इस बाहुबली का राजनीतिक भविष्य है खतरे में, जानिए क्या है वजह

सपा को डर रमाकांत की वापसी से कई घड़े में बंट जाएगी पार्टी…

आजमगढ़Apr 19, 2018 / 02:58 pm

ज्योति मिनी

bahubali ramakant yadav political carrer in trouble

पूर्वांचल का ‘शेर’ कहे जाने इस बाहुबली का राजनीतिक भविष्य है खतरे में, जानिए क्या है वजह

आजमगढ़. लोकसभा चुनाव 2019 में अभी समय है, लेकिन मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र में सियासी उठापठक चरम पर है। जिले के राजनीति को केंद्र बने हुए हैं। बाहुबली रमाकांत यादव, जिन्हें उनके समर्थक शेरे पूर्वांचल भी कहते हैं। कभी पूर्वांचल के यादवों को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए बीजेपी ने इन्हें अपना स्टार प्रचारक बनाया था तो वर्ष 1993 से 2004 के बीच सपा ने प्रदेश की सत्ता हासिल करने के लिए इनका खुलकर उपयोग किया, लेकिन अब खुद रमाकांत यादव के भविष्य पर खतरा मड़राने लगा है।
कारण कि, रमाकांत यादव खुद सीएम योगी और गृहमंत्री पर लगातार हमले कर खुद को भाजपाइयों की नजर में बिलेन बना लिया है तो गठबंधन की चर्चा शुरू होने के बाद अब सपा भी उन्हें भाव नहीं दे रही है। चर्चा तो यहां तक है कि खुद उनका विधायक बेटा भी उनके साथ नहीं है। ऐसे में रमाकांत की मुसीबत और बढ़ती दिख रही है।
बता दें कि, रमाकांत के बारे में कहा जाता है कि उनके लिए पार्टी मायने नहीं रखती है बल्कि वे अपने दम में चुनाव जीतने का मद्दा रखते हैं। रमाकांत यादव ने इसे कई बार साबित किया है। 1984 में रमाकांत यादव ने कांग्रेस जे के टिकट पर चुनाव लड़कर पहली बार विधानसभा चुनाव जीता था तो वर्ष 2009 में पहली बार बीजेपी का लोकसभा में खाता खोला था। यहीं नहीं रमाकांत यादव 2004 में बसपा और इसके पूर्व सपा से लोकसभा पहुंचने सफल रहे थे। चंद्रजीत यादव के बाद रमाकांत यादव पहले ऐसे नेता है जो चार बार सांसद चुने गए है।
रमाकांत के बारे में कहा जाता है कि, उनके लिए कोई पार्टी मायने नहीं रखती उनकी अपनी महत्वाकांक्षा सर्वोपरि है। रमाकांत का सियासी सफर भी इस तरफ इशारा करता है। उन्होंने राजनीति में अपने ठेके के व्यवसाय को हमेशा सबसे उपर रखा है। कभी ठेके को लेकर उनका सपा से विवाद हुआ था तो आज बीजेपी सरकार में पोकलेन मशीन सीज होने के बाद रमाकांत सरकार पर हमलावर हैं। रमाकांत ने चार साल पहले कहा था कि, उनकी लाश भी सपा में नहीं जाएगी। लेकिन आज रमाकांत यादव की नजदीकियां सपा के साथ बढ़ गई है।
रमाकांत ने जिला पंचायत अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सपा की मदद कर सपा में जाने का रास्ता साफ किया। हाल में सपा महाराष्ट्र प्रांत अध्यक्ष अबू आसिम के साथ बैठक के बाद यह चार्चा और बढ़ गई। खुद अबू आसिम ने कहा कि वे रमाकांत को सपा शामिल करायेगे तो रमाकांत ने भी सिर्फ इतना कहा था कि अबू आसिम उनके बारे में बढिया ही सोचेंगे। इसके बाद एक सप्ताह पूर्व रमाकांत और प्रोफेसर राम गोपाल की मुलाकात के बाद यह चर्चा और बढ़ गई।

इस चर्चा ने नए समीकरण को जन्म दिया। रमाकांत के सपा में जाने की चर्चा के बीच टिकट के कई दावेदार सामने आ गये लेकिन अंदरखाने से जो खबर आ रही है वह रमाकांत यादव के लिए अच्छी नहीं मानी जा रही है। पहले सपा को लगाता था कि मुलायम सिंह यादव के परिवार को छोड़ दिया जाय तो रमाकांत के खिलाफ पार्टी के पास ऐसा प्रत्याशी नहीं है जो बाहुबली को मात दे सके लेकिन बसपा गठबंधन की चर्चा शुरू होने के बाद सपा इस स्थित में आ गयी है कि वह किसी को भी मैदान में उतारकर दलित, यादव और मुस्लिम मतों से जिता सके। यहीं वजह है कि अब सपा नेतृत्व रमाकांत को बहुत अधिक भाव नहीं दे रहा है।
सूत्रों की माने तो सपा चाहती है कि रमाकांत विधानपरिषद चुनाव में अपने पुत्र विधायक अरूणकांत से सपा के पक्ष में मतदान कराए लेकिन अरूणकांत रमाकांत की सुनने के लिए तैयार नहीं है। कारण कि रमाकांत यादव ने निकाय चुनाव में अरूणकांत की मां सत्यभामा के माहुल से चुनाव लड़ने का विरोध किया था। हालत यह है कि बेटा बाहुबली के साथ नहीं है और सपा को अब उनकी उतनी जरूरत महसूस नहीं हो रही है और भाजपा से उनका रिश्ता इतना खराब हो चुका है कि कोई उनके साथ मंच तक शेयर करने को तैयार नहीं है। वहीं सपा को इस बात का भी डर है कि रमाकांत के आने के बाद सपा कई घड़े में बट जाएगी। कारण कि पार्टी में पहले से बलराम यादव जैसा उनका विरोधी मौजूद है। ऐसे में रमाकांत यादव का सियासी भविष्य ही खतरे में पड़ता दिख रहा है।

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