‘जीवन में राम’ भाग 2: खर-दूषण हों या शूर्पणखा, दण्डित होकर भी श्रीराम की निन्दा नहीं करते
सिद्धपीठ श्रीहनुमन्निवास के आचार्य मिथिलेश नन्दिनी शरण की आलेख श्रृंखला जीवन में राम भाग 2, श्रीराम की शरण में ही सौंपा अंत समय में बाली ने अपने पुत्र अंगद को…
वाल्मीकि रामायण के अनुसार दिव्य गुणों से युक्त, पराक्रमी, भाइयों में ज्येष्ठ और श्रेष्ठ आचरण से युक्त, मंत्रिमण्डल के प्रिय और प्रजा के हितैषी श्रीराम को महाराज दशरथ ने राजगद्दी देने का विचार किया- ‘तमेवं गुणसम्पन्नं रामं सत्यपराक्रमम्।ज्येष्ठं श्रेष्ठगुणैर्यक्तं प्रियं दशरथ: सुतं॥ प्रकृतीनां हितैर्युक्तं प्रकृतिप्रियकाम्यया। यौवराज्येन संयोक्तुमैच्छत्प्रीत्या महीपति:॥’
पिता के वचनों की रक्षा के लिए वनगमन का प्रसंग उपस्थित होने पर विमाता कैकेयी का सारा षड्यंत्र समझते हुए भी कहीं मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते। असाधारण सौशील्य का प्रदर्शन करते श्रीराम तब भी पिता दशरथ या माता कैकेयी के विरुद्ध कुछ नहीं कहते जबकि सारे समाज में उनके कृत्य की आलोचना हो रही थी। श्रीराम के इस शील स्वभाव से बिखरता हुआ परिवार बच जाता है। शील और सौन्दर्य के मणिकांचन योग में चरित्र का जो गुण व्यक्त होता है, वह श्रीराम के मित्रों को ही नहीं अपितु शत्रुओं को भी मुग्ध करता है।
धनुर्भंग से क्रुद्ध हुए परशुराम, रणभूमि में सामने खड़े खर-दूषण, यहां तक कि स्वयं शूर्पणखा दण्डित होकर भी श्रीराम की निन्दा नहीं करतीं। शूर्पणखा तो श्रीराम के रूप-शील और चरित्र की रावण के सम्मुख प्रशंसा करते हुए उन्हें युवा, रूपसम्पन्न, सुकुमार, महाबली, कमलनयन और जितेन्द्रिय कहती है। श्रीराम के पराक्रम में निहित विवेक व उदारता उनके शत्रुओं का बल ही नहीं, दिल भी जीत लेते हैं। श्रीराम के हाथों मृत्यु को पाकर भी बाली का उनके प्रति विश्वास इतना गहरा है कि वह अपने पुत्र अंगद को श्रीराम की शरण में सौंपता है। गोस्वामी तुलसीदास इसी विशेषता को रेखांकित करते हुए कहते हैं – ‘बैरिउ राम बड़ाई करहीं।’
प्रभु स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए श्रीयामुनाचार्य जी महाराज उन्हें समस्त कल्याणगुणों का समुद्र कहते हैं – ‘हे प्रभो! आप प्रियजनों के अधीन हैं, उदार हैं, गुणवान् हैं, सरल हैं, पवित्र हैं, कोमल हैं, दयालु हैं, माधुर्य से पूर्ण हैं, अविचल हैं, समदर्शी हैं, उपकारी हैं, उपकार मानने वाले हैं। निष्कर्षत: आप स्वाभाविक रूप से समस्त दिव्य गुणों के सागर हैं।’ श्रीराम के दिव्य गुणों का सतत चिंतन मनुष्य में इन गुणों का स्वाभाविक विकास करता है। इसीलिए श्रीरामचरित की मंगलमयी धारा भारत में युगों से प्रवाहित है।