अयोध्या

Ram Mandir Katha: कैसी थी अयोध्या और कौन थे श्रीराम के पूर्वज?

Ram Mandir Katha: आज कथा की इस कड़ी में हम आपको राम से पहले की अयोध्या और साथ ही राम के पूर्वजों के बारे में बताएंगे। इस लेख के माध्यम से आप राम और राम की अयोध्या से जुड़ी कई ऐसी जानकारियों से अवगत होंगे, जिसे आप शायद ही जानते हों। पढ़िए मार्कंडेय पाडेंय की विशेष रिपोर्ट…

अयोध्याSep 20, 2023 / 11:52 am

Markandey Pandey

कैसी थी अयोध्या और कौन थे श्रीराम के पूर्वज?

आकारो ब्रह्म रूपस्य, घकारो रुद्र रूपते।
यकारो विष्णु रूपस्य, अयोध्या नाम राजते।।
…ब्रह्मा इस नगरी की बुद्धि से, विष्णु चक्र से और मै स्वयं अपने त्रिशूल से अयोध्या की रक्षा करता हूं। अयोध्या शब्द में ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव का निवास है। कैलाश पर्वत पर भगवान शिव ने माता पार्वती को अयोध्या की महिमा और इतिहास बताया। महादेव शिव ने बताया कि अयोध्या पुरी सभी नदियों में श्रेष्ठ सरयू नदी के दाहिने किनारे बसी हुई है। इसके महात्म्य का वर्णन करने की क्षमता किसी में नहीं है। अयोध्या के माहात्म्य का अंदाजा पुराणों में लिखित इस कथा से लगाया जा सकता है।
जिस समय दुनिया में मानचित्र का भी आविष्कार नहीं हुआ था, उस समय भारत भूमि पर सभ्यता का सूर्य अपनी किरणें बिखेर रहा था। उस समय भारत की राजधानी अयोध्या थी जिसका प्रमाण है सृष्टि रचना का इतिहास। चौल्डियन सभ्यता के अनुसार पृथ्वी की उम्र करीब 20 लाख वर्ष है, जबकि एबीलोनियन के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 5 लाख वर्ष है। हमारे धर्मग्रंथों में विस्वान सूर्य को कहा जाता है, और इसे सूर्य का पुत्र भी कहा जाता है। वैवस्तमनु इसी सूर्यनारायण वंश के थे जिसके नाम पर सूर्य वंश आया। आज भी सराय नाम का गांव अयोध्या में विद्यमान है जहां इस वंश के लोग रहते थे।

मार्शमैन लिखते हैं कि….
अयोध्या के राजा सगर बहुत प्रतापी और महाबली थे उनके नाम पर ही समुद्र का नाम सागर पड़ा है। उनकी पत्नी महारानी शैव्या के पुत्र रोहित के साथ काशी में जाकर डोम के हाथ बिकने वाले सत्यवादी राजा हरिशचंद्र की जन्मभूमि और पतित पावनी गंगा जी को धरती पर लाने वाले महाराजा भगीरथ अयोध्या के राजा थे। इतना ही नहीं, मनुष्यों से लेकर देवताओं की सहायता करने वाले महाराजा दधीचि अयोध्या के सम्राट थे जिन्होंने अपनी हड्डियों तक का जन कल्याण में दान कर दिया था। इसी वंश में भगवान का राम का जन्म हुआ था।
आठ नामों से जानी जाती है अयोध्या
पृथ्वी पर सात मोक्षदायिनी नगरों में प्रथम नगरी अयोध्या को महाराजा मनु ने बसाया था। सरयू नदी के किनारे यह नगरी 12 योजन (144 किमी.) लंबी और तीन योजन (36 किमी.) चौड़ी थी। मान्यता है कि अयोध्या पहले भगवान बैकुंठनाथ की थी, इसे महाराजा मनु पृथ्वी पर अपना प्रधान कार्यालय बनाने के लिए उनसे मांगकर लाये थे। बैकुंठ से लाकर मनु ने अयोध्या को पृथ्वी पर अवस्थित किया और फिर सृष्टि की रचना की। इस पावन भूमि की सेवा करने के बाद महाराज मनु ने इसे महाराजा इच्छवाकु को दे दिया था। प्राचीन ग्रंथों में अयोध्या को हिरण्या, चिन्मया, जया, साकेत, विशाखा, कौशलपुरी, अपराजिता और अवधपुरी भी कहा गया है।

यूपी से उड़ीसा तक था कौशल साम्राज्य
कौशल साम्राज्य एक समृद्ध संस्कृति वाला प्राचीन भारतीय साम्राज्य था, जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी उडि़सा तक फैला हुआ था। उत्तर वैदिक काल के दौरान एक छोटे राज्य के रूप में उभरा, जिसका संबंध पड़ोसी विदेह से था। गोंडा के समीप सेठ-मेठ में आज भी इसके भग्नावशेष (टूटी-फूटी वस्तु के टुकड़े) मिलते हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व यहां का प्रमुख नगर साकेतनगर अयोध्या हुआ करता था जो भगवान राम की जन्मभूमि है। अयोध्या का अर्थ है जिससे युद्ध न किया जा सके। वैसे तो ब्रम्हपुराण, विष्णु पुराण, वाराह पुराण, श्रीमदभागवत, वायु पुराण, मत्स्य पुराण और ब्रम्हांड पुराण में अयोध्या की चर्चा की गई है लेकिन स्कंद पुराण और पद्मपुराण में अयोध्या की विस्तार से वर्णन किया गया है।
सरयू नदी में मिलते हैं सबूत
अयोध्या के किनारों को स्पर्श करती सरयू नदी में पैसा ढूंढने वाले पनडूब्बों, मल्लाहों, अयोध्या के दरजी, सर्राफों, बर्तन वालों के पास से अनेक प्रकार की अदभुत वस्तुएं प्राप्त होती है जो अयोध्या की महानता और प्राचीनता की गवाही देती हैं। जैसे सरयू नदी में मल्लाहों ने अशोक मौर्य का सिक्का पाया जो चांदी का था और जिसके एक तरफ मेरु पर्वत बना हुआ है। सूर्य चिंह बना हुआ सोने का सिक्का मिला है जो विक्रमादित्य के जमाने का है। इसी तरह त्रिशूल बना चांदी का सिक्का भी सरयू नदी से मिला है, कमल पर बैठी माता लक्ष्मी का सिक्का भी मिला है। शिवलिंग की रक्षा करते नागदेवता का तांबे का सिक्का और घोड़े पर सवार राजा की मूर्ति वाला सोने का सिक्का, गरुण पक्षी का सिक्का आदि मिला है। इसके अलावा सरयू और उसकी रेत में दबे ऐसे सैकड़ों सबूत मिले हैं जो हजारों और लाखों साल पुराने इतिहास की गवाही देते हैं।
महाराजा रघु के नाम से रघुवंश और रघुनंदन
अयोध्या सूर्यवंशी सम्राटों की राजधानी रही है। सूर्यवंश में ही प्रतापी राजा रघु हुए जो महाराज दिलीप के पुत्र थे। राजा रघु से यह वंश रघुवंश कहलाया। इस वंश मे इक्ष्वाकु, ककुत्स्थ, हरिश्चंद्र, मांधाता, सगर, भगीरथ, अंबरीष, दिलीप, रघु, दशरथ, राम जैसे प्रतापी राजा हुए हैं। रघुवंशियों के कुछ राजाओं का वर्णन रघुवंशकाव्य में दिया गया है। भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग पर्व में वर्णित है कि श्वेत वाराह नामक कल्प में ब्रह्मा जी के वर्ष में मौन दिन में सुप्त मुहूर्त के अवसर पर वैवस्वत मनु का जन्म हुआ था। वैवस्वत मनु ने सरयू नदी के तट पर सौ वर्ष तक तप किया। तपस्या से उन्हें इक्ष्वाकु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके पुत्र का नाम विकुक्षि था। सौ वर्ष तक तपस्या करने पर वह स्वर्ग लोक चला गया। उसके पुत्र का नाम रिपुंजय था। रिपुंजय के पुत्र का नाम कुकुत्क्षथ बताया गया है। उसका पुत्र अनेनौस और उसके पुत्र का नाम पृथु था।
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भगवान राम के पूर्वज

भगवान राम के पूर्वज राजाओं और उनके पुत्रों में बिम्बगशय, अर्दनाम भद्राख युवनाश्व सत्वपाद, अवस्थ वृहदस्य, कुवलयावश्यक भिकुम्भक, संकटाश्य, प्रसेनजिनु तद्रवाणाश्व, मान्यता, पुरुकुत्स चिशतश्व, अनरणय के नाम उल्लेखनीय हैं। अनरण्य को सतयुग के द्वितीय चरण का राजा बताया गया है। इसने आईस सहस्र वर्ष तक राज्य किया था। इसके पश्चात पृषदश्व, हर्तश्व, वासुमान तथा तात्विधन्वा के नाम बताए गए हैं। द्वितीय पाद की समाप्ति पर त्रिधन्वा, त्र्यारणय, त्रिशंकु, रोहित, हवरीत जंचुभुप, विजय, तद्ररूक तथा उसका पुत्र सगर बताए गए हैं। वैवस्वत आदि राजाओं के काल में मणि, स्वर्ण आदि की समृद्धि थी। सतयुग के तृतीय चरण के मध्य में सगर नाम के राजा हुए। वह शिव के परम भक्त थे और सदाचारी भी थे। उस सगर राजा के पुत्रों को सागर कहा जाने लगा।

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