अयोध्या के उस जगह पर जहाँ तथाकथित सुभाषचंद्र बोस के रहने की बात की जाती रही है मगर सुभाष के रूप में नहीं बल्कि गुमनामी बाबा के रूप में वर्षो पहले इस बारे में दाखिल एक रिट याचिका को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इन्ही सवालों का जबाब ढूंढने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को एक जांच कमेटी बनाने के निर्देश दिए था लेकिन आज भी इस पर्दे से सच सामने नही आ सका है।
गुमनामी बाबा 70 के दशक में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले से अयोध्या के रास्ते फैजाबाद आये थे पहली बार उनकी और लोगो का ध्यान 1977 में तब गया जब अयोध्या के रहने वाले वीरेन्द्र पाण्डेय नामक एक शक्श ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक गणेश्वर झा से उनकी गतिबिधिया संदिग्ध होने की शिकायत की थी तत्कालीन पुलिस कप्तान मिलने गए लेकिन मुलाक़ात ना होने पर पहरा बिठा दिया लेकिन कहते है जब वह वापस अपने बंगले पर पहुंचे तो उनका स्थानान्तरण आदेश इन्तजार कर रहा था।
आजाद हिन्द फ़ौज की लीला राय भी उनसे मिलने आई थी गुमनामी बाबा के पास से मिले कई दस्तावेज और सामग्री उनके नेताजी होने की तरफ इशारा करती है मगर वह हमेशा परदे के पीछे रहा करते थे। और उनसे मिलना सिर्फ आम आदमियों के लिए ही नहीं बल्कि उस मकान मालिक के लिए भी मुश्किल था इस बारे में कोलकता हाईकोर्ट के आदेश पर गठित मुखर्जी आयोग ने भी इशारा किया था लेकिन उन्होंने गुमनामी बाबा को नेताजी होने की कोई रिपोर्ट नहीं दी थी लेकिन उनकी सामग्रियों को अयोध्या के जिला कोषागार के डबल लाक में रख दिया था जिसकेेेे बाद इन सामानों को अयोध्याा के अंतरराष्ट्रीय राम कथा संग्रहालय में रखा गया है। बहुत से लोगो का मानना है कि गुमनामी बाबा ही नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे और यही कारण है कि अयोध्या के सरयू तट पर बनी गुमनामी बाबा की को लोग महा नायक सुभाष चन्द्र बोस की मानते है और आज भी 23 जनवरी के दिन लोग श्रधा से सर झुकाते हैं !