अपनी किरकिरी करा चुकने के बाद तालिबान ने सरकार में महिलाओं को शामिल करने की बात कही है। तालिबान के प्रवक्ता और उप सूचना मंत्री जबिउल्लाह मुजाहिद के अनुसार, जल्द ही महिलाओं को भी सरकार में शामिल किया जाएगा। मुजाहिद ने बताया कि यह अभी अंतरिम सरकार है। शरिया कानूनों के सम्मान के लिए महिलाओं को भी पद दिए जाएंगे। यह एक शुरुआत है और हम महिलाओं के लिए भी सरकार में पद तलाशेंगे।
जबिउल्लाह ने कहा कि महिलाएं भी सरकार का हिस्सा हो सकती हैं। यह दूसरे चरण में हो सकता है। इससे पहले, तालिबान ने मंगलवार को अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार की घोषणा की थी। इसमें किसी भी महिला को मंत्री के तौर पर शामिल नहीं किया गया था। इसके बादसे ही दुनियाभर में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि तालिबानी शासन में अफगानिस्तान की महिलाओं की स्थिति खराब होने वाली है। शरिया कानून के तहत सरकार चलाने को लेकर भी दुनियाभर में कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं।
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अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार का गठन भले ही हो चुका है, लेकिन कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद के लिए सबसे बड़ी चुनौती सभी नस्लीय समूहों को साधने की होगी। 33 सदस्यीय कैबिनेट में 90 प्रतिशत मंत्री केवल पश्तून समुदाय से हैं। इसमें हजारा समुदाय का एक भी मंत्री नहीं है। सरकार में ताजिक और उज्बेक समुदाय से भी पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। सबसे अधिक 42 प्रतिशत आबादी के साथ पश्तून समुदाय शुरू से ही अफगान की राजनीति में दबदबा कायम किए हुए है।
सुन्नी मुस्लिम वाले पश्तून समुदाय के 33 में से 30 लोगों को मंत्री बनाया गया है। इसमें प्रधानमंत्री अखुंद, उप प्रधानमंत्री अब्दुल गनी बरादर भी शामिल हैं। पश्तून समुदाय के लोग पश्तो भाषा बोलते हैं। अधिकतर तालिबानी लड़ाके भी इसी समुदाय से हैं। इसमें हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी का नाम भी इसमें शामिल है।
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वहीं, अफगानिस्तान में हाजरा समुदाय की आबादी दस प्रतिशत है। ये शिया मुस्लिम हैं और लंबे समय से अफगानिस्तान में हिंसा और भेदभाव के शिकार होते रहे हैं। इसके किसी भी सदस्य को कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है।