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एशिया

भारत के चुनाव परिणाम दक्षिण एशिया की राजनीति पर किस तरह डालेंगे असर ?

पड़ोसी मुल्क टकटकी लगाए हर गतिविधियां देख रहे हैं
सभी पड़ोसी देश भारत की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक उठापटक से जुड़े हैं
नई सरकार से दक्षिण एशियाई मुल्कों के रिश्तों में आएंगे बदलाव

May 21, 2019 / 04:08 pm

Mohit Saxena

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भारत के चुनाव परिणाम दक्षिण एशिया की राजनीति पर किस तरह डालेंगे असर ?

नई दिल्ली। भारत में लोेकसभा के चुनाव परिणाम हमारे पड़ोसी मुल्कों के लिए भी अहम हैं। दक्षिण एशिया की राजनीति में यह परिणाम बड़ी अहमियत रखते हैं। आखिर भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश में सत्ता के शीर्ष पर बड़े बदलाव होने की संभावना है। ऐसे में हमारे सभी पड़ोसी मुल्क टकटकी लगाए हर गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं। बीते पांच सालों में मोदी की विदेश यात्राएं चर्चा की विषय बनी रहीं। विपक्ष ने भी इन यात्राओं को लेकर कई सवाल उठाए हैं। अब सत्ता में उनकी वापसी को लेकर विदेशी मुल्क भी पसोपेश में हैं। मोदी सरकार के आने से बनी बनाई रणनीति पर काम करना उनके लिए आसान होगा। अगर दूसरी सरकार आती है तो नए सिरे से रिश्तों को कायम करना होगा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पाकिस्तान, श्रीलंका, चीन, नेपाल, बांग्लादेश और मालदीव शामिल हैं। यह सभी पड़ोसी देश भारत की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक उठापटक से जुड़े हुए हैं।

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ड्रैगन को भी काबू में किया

मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल को देखें तो चीन से डोकालाम के मुद्दे पर मतभेद सामने आए। कई दिनों तक चीनी सेना डोकालाम में डेरा जमाए रही। भारत की कूटनीति के आगे बाद में चीन को झुकना पड़ा और चीनी सेना को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद चीन का रूख अचानक भारत की तरफ बदलने लगा। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और वह मोदी सरकार से सामने कई समझौते के तहत बातचीत को तैयार हो गए। इस दौरान पहली बार चीन भारत की रणनीति के आगे पस्त हो गया। बीते एक दशक से पाकिस्तान के आतंकी सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के खिलाफ वीटो करने वाले चीन को अपने सुर बदलने पड़े। अमरीका के साथ यूरोपीय देशों के दबाव में उसने मसूद से वीटो हटा लिया।
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श्रीलकां और बांग्लादेश का हर मौके पर दिया साथ

भारत अपने पड़ोसी देशों में श्रीलंका और बांग्लादेश को लेकर काफी संवेदनशील रहा है। बांग्लादेश के साथ सीमा विवाद को लेकर भारत ने साकारत्मक रुख अपनाया है। भारत और बांग्लादेश ने औपचारिक रूप से 1 अगस्त, 2015 को 162 एन्क्लेव का आदान-प्रदान किया। सदियों पुरानी क्षेत्रीय विसंगति को समाप्त किया गया और 1950 के दशक में शुरू हुई भूमि और जनसंख्या विनिमय की प्रक्रिया को पूरा किया। वहीं एनआरसी (रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस) के अंतर्गत घुसपैठ को रोकने के लिए कानून बनाए। मोदी सरकार ने असम और पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशियों को घुसपैठ से रोकने का प्रयास किया। इसी तरह श्रीलंकाई सरकार के साथ भी भारत के बेहतर रिश्ते रहे हैं। हाल ही में श्रीलंका में हुए आतंकी हमले में 250 से अधिक लोग मारे गए थे। बताया जा रहा है कि इस हमले के पहले ही भारत ने श्रीलंका को इनपुट दिए थे। भारत ने चेताया था कि ऐसे हमले हो सकते हैं। लेकिन इस चेतावनी को नजरअंदाज किया गया।

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भारत के बजाय चीन के करीब जा रहा नेपाल

भारत का नेपाल के साथ अलग तरह का रिश्ता रहा है। नेपाल की सियासत से लेकर विदेश नीति तक भारत का प्रभाव काफी मजबूत रहा है। मगर हाल के दिनों में नेपाल और चीन काफी करीब आए हैं। चीन की सीपीईसी योजना का वह भागीदार बन गया है। बदले में चीन उसे आर्थिक मदद दे रहा है। मोदी सरकार ने नेपाल के साथ अपने संबंध बेहतर करने लिए भरपूर कोशिशें की है। नेपाल में 2015 में आए विनाशकारी भूकंप में भारत की ओर से सबसे पहले सहायता पहुंची थी। भारत ने नेपाल में आई इस त्रासदी से निपटने के लिए बढ़ चढ़कर मदद की। अभी तक भारत की कई कंपनियां यहां पर निर्माण कार्य में लगी हुईं हैं। कई परियोजना के तहत नए घर तैयार किए जा रहा हैं। प्रधानमंत्री मोदी और नेपाली पीएम केपी ओली की कई मुलकातें हो चुकी हैं। भारत से नेपाल के रिश्ते पुराने हैं। नेपाल की एक बड़ी आबादी भारत में रोजगार से जुड़ी है। नेपाल और भारत के बीच आवाजाही के लिए वीजा की जरूरी नहीं है। नेपाल अपनी जरूरत का अधिकतर सामान भारत से लेता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 20 लाख से अधिक नेपाली नागरिक हैं। वहीं चीन और हांगकांग में रहने वाले नेपाली लोगों की संख्या 20 हजार से अधिक नहीं है।

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यमीन के शासन के दौरान तनाव देखने को मिला

भारत और मालदीव के संबंधों में पूर्ववर्ती अब्दुल्ला यमीन के शासन के दौरान तनाव देखने को मिला था। उन्हें चीन का करीबी माना जाता है। भारतीयों के लिए कार्यवीजा पर पाबंदी लगाने और चीन के साथ नये मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण था। यमीन ने इस साल पांच फरवरी को देश में आपातकाल की घोषणा की। इसके बाद भारत और मालदीव के रिश्तों में और कड़वाहट आ गई थी। मालदीव के नए राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से मोदी ने करीबी दिखाई। हिंद महासागर में स्थित मालदीव कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से भारत के लिए काफी अहम है। यहां से भारत के समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा पर नजर रखी जा सकती है। भारत युद्धपोत, हेलीकॉप्टर, रडार के अलावा कई परियोजनाओं के लिए मालदीव को सहायता देता रहा है।

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लोकसभा चुनाव के परिणामों का इंतजार

पाकिस्तान बेसब्री से भारत में हो रहे लोकसभा चुनाव के परिणामों का इंतजार कर रहा है। आर्थिक तंगी और आतंकवाद के मामले में पूरी दुनिया में बदनामी झेल रहे पाकिस्तान के पास अब भारत से ही उम्मीद की किरण दिखाई देती है। इमरान बीते काफी समय से मोदी सरकार से बातचीत का प्रस्ताव रख रहे हैं। उनका कहना है कि कश्मीर का मुद्दा सुलझाने के लिए भारत को बातचीत की मेज पर आना चाहिए। वहीं भारत का कहना है कि वह तब तक बातचीत के लिए कदम नहीं बढ़ाएगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पर गोलीबारी बंद नहीं करेगा। इमरान के लिए यह दुविधा की स्थिति है, क्योंकि अमरीका सहित सभी यूरोपीय देश भी उसका साथ छोड़ रहे हैं। सीमा से सटा चीन भी पाकिस्तान के बजाय अपने हित साध रहा है। ऐसे में उसके सामने पड़ोसी भारत ही मात्र विकल्प है जो उसे मुसीबत से उबार सकता है।

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