ईसागढ़ तहसील का अनघोरा दीवान गांव। जहां 9वीं-10वीं शताब्दी के तीन मंदिर हैं और बहुत से मंदिरों के अवशेष ही बचे हैं। गांव से करीब दो किमी दूर जंगल की तरफ प्राचीन देवी मंदिर है, जो महिषासुर मर्दिनी का एक मात्र मंदिर था, जहां अब सिर्फ ढ़ांचा रह गया है और वहां कोई भी मूर्ति नहीं है। कदवाया के हेमंत दुबे और अन्य लोगों का कहना है कि 25-30 साल पहले यहां पर बड़ी संख्या में मूर्तियां थीं, लेकिन मूर्तियां कहां गईं किसी को पता नहीं। वहीं अन्य मंदिरों के फर्स पर लगे अभिलेख भी गायब हो गए हैं। वहीं गांव में शिव मंदिर के पास 10वीं शताब्दी की 10 फीट ऊंची प्रतिमाएं हैं और कई प्रतिमाएं आसपास बिखरी पड़ी हुई हैं।
लगातार पत्थर भी हो रहा गायब
अनघोरा दीवान गांव के पास ही एक छोटा सा प्राचीन कुंड है और उसके चारों तरफ चार मंदिरों के अवशेष हैं और इन मंदिरों में भी मूर्तियां नहीं बची हैं। वहीं विभिन्न कलाकृतियों से सजे इन मंदिरों के पत्थर भी गायब हो रहे हैं। यह सिर्फ एक जगह की बात नहीं, बल्कि लोगों के मुताबिक जिले में कई अन्य जगहों पर भी पुरा संपदा की यही स्थिति है। इसके अलावा प्राचीन इमारतों की ऐतिहासिकता से अनजाने में लोग छेड़छाड़ कर रहे हैं।
करीब 10-12 साल पहले कदवाया के एक मंदिर से कुछ मूर्तियां चोरी हुई थीं, जो बाद में सकर्रा गांव के तालाब में पड़ी मिली थीं। इसके अलावा करीब 25 साल पहले ईंदौर के मंदिर से भी मूर्तियां चोरी होने का मामला सामने आया था। हालांकि कदवाया के मंदिर की मूर्तियां तो पुलिस को मिल गई थीं, लेकिन लोगों का कहना है कि ईंदौर से गायब हुई प्राचीन मूर्तियों की कोई जानकारी नहीं मिल सकी।
बिखरी पड़ी पुरासंपदाः 70 किमी क्षेत्र में 20 स्थानों पर है पुरासंपदा
राजीव जैन
अशोकनगर. जिला मुख्यालय से 10 किमी दूर स्थित तूमेन गांव में रास्तों व खेतों पर डेढ़ हजार साल पुरानी मूतियां व कलाकृतियां पड़ी हुई हैं। वर्ष 2007 में तत्कालीन कलेक्टर ने कुछ मूर्तियों को उठवाकर गांव में ही एक कमरे में रखवा दिया था, लेकिन आज भी बड़ी संख्या में मूर्तियां खुले में पड़ी हुई हैं। स्थिति यह है कि ब्राह्मी लिपि के अभिलेख वाले खंभों को लोगों ने मवेशी बांधने वाली जगहों पर लगा दिया है, तो कई मूर्तियां व कलाकृतियां लोगों ने अपनी दीवारों में चुनवा लीं। पूर्व में तूमेन का नाम तुंबवन था और यह उज्जैन से काशी जाने वाले रास्ते का मुख्य केंद्र था। जहां विष्णु, शिव, कार्तिकेय, गणेश, बराह, जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं और स्तूपों के भी अवशेष हैं। यह सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि जिले में करीब 20 स्थानों पर ऐसी ही पुरा संपदा बिखरी पड़ी हुई है।
प्रदेश में पुरासंपदा के मामले में अशोकनगर सबसे समृद्ध जिला है, जहां 70 किमी क्षेत्र में पुरा संपदा बिखरी पड़ी हुई है। रास्तों, गलियों, खेतों व जंगलों में 6वीं से 12वीं शताब्दी तक की मूतियां व कलाकृतियों पड़ी हुई दिखती हैं, लेकिन इन्हें सहेजने पर किसी का कोई ध्यान नहीं है और इसी तरह अनदेखी जारी रही तो यह पुरा संपदा नष्ट हो जाएगी।
इन स्थानों पर भी पुरा संपदा की भरमार
सकर्रा गांव: करीब एक हजार साल पुराने चार मंदिर हैं, जो क्षतिग्रस्त हो गए हैं। पत्थर जमींदोज हो रहे हैं, तालाब किनारे जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं पड़ी हुई हैं।
ईंदौर गांव: 8वीं शताब्दी का तारकाकार शैली में बना गरगज मंदिर है, इस मंदिर पर अमेरिका के प्रोफेसर ने आर्टीकल लिखा था, 100 फीट ऊंचे इस मंदिर से हर साल एक पत्थर नीचे टपक जाता है, गांव में 8वीं शताब्दी की मूर्तियां खुले में पड़ी हुई हैं।
बख्तर गांव: एक हजार साल पुराने शिव मंदिर में मूर्ति तो नहीं हैं, लेकिन पीले पत्थर से बना यह मंदिर धूप में स्वर्ण सा चमकता है, यह पत्थर अब चोरी हो रहे हैं। जिस पर एक यात्री का 400 साल पुराना अभिलेख मिला था।
तिलहारी गांव: जंगल में झिर क्षेत्र में झरना निकला हुआ है, जहां पहाड़ी पर पाषण औजार मिले और शैलचित्र बने हुए हैं। गेरुआ रंग के इन शैलचित्रों को लोग पत्थरों से खरोंचकर मिटा रहे हैं।
मल्हारगढ़ गांव: करीब 500 साल पुराना किला है, जो पूरी तरह से क्षतिग्रस्त है, किले में स्वीमिंग पुल नुमा पानी का स्रोत बना है, जो चारों तरफ से आकर्षक नक्काशी से घिरा हुआ है, लेकिन इसके सरंक्षण पर भी किसी का ध्यान नहीं है।
सीतामढ़ी: शिवजी का बड़ा और प्राचीन मंदिर है, परिसर में बड़ी संख्या में मूर्तियां व पुरातन अवशेष बिखरे पड़े हुए हैं, जिन्हें सहेजने पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
सहेजने पर नहीं है कोई ध्यान
प्रदेश में अशोकनगर जिला पुरातन संपदा के मामले में समृद्ध है, जिले में जगह-जगह पुरातन संपदा बिखरी पड़ी हुई है, जो 6वीं से 11वीं शताब्दी की है। यदि इन्हें संरक्षित कर प्रमोट करें तो जिले में पर्यटन की संभावनाएं हैं। इसके लिए प्रशासन व जनप्रतिनिधियों को गंभीरता दिखाते हुए प्रयास करने की जरूरत है।
-हेमंत दुबे, पुरातत्वविद, सागर विश्वविद्यालय ने उत्खनन किया, तो निकली पुरातन संपदा
पुरातत्वविद हेमंत दुबे के मुताबिक वर्ष 1971-72 में डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय ने तूमेन में उत्खनन कराया तो गुप्तकालीन व उत्तर गुप्तकालीन पुरा अवशेष मिले थे। इसमें काले पोलिसयुक्त मिट्टी के बर्तन, अभ्रक मिले बर्तन, कुमार गुप्त प्रथम के शासन का गुप्त संवत 116 के शिलालेख, सिंहस्थ लिखी हुई मिट्टी की सील, तांबा, चांदी व कांसे के सिक्के, 8वीं शताब्दी की विष्णु प्रतिमा, 7वीं शताब्दी की नटराज प्रतिमा मिली थी, लेकिन इसके बावजूद भी भारतीय पुरातत्व सर्वे, राज्य पुरातत्व विभाग व जिला प्रशासन ने बिखरी पड़ी पुरासंपदा को सहेजने पर ध्यान नहीं दिया।
पुरातन संपदा को पहुंचा रहे नुकसान
6वीं से 11वीं शताब्दी तक की पुरातन कलाकृतियों को लोगों ने घरों की दीवारों में चुनवा लिया है तो कहीं यह अभिलेख गाय-भैंस बांधने का खूंटा बन गए हैं। साथ ही कई प्राचीन शिलालेखों को लोगों ने पेंट्स से पोत दिया है तो कुछ मंदिरों के फर्स को हटाकर लोगों ने टाइल्स लगवा दी हैं। वहीं शैलचित्रों को लोग पत्थरों से खरोंच रहे हैं।
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