राजनीतिक विशेषज्ञ के मुताबिक, स्मृति ईरानी को उनका बड़बोलापन ले डूबा। लोगों में स्मृति ईरानी के खिलाफ अंदर ही अंदर गुस्सा था। उन्हें सबक सिखाने के लिए लोगों ने वोट को हथियार बनाया।
आइए आपको बताते हैं आखिर क्यों हारीं स्मृति…
अमेठी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। राजीव गांधी, सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी यहां से जीतकर संसद पहुंचते रहे हैं। 1999 से लगातार अमेठी में गांधी परिवार के सदस्य ही जीत रहे थे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल को हार का सामना करना पड़ा। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 55 हजार वोट से चुनाव जीत लिया। इस जीत ने स्मृति ईरानी का कद काफी बढ़ा दिया। स्मृति ने अमेठी में अपना घर भी बनाया, लेकिन लोगों के दिल में घर नहीं बना सकीं। आम लोगों का इनसे मिलना आसान नहीं था। इसके उलट, केएल शर्मा बहुत सादगी वाले व्यक्ति हैं। आम नागरिक की तरह वह चौक-चौपाटी पर उठना-बैठना करते हैं। शायद इसलिए लोगों ने यह सोचा कि क्यों न आम आदमी को चुना जाए।
कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज करती रहीं
राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि स्मृति का कार्यकर्ताओं के बीच उठना-बैठना कम हो गया था। बस कुछ खास कार्यकर्ताओं के साथ ही उनका सीधा संपर्क था। इसकी वजह से निचले स्तर के कार्यकर्ताओं ने दिल से जुड़कर काम नहीं किया।
गांधी परिवार का स्मृति ने बनाया मजाक
अमेठी में सांसद बनने के बाद स्मृति ने कई ऐसे कदम उठाए, जिससे लोग नाराज थे। पहली बार अमेठी के संजय गांधी अस्पताल को बंद कराने के बाद लोगों में आक्रोश दिखा था। लोगों से बात करने पर पता चला कि स्मृति का बड़बोलापन भी लोगों को पसंद नहीं आ रहा था। वह कई बार सियासी मंचों से गांधी परिवार के लिए उल्टे-सीधे शब्दों का इस्तेमाल करती रहीं, जो लोगों को पसंद नहीं आ रहे थे। कांग्रेस इसी गुस्से को वोट में बदलने में कामयाब रही। अभी कुछ दिन पहले ही स्मृति ईरानी ने प्रियंका की मिमिक्री की थी, जो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई।
2019 में ऐसे लड़ा चुनाव
2019 के चुनाव में पूरे भाजपा कैडर ने स्मृति ईरानी को चुनाव लड़ाया था, 2024 में ऐसा नहीं हुआ। वो कैंपेनिंग में अकेली दिख रही थीं। वोटिंग से पहले अमित शाह और CM योगी यहां कैंपेनिंग के लिए पहुंचे। मगर बहुत असर नहीं दिखा सके।