वॉशिंगटन. कश्मीरी मूल के डॉक्टर रऊफ की कोशिश सफल हुई तो जल्द ही लोगों को कैंसर की मर्ज से निजात मिल सकती है। दरअसल, उन्होंने जेनेटिक फैक्टर की निशानदेही से कैंसर के खतरे की पहचान कैसे की जाए, इसका पता लगाया है। इसके तहत किसी डॉक्टर के पास अगर ब्लैडर कैंसर का मरीज आता है तो डॉक्टर पहले ही उसके ख़ून से डीएनए निकालकर और जेनेटिक फैक्टर की निशानदेही करके यह पता लगा सकता है कि इसका कैंसर कितना बढ़ सकता है। ‘नेचर जेनेटिक्स’ नाम की पत्रिका ने नवंबर अंक में डॉक्टर रऊफ की खोज को प्रकाशित किया है।
रुक सकता है कैंसर
दरअसल, वह ट्रांसलेशन जीनोमिक्स पर काम कर रहे है। डॉक्टर रऊफ और डॉक्टर लुदमिला प्रोकुनिन-ऑल्ससोन ने जीन और कैंसर के रिश्तों पर काम किया है। मेडिकल साइंस के लोग मानते हैं कि उनकी इस खोज से कैंसर रोकने का रास्ता साफ हो सकता है। डॉक्टर रऊफ भी कहते हैं कि इससे जीनोमिक मेडिसन यानी कैंसर की दवा बनाने में मदद मिल सकती है। हालांकि यह अभी शुरुआती खोज है।
ऐसे किया गया अध्ययन
असल में कोशिकाओं में डीएनए के बदलाव की वजह से कैंसर होता है। इसे समझने के लिए ब्लैडर और ब्रैस्ट कैंसर के मरीजों और सामान्य लोगों का डीएनए लेकर उनकी तुलना की गई। इसमें पाया गया कि कैंसर के रिस्क फैक्टर वाले लोगों के डीएनए में ज्यादा बदलाव होता है और जिनमें रिस्क फैक्टर कम हो, उनमें तब्दीलियां कम होती हैं।
एएमयू से पढ़े हैं डॉ. रऊफ
रऊफ अमरीका के नैशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में हैं। वह मूल रूप से कश्मीर के बीरवाह इलाके के हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमएससी और पीएचडी डिग्री लेने के बाद वह अमरीका चले गए थे।
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