इस उत्सव में शामिल होने के लिए लोगों का हुजूम अंबिकापुर में उमड़ पड़ता था। कहा जाता है कि दूरस्थ अंचल से ग्रामीण जन रसद् सहित शहर में आकर रुकते थे। शैला व करमा नृत्य तथा मांदर की थाप व घुंघरू की गूंज से नगर का माहौल उत्सवी हो जाता था। सरगुजा पैलेस में आज भी इसी परम्परा का निर्वहन किया जाता है।
सरगुजा रियासत के समय विजयादशमी का विशेष महत्व था। इसे राजकीय त्यौहार के रूप में मनाया जाता था। मान्यता है कि इस दिन पूरे रियासत के अंतर्गत शामिल गौंटिया जागीरदार व आम जनता नगर में पहुंच राजा के दर्शन करते थे। राजा के दर्शन को लोग शुभ मानते थे।
दशहरा के पूर्व परंपरा के अनुरूप राजपरिवार की महिलाएं कुलदेवी की पूजा करती थीं। इसमें सिर्फ राजपरिवार के सदस्य ही शामिल होते थे। रियासतकालीन परम्परा के अनुसार दशहरा उत्सव दो दिनों तक चलता था। सरगुजा रियासत में दशहरा मुख्य उत्सव था। इसमें लोग दूर-दराज से पहुंचकर शामिल होते थे।
हजारों का हुजूम राजा के दर्शन व नजराना भेंट करने इस दिन उमड़ता था और दरबार में राजा सभी आंगुतकों से मुलाकात करते थे। यह परंपरा आज भी चली आ रही है। दशहरा के दिन राजपरिवार के सदस्य नीलकंठ के दर्शन करने के बाद नगर के मठपारा जाकर उसे आजाद करते थे।
इसके बाद दशहरा उत्सव प्रारंभ होता था। विजयादशमी के दिन सुबह महाराजा सरगुजा द्वारा शस्त्र पूजन किया जाता था। इसमें परिवार की महिलाएं भी शामिल होती थीं, लेकिन पूजा सिर्फ पुरूष सदस्य ही करते थे। आज भी इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।
हाथियों की निकलती थी शोभायात्रा
सरगुजा रियासत के परंपरा के अनुसार विजयादशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा के बाद जुलूस निकलता था। इसमें स्वर्ण हौदा युक्त हाथी में महाराज व उनके पीछे 3 हाथी में क्रमश: युवराज बैठते थे। इनके साथ ही रियासत से जुडे अधिकारी-कर्मचारी शेरवानी-चूडीदार पायजामा व पगड़ीधारण कर काफिले में शामिल होते थे।
सरगुजा रियासत के परंपरा के अनुसार विजयादशमी के अवसर पर शस्त्र पूजा के बाद जुलूस निकलता था। इसमें स्वर्ण हौदा युक्त हाथी में महाराज व उनके पीछे 3 हाथी में क्रमश: युवराज बैठते थे। इनके साथ ही रियासत से जुडे अधिकारी-कर्मचारी शेरवानी-चूडीदार पायजामा व पगड़ीधारण कर काफिले में शामिल होते थे।
इनमें हाथियों के अतिरिक्त नगाड़ा, रिजर्व फोर्स का समूह, सरगुजिहा नृत्य दल के साथ बिलासपुर रोड स्थित बंजारी में नीलकंठ पक्षी दर्शन कर लौटते वक्त सदर रोड होते हुए जूना गद्दी तथा ब्रह्म मंदिर मे पूजन उपरांत पैलेस पहुंचते थे। जहां रियासत के गंवटिया व जनता उपस्थित रहते थे।
फाटक पूजा के बाद दरबार लगता था, जिसमें इलाकेदार महाराजा को नजराना अदा करते थे। इस अवसर पर महाराजा द्वारा रियासत की प्रगति रिपोर्ट भाषण के माध्यम से प्रस्तुत की जाती थी। वर्ष १९६६ में परंपरा का निर्वहन करते हुए अंतिम बार रियासती अंदाज में दशहरा जुलूस निकाला गया।
सुबह होगी शस्त्र पूजा
मंगलवार को महाराज टीएस सिंहदेव, छोटे भाई अरुणेश्वर शरण सिंहदेव व भतीजे राजकुमार आदित्येश्वर शरण सिंहदेव द्वारा सुबह पैलेस में शस्त्र पूजा की जाएगी। सरगुजा रियासत के वर्तमान महाराज टीएस सिंहदेव ने बताया कि यह पूजा पूर्ण रूप से पारिवारिक होती है।
मंगलवार को महाराज टीएस सिंहदेव, छोटे भाई अरुणेश्वर शरण सिंहदेव व भतीजे राजकुमार आदित्येश्वर शरण सिंहदेव द्वारा सुबह पैलेस में शस्त्र पूजा की जाएगी। सरगुजा रियासत के वर्तमान महाराज टीएस सिंहदेव ने बताया कि यह पूजा पूर्ण रूप से पारिवारिक होती है।
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