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अंबिकापुर

लाल पत्थर से बनी है इस माता की मूर्ति, दर्शन करने चढऩी पड़ती हैं 600 से अधिक सीढिय़ां

Navratri 2021: अष्टभुजी महिषासुर मर्दनी स्वरूप की माता भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं, 18वीं सदी में हड़ौतियां चौहान वंशों के आधिपतय में आई थी मूर्ति, पहाड़ पर कठिन चढ़ाई करने के बाद होते हैं माता के दर्शन, अनोखा (Unique) रहा है यहां का इतिहास (History)

अंबिकापुरOct 09, 2021 / 03:38 pm

rampravesh vishwakarma

Navratri 2021

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अंबिकापुर. Navratri 2021: नवरात्र सहित अन्य दिनों में हजारों-लाखों भक्त माता के दर्शन कर उनसे मन्नतें मांगते हैं। माता के दर्शन करने लोग हर मुश्किल को भी लांघ जाते हैं। ऐसा ही एक धाम सूरजपुर जिले के पहाड़ पर बसा हुआ है। यह कुदरगढ़ धाम के नाम से विख्यात है। यहां माता बागेश्वरी विराजमान हैं।
माता की यह मूर्ति लाल पत्थर की अष्टभुजी महिषासुर मर्दनी स्वरूप की है। इस मंदिर के बाहर स्थित पेड़ पर नारियल बांधने से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। माता के धाम तक पहुंचने 600 से अधिक सीढिय़ां चढऩी पड़ती हैं।

नवरात्र में माता के दर्शन पहुंचने राज्य व देश के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते हैं। सबसे खास बात यह है कि चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है। 600 सीढिय़ों की चढ़ाई चढऩे के बाद माता के दर्शन होते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के मंदिर के बाहर स्थित पेड़ पर नारियल बांधने से मनचाही मुरादें पूरी होती हैं।

ये है सिद्धीपीठ माता का धाम, मंदिर के बाहर पेड़ पर नारियल बांधने से पूरी होती हैं सभी मन्नतें


ऐसा है इतिहास
माता बागेश्वरी की यह मूर्ति 18 वीं सदी में हड़ौतिया चौहान वंशों के आधिपत्य में आई थी। इस वंशज के पूर्वज हरिहर शाह चौहान के शासन काल में राजा बालंद विन्ध्य प्रदेश के वर्तमान सीधी जिला के जनक (चांद बखार) के बीच स्थित मरवास के रहने वाले क्षत्रिय कुल के थे। मरवास में अभी भी इस कुल के परिवार हैं।
यह मूर्ति उनके द्वारा ही लाई गई थीं। बालंद क्रूर था जो सीधी क्षेत्र में अपने साथियों के साथ लूटपाट करता था और अपना निवास स्थान वर्तमान में ओडग़ी विकासखंड के अंतर्गत तमोर पहाड़ जो लांजित एवं बेदमी तक विस्तृत है। बालंद से त्रस्त होकर तत्कालीन सरगुजा के जमींदारों ने समूह बनाकर तमोर पहाड़ पर चढ़ाई कर दी थी।
Navratri 2021
IMAGE CREDIT: Maa Bageshwari
पहाड़ पर बालंद परास्त होकर मूर्ति सहित अपने साथियों के साथ कुदरगढ़ पहाड़ अपना निवास स्थान बनाया और वहीं से सरगुजा में लूट पाट करता था। उसके निवास स्थान को जानने वाले यहां के मूल निवासी पंडो जाति तथा चेरवा जाति के लोग थे।

बालंद को घेरकर मारा
जानकार बताते हैं कि मंदिर के पुजारी पद के लिए पंडो और चेरवा के बीच वैमनस्यता हो गई। उस काल में चौहान के मुख्य हरिहर शाह ने राज बालंद को चारों तरफ से घेर लिया और झगराखांड में हुई लड़ाई में वह मारा गया।

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