अंबिकापुर समेत इन स्थानों से होकर गुजरे थे भगवान श्रीराम, रामगढ़ की पहाडिय़ों में बिताया था चौमासा
Lord Ram story: 14 साल के वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण अयोध्या से पहुंचे थे सरगुजा, अंबिकापुर में भगवान राम ने किया था विश्राम, इस वजह से पूर्व में इसका नाम पड़ा था विश्रामपुर
अंबिकापुर. Lord Ram story: दक्षिण कोसल (छत्तीसगढ़) में सरगुजा अंचल के अनेक जगहों पर प्राचीन मूर्त धरोहरों एवं अमूर्त स्वरूप में रामकथा के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख देखने-सुनने को मिलता है। भगवान श्रीराम के वनवास काल का छत्तीसगढ में पहला पड़ाव उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिला स्थित सीतामढ़ी हरचौका को माना जाता है। इस दौरान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण ने अंबिकापुर में विश्राम किया था, इस वजह से इसका पूर्व में विश्रामपुर नाम पड़ा था। बाद में मां अंबिका देवी के नाम पर विश्रामपुर से नाम बदलकर अंबिकापुर रखा गया।
श्री राम वन गमन मार्ग के शोधकर्ता राज्यपाल से पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा संभाग के 40 पवित्र स्थलों में भगवान श्री राम के चरण पड़े हैं। इनमें बलरामपुर के 3, जशपुर के 4, सरगुजा के 9, सूरजपुर के 14, मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के 9 और कोरिया जिले के 1 स्थल शामिल हैं।
सरगुजा अंचल के प्राचीन मूर्त धरोहरों में श्रीराम से संबंधित जो पवित्र स्थल देखने को मिलते हैं, उनमें मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले का घाघरा, सीतामढ़ी हरचौका, सिद्ध बाबा का आश्रम, रामगढ,़ अमृतधारा, कोटाडोल, सीतामढ़ी छतौड़ा अश्रम, देवशील, जटाशंकरी गुफा, देवगढ़ और कोरिया जिले का सीतामढ़ी (गांगी रानी) प्रमुख प्राचीन स्थल हैं।
सूरजपुर जिले का कुदरगढ़, जोगीमाड़ा (गुफा चपदा ग्राम), लक्ष्मण पंजा, सीता लेखनी पहाड़, रक्स गंडा, सारासोर, श्रीराम लक्ष्मण पंजा, मरह_ा, साल्हो और बेसाही पहाड़, पोड़ी, श्यामनगर-सकलपुर का श्री राम का चरण चिन्ह, शिवपुर का सीता पांव, बिलद्वार गुफा और सरगुजा जिले के अंबिकापुर (विश्रामपुर),
यमदग्नि ऋषि की तपोभूमि देवगढ़ और सतमहला, महेशपुर, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, मिरगाडांड, चंदन मिट्टी गुफा, नान दमाली एवं बड़े दमाली के समीप बंदरकोट, अंजनी टीला, मैनपाट के सरभंजा, देउरपुर (महारानीपुर), सीतापुर में मंगरैलगढ़ एवं जशपुर जिले के पत्थलगांव तहसील का किलकिला आश्रम, बगीचा का शिव मंदिर, बलरामपुर जिले का सीता चौक, दुप्पी, सीता चुंआ, तातापानी और रामचौरा पहाड़ आदि स्थल हैं।
भगवान श्रीराम के अंबिकापुर में विश्राम करने की है मान्यता एक मान्यता प्रचलित है कि भगवान श्रीराम ने अंबिकापुर में विश्राम किया था। पहले अंबिकापुर को विश्रामपुर कहा जाता था। विश्रामपुर नामकरण के संबंध में जनश्रुति है कि रामायण युग में वनवास के समय भगवान श्रीराम, माता सीता एवं लक्ष्मण दंडकारण्य से गुजरते वक्त वर्तमान अंबिकापुर में विश्राम किया था, इसलिए इस अंचल का नाम विश्रामपुर पड़ा।
छत्तीसगढ़ में सरगुजा के शामिल होने के साथ ही विश्रामपुर नाम बदलकर अंबिका देवी के नाम पर अंबिकापुर रखा गया। वर्तमान में अंबिकापुर से 30 किमी की दूरी पर जो विश्रामपुर है, उसे पहले ओंडार बहरा कहा जाता था।
रामगढ़ की पहाडिय़ों में बिताया था चौमासा जनश्रुति है कि भगवान श्रीराम ने संपूर्ण सरगुजा अंचल का नदी मार्ग से भ्रमण करते हुए कोंटा बस्तर तक कई वर्षों तक छत्तीसगढ़ में व्यतीत किए। श्रीराम ने सरगुजा में रामगढ़ की पहाडिय़ों में चौमासा बिताया था। रामगढ़ की पहाडिय़ों पर जहां माता सीता रहती थीं, सीता बेंगरा, जहां भगवान श्रीराम रहते थे, जोगीमाड़ा और जहां लक्ष्मण जी रहते थे लक्ष्मण बेंगरा गुफा प्रमाण स्वरूप आज भी विद्यमान है।
सीता बेंगरा के ठीक सामने लक्ष्मण रेखा भी खींची हुई है। पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर राम-जानकी कुंड और राम-जानकी मंदिर है। इस मंदिर में राम, लक्ष्मण और माता सीता की प्रतिमा रखी हुई है।
रामगढ़ की पर्वती चट्टानों के नीचे एक प्राकृतिक गुफा है, जिसे चंदन माटी गुफा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है भगवान श्री राम एवं लक्ष्मण ने अपनी जटाओं को यहां धोया था। इसी कारण चंदनमाटी को पवित्र मानकर लोग अपने माथे में लगाते हैं। इस पहाड़ी को ग्रामीण काफी आदर और भाव के साथ पूजते हैं।
सरगुजा के कण-कण मेें बसे हैं श्रीराम वन गमन के दौरान प्रभू श्रीराम ने सरगुजा वासियों के साथ काफी समय व्यतीत किया था। यही वजह है कि आज भी सरगुजा के जन-जन और कण-कण में श्रीराम बसे हैं। सरगुजा के लोग अपना नाम, गांवों और विभिन्न स्थलों का नाम श्री राम या रामायण के पात्रों के नाम से संबंधित रखे हुए हैं।
इससे श्रीराम के प्रति अगाध श्रद्धा दिखती है। सरगुजा के अनेक गावों के नाम रामायण के पात्रों से संबंधित रामपुर, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, मिरगाडांड,़ लखनपुर, भरतपुर, रामेश्वरनगर, सीतापुर, सीता चौक, सीता चुंआ, रामचौरा पहाड़, जनकपुर, सीतामढ़ी, अंजनी टीला, बंदरकोट व सरभंजा के नाम मिलते हैं।
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