जन्माष्टमी पर हजारों महिला-पुरुषों ने उपवास रखा है। पूर्व में सरगुजा के अंबिकापुर सहित अन्य शहरों से लेकर गांवों तक युवाओं में मटकी फोडऩे को लेकर उत्साह देखा जाता था। मटकी फोड़ प्रतियोगिता के लिए शहर सहित कई जगहों पर तैयारियां शुरु कर दी जाती थीं लेकिन पिछले साल की तरह इस बार भी ऐसा नहीं होगा। इस बार सिर्फ पूजा की अनुमति मिली है, मटकी फोड़ प्रतियोगिता की नहीं।
गौरतलब है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मटका फोडऩे की परंपरा रही है। ऐसी मान्यता है कि अपने बाल्यकाल व किशोरावस्था में भगवान श्रीकृष्ण गोपियों की मटकियां फोड़ा करते थे। शहर में भी पिछले कई वर्षों से मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन होता आ रहा है।
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पिछले साल कोरोना के कारण इसे स्थगित करना पड़ा था। इस बार भी वही स्थिति बन रही है। गोविंदा आला रे आला… और चांदी की डाल पर सोने का मोर… गानें की धुन पर मटकियां फोड़ते गोविंदा नजर नहीं आएंगे।
मटकी फोडऩे पर मिलता है इनामशहर की कई समितियों द्वारा मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें युवाओं व किशोरों की कई टीमें हिस्सा लेती हैं।
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एक टीम यदि मटकी फोडऩे प्रयास करती है तो बाकी की टीमें उसे ऐसा करने से रोकने पानी व रंग आदी की बौछार करती है। इन सब बाधाओं को पार कर जो टीम मटकी फोड़ देती है, उसे विजेता घोषित कर इनाम दिया जाता है।