जब पीडि़त ने किडनी देकर (Kidney transplant) चाचा की जान बचा ली तो कुछ दिनों बाद उनकी नीयत बिगड़ गई और देखरेख से इनकार कर दिया। यही नहीं, वसीयतनामा भी निरस्त करा दिया। इसकी शिकायत पीडि़त ने थाने में दर्ज कराई थी। पुलिस ने इस मामले में धारा 419, 420, 467, 468 एवं 120बी के तहत चाचा-चाची व 2 चचेरे भाइयों के खिलाफ अपराध दर्ज किया था।
गौरतलब है कि शहर के बौरीपारा निवासी राजेंद्र धर दुबे 70 वर्ष की किडनी खराब थी। 8 अक्टूबर को राजेंद्रधर दुबे अपनी पत्नी कौशिल्या दुबे 65 वर्ष, पुत्र अनिमेश दुबे 38 वर्ष व मिथलेश्वर प्रसाद दुबे 40 वर्ष के साथ अपने भतीजे रविंद्र कुमार धर दुबे के घर ग्राम अनरोखा पहुंचे।
इस दौरान पत्नी व पुत्रों ने कहा कि चाचा की किडनी खराब है, उनका बचना मुश्किल है और किसी की किडनी मैच नहीं हो रही है। यदि वह अपनी किडनी देगा तो उसके नाम जमीन कर देंगे और जीवनभर उसकी व उसके परिवार की देखरेख करेंगे। इसके बाद उन्होंने रविंद्र के पक्ष में 13 अक्टूबर को वसीयतनामा (Will) तैयार करा जमीन उसके नाम कर दिया।
फिर 8 या 9 जनवरी 2007 को संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट संस्थान लखनऊ में ले जाकर किडनी प्रत्यारोपण (Kidney transplant) करा लिया। किडनी प्रत्यारोपण के बाद कुछ दिनों तक तो उसकी देखरेख की लेकिन बाद में नियत बदल गई। इसके बाद उन्होंने उसकी देखरेख करने से इनकार करते हुए वसीयतनामा भी निरस्त करा दिया था।
इसकी शिकायत (Complaint) पीडि़त रविंद्र कुमार धर दुबे ने थाने में दर्ज कराई थी। इधर चारों आरोपियों ने प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश अंबिकापुर के न्यायालय (Court) में अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी, जिसे न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया।
न्यायाधीश ने इस आधार पर निरस्त की जमानत
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश अंबिकापुर जयदीप गर्ग ने कहा कि वसीयतनामा 13 अक्टूबर 2006 को लिखा गया था। इसमें उल्लेख था कि अभियुक्त राजेंद्र धर दुबे के पुत्रों मिथलेश धर दुबे व अनिमेश धर दुबे द्वारा किडनी देने से इनकार किया गया था।
ऐसे में रविंद्र धर दुबे से किडनी प्राप्त कर रहा है तथा उसके नाम अपनी संपत्ति का हस्तांतरण कर देगा तथा उसे अपना बड़ा पुत्र मिथलेश धर दुबे बताकर लखनऊ ले जाएगा। ऐसे में वसीयतनामा से साफ जाहिर है कि वह वसीयतनामा न होकर किडनी के क्रय-विक्रय किए जाने का दस्तावेज है,
क्योंकि किडनी के बदले जमीन दिए जाने, मकान बनाने एवं अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने का भी लालच दिया गया है। यह भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत छल, दस्तावेजों की कूटरचना व कूटरचित दस्तावेजों के प्रयोग के अपराध किए गए हैं। साथ में यह ‘द ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिशु एक्ट’ 1994 की धारा 19(ए) के अंतर्गत मानव अंगों के क्रय-विक्रय का अपराध किया है, इस पर रोक लगाया जाना अत्यंत आवश्यक है।
इसमें किडनी प्रत्यारोपण करने वाले चिकित्सालय, कर्मचारियों व डॉक्टरों की भूमिका की भी जांच किया जाना आवश्यक है। इस आधार पर आवेदकों का अग्रिम जमानत निरस्त (Advance bail canceled) किया जाता है।