शुक्रवार को सरगुजा प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए आलोक दुबे ने कहा कि उनकी शिकायत पर पूर्व में वन विभाग द्वारा यहां विस्तृत जांच कराई गई थी। जांच रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि उस वार्ड के अल्पसंख्यक पार्षद ने लोगों को संरक्षित वन क्षेत्र (Protected forest Area) में राजीव आश्रय योजना का नियम विरूद्ध पट्टा दिलवा दिया है।
इस पर जांच कमेटी ने भी आश्चर्य व्यक्त किया है। जांच प्रतिवेदन तत्कालिन वनमण्डलाधिकारी मो. शाहिद द्वारा रिजर्व फॉरेस्ट में बसे 60 लोगों को अंतिम बेदखली नोटिस जारी किया गया था परन्तु उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने तत्कालिन डीएफओ पर भी अतिक्रमणकारियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया। पत्रवार्ता के दौरान भाजपा नेता कैलाश मिश्रा उपस्थित थे।
334 अतिक्रमणकारियों के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं
जांच रिपोर्ट में 334 अतिक्रमण करने वालों की सूची है, जिनके पास कोई भी वैध कागजात नहीं है। जांच में यह तथ्य भी प्रकाश में आया है कि वहां स्थित एक निजी शिक्षण संस्थान की 18 डिसमिल भूमि वन विभाग की है। भाजपा पार्षद ने पिछले डेढ़ दशक का गूगल मैप भी दिखाया जिसमें 2005 से 2020 के बीच किस प्रकार से अतिक्रमण हुआ यह स्पष्ट पता चलता है।
वोट बैंक बढ़ाने करवाया अतिक्रमण
आलोक दुबे ने अंबिकापुर विधायक, जिला अध्यक्ष कांग्रेस एवं तत्कालीन सभापति के दबाव में महामाया पहाड़ पर नियम विरूद्ध लगभग 500 लोगों को वन अधिकार मान्यता पत्र वोट बैंक के कारण देने का आरोप लगाया। साथ ही इसमें पूर्व पार्षद व झारखंड निवासी को भी पट्टा बांट देने की बात कही।
आलोक दुबे ने अंबिकापुर विधायक, जिला अध्यक्ष कांग्रेस एवं तत्कालीन सभापति के दबाव में महामाया पहाड़ पर नियम विरूद्ध लगभग 500 लोगों को वन अधिकार मान्यता पत्र वोट बैंक के कारण देने का आरोप लगाया। साथ ही इसमें पूर्व पार्षद व झारखंड निवासी को भी पट्टा बांट देने की बात कही।
पूर्व व वर्तमान डीएफओ की भूमिका भी संदिग्ध
भाजपा पार्षद आलोक दुबे ने पूर्व डीएफओ एवं वर्तमान डीएफओ (DFO) की भूमिका अतिक्रमण हटाने के मामले में संदिग्ध बताते हुए 60 लोगों के विरूद अंतिम बेदखली आदेश के बावजूद एक भी अतिक्रमण (Encroachment) नहीं हटाये जाने पर भी सवाल उठाया।