अलवर

यूआईटी 16 साल में अलवर को नहीं कर पाई कच्ची बस्ती मुक्त, अब 2051 तक का लक्ष्य

– शहर में 42 कच्ची बस्तियां, आधा दर्जन बस्तियों के लिए बनाए गए फ्लैट में सभी परिवार नहीं गए – वर्ष 2009-10 में शुरू किया गया था यह पायलट प्रोजेक्ट, अब यूआईटी का ध्यान इस योजना से हटा Alwar : शहर के विकास के लिए योजनाएं तो तमाम बनाई गई, लेकिन धरातल पर पूरी तरह […]

अलवरJan 15, 2025 / 06:42 pm

susheel kumar

– शहर में 42 कच्ची बस्तियां, आधा दर्जन बस्तियों के लिए बनाए गए फ्लैट में सभी परिवार नहीं गए
– वर्ष 2009-10 में शुरू किया गया था यह पायलट प्रोजेक्ट, अब यूआईटी का ध्यान इस योजना से हटा

Alwar : शहर के विकास के लिए योजनाएं तो तमाम बनाई गई, लेकिन धरातल पर पूरी तरह नहीं उतर पाई। इसी में राजीव गांधी आवास योजना शामिल थी। इसके तहत अलवर को कच्ची बस्ती मुक्त करना था, लेकिन अब तक यह कार्य पूरा नहीं हो पाया, जबकि 16 साल बीत गए। अब यूआईटी वर्ष 2051 तक शहर को कच्ची बस्ती मुक्त करने का सपना शहरियों को दिखा रही है, लेकिन इस गति से 8 हजार परिवारों को बसाना आसान नहीं है।
ये हैं कच्ची बस्तियां, तलहटी में होने से पहाड़ी का प्राकृतिक सौंदर्य हो रहा प्रभावित

शहर में 42 कच्ची बस्तियां हैं। इनमें 8000 परिवार निवास करते हैं। इनकी आबादी करीब 25 हजार है। प्रमुख बस्तियां रेलवे लाइन के पूर्व दाउदपुर, खुदनपुरी, मूंगस्का, देवखेड़ा, सामोला, उत्तर में बल्ला बोड़ा, पश्चिमी में पहाड़ी की तलहटी में चमारपाड़ी, लालखान, अखेपुरा, धोबी घट्टा, गालिब सैय्यद आदि हैं। कुछ कच्ची बस्तियां जैसे सेठ की बावड़ी, हजूरी गेट, गोपाल टाॅकीज, फतेहसिंह की गुम्बद, नारायण विलास, खदाना, करोलीकुण्ड आदि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में स्थित हैं। स्टेडियम के पीछे पहाड़ी की तलहटी में सोनावा बड़ी कच्ची बस्ती है। पहाडि़यों की तलहटी में स्थिति के कारण इन बस्तियों से पहाड़ी का प्राकृतिक सौन्दर्य प्रभावित हो रहा है। इन बस्तियों में मुख्य रूप से औद्योगिक इकाइयों व अन्य आर्थिक गतिविधियों में कार्यरत लोग निवास करते हैं। पिछले कई वर्षों से इन कॉलोनियां का विकास, वातावरण सुधार योजना के अन्तर्गत किया गया है, जो नाकाफी साबित हुआ।
ये सुविधाएं देने का प्रावधान

राजस्थान सरकार ने पूर्व में अलवर शहर को राजीव गांधी आवास योजना के तहत चयनित कर कच्ची बस्ती मुक्त शहर के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया था। सभी कच्ची बस्तियों के नागरिकों को योजनाबद्ध तरीके से बसाते हुए सस्ते आवास प्रदान किए जाने हैं। इसके अतिरिक्त सभी कच्ची बस्तियों के पुनर्विकास की विस्तृत योजना बनाकर उनमें आवश्यक जनसुविधाओं जैसे सड़क, पेयजल, पार्क, सामुदायिक केन्द्र, सीवरेज आदि की सुविधाएं दी जाएंगी। पहाड़ी व अन्य महत्वपूर्ण स्थलों, सड़कों पर स्थित कच्ची बस्ती निवासियों को सुविधा युक्त निर्मित मकानों की व्यवस्था किया जाना प्रस्तावित है।
आधा दर्जन बस्तियों के लिए बनाए फ्लैट, पर पुनर्वास पूरा नहीं हुआ

वर्ष 2009-10 में राजीव गांधी आवास योजना के तहत कच्ची बस्तियों को फ्लैट में शिफ्ट करने की योजना थी। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में धोबी घट्टा, भांडबस्ती, शिकारी बास के लिए फ्लैट बनाए गए। लोगों को यह आवंटित भी कर दिए गए। 944 परिवारों को यह लाभ दिया गया। बुदध् विहार में भी इन लोगों के लिए फ्लैट बनाए गए। अखेपुरा, लालखान के परिवारों को भी फ्लैट दिए जा रहे थे, लेकिन यह परिवार शिफ्ट नहीं हो पाए। अग्रसेन चौक व टेल्को सर्किल पर गाडि़या लौहार परिवार को भी शिफ्ट करने की योजना थी, लेकिन यह भी अब तक फ्लैट में नहीं गए। मालवीय नगर में फ्लैट बनाए गए थे। इसके लिए यूआईटी को चरणबद्ध तरीके से काम करना होगा। कई परिवार ऐसे हैं जिनको पहले फ्लैट आवंटित हुए, लेकिन वह शिफ्ट नहीं हुए। अब उनके बच्चे बड़े हो गए। ऐसे में वह भी फ्लैट के हकदार हो गए। ऐसे में यूआईटी को योजना बनाने के तुरंत बाद ही परिवारों को बसाना होगा। 2051 तक अलवर कच्ची बस्ती मुक्त हो सकता है।
प्रमोद शर्मा, रिटायर्ड एक्सईएन यूआईटी

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