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बच्चों को मोबाइल बना रहा जिद्दी ये किसी नशे से कम नहीं

बच्चों को मोबाइल बना रहा जिद्दी ये किसी नशे से कम नहीं
अलवर. कोरोना काल में लगे लॉकडाउन में पढ़ाई का सबसे बड़ा हथियार मोबाइल बना। काफी हद तक पढ़ाई दौड़ती रही। उसी काल में बच्चों को मोबाइल भा गया, जो अब उनकी लत बन बैठा। इसी मोबाइल ने बच्चों को जिद्दी बना दिया। वह मोबाइल के बिना दिन व रात नहीं काट पा रहे। उनके स्वभाव में बड़ा अंतर आ गया है। ऐसे केस मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे हैं। वह बच्चों की काउंसिलिंग कर रहे हैं।

अलवरMay 03, 2023 / 11:12 am

jitendra kumar

बच्चों को मोबाइल बना रहा जिद्दी ये किसी नशे से कम नहीं

बच्चों को मोबाइल बना रहा जिद्दी ये किसी नशे से कम नहीं


मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे केस
बच्चों को मोबाइल बना रहा जिद्दी ये किसी नशे से कम नहीं

सुबह उठते ही देखते हैं नोटिफिकेशन
छात्र-छात्राओं में मोबाइल की लत इस कदर बढ़ गई है कि बार-बार नोटिफिकेशन चेक करना, सोशल मीडिया को देखने में लगा रहे हैं। परिवार को पता ही नहीं और फेसबुक, यूट्यूब आदि पर आईडी बना लिए हैं। तमाम एप मोबाइल में डाउनलोड कर लिए गए जिससे साइबर फ्रॉड होने की भी संभावनाएं बढ़ गई हैं। बच्चों का तीन से चार घंटे मोबाइल पर ही सफर करने में बीत रहा है। इससे बच्चों का परिणाम भी प्रभावित हो रहा है।
मोबाइल पर बच्चे क्या देख रहे हैं, यह पेरेंट्स ध्यान दें
मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ एसपी सिंह ने बताया कि बच्चे पढ़ाई के बहाने मोबाइल लेकर अपनी इच्छा के अनुरूप उपयोग में लेते हैं। इसके अधिक उपयोग से चिड़चिड़ापन, पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित न होना, पर्याप्त नींद न आना, आंखों से पानी निकलना, गर्दन में दर्द रहना आदि की शिकायत होती है। मोबाइल न मिलने पर बच्चे जिद्दी बन जाते हैं। ऐसे में अभिभावक बच्चों को प्यार से समझाएं। मोबाइल बच्चे को यदि दे भी रहे हैं तो ये ध्यान देने की जरूरत है कि बच्चा मोबाइल पर क्या चीजें देख रहा है, इस पर ध्यान देना होगा।
लॉकडाउन के समय मोबाइल ही बने थे पढ़ाई का आधार, आज यह लत बन चुके

अलवर. कोरोना काल में लगे लॉकडाउन में पढ़ाई का सबसे बड़ा हथियार मोबाइल बना। काफी हद तक पढ़ाई दौड़ती रही। उसी काल में बच्चों को मोबाइल भा गया, जो अब उनकी लत बन बैठा। इसी मोबाइल ने बच्चों को जिद्दी बना दिया। वह मोबाइल के बिना दिन व रात नहीं काट पा रहे। उनके स्वभाव में बड़ा अंतर आ गया है। ऐसे केस मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे हैं। वह बच्चों की काउंसिलिंग कर रहे हैं।
आर्य नगर निवासी विनोद शर्मा (बदला हुआ नाम) के 12 साल के बेटे आर्यन की पढ़ाई लॉकडाउन में मोबाइल से हुई। करीब छह माह तक आर्यन का समय मोबाइल पर इतना ही बीतता कि उनकी कक्षाएं ही लग पातीं। धीरे-धीरे मोबाइल में गेम से लेकर सोशल मीडिया पर वह एक्टिव होने लगा।
अनचाहे मेसेज व नोटिफिकेशन आने लगे। अब कक्षाएं ऑफलाइन शुरू हो गईं, लेकिन आर्यन की आदत मोबाइल बन चुकी। मोबाइल न देने पर वह गुस्सा करने लगता है। चिड़चिड़ा हो गया। जिद बढ़ गई। कई अन्य चीजें भी हो रही हैं। अभिभावक उन्हें एक मनो विशेषज्ञ के पास लेकर पहुंचे थे। आर्यन की तरह ही अन्य बच्चे भी मोबाइल के आदी हो गए, जो किसी नशे से कम नहीं है।
अभिभावक व टीचर्स बच्चों को करें जागरूक : अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी मुकेश किराड़ ने बताया कि छात्र-छात्राओं में मोबाइल की लत धीरे-धीरे बढ़ रही है। इसका उपयोग जरूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए करें, न कि गेम खेलने या अन्य कार्यों के लिए। घर में तो अभिभावक और विद्यालय में टीचर बच्चों को मोबाइल के अधिक प्रयोग के नुकसान बताएं। उन्हें जागरुक करें।

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