कच्चे घर से पक्के में आने की उम्मीद में गत दो सालों में मां-बाप ने इस झोपड़ी में दम तोड़ दिया। अब पीछे बचे तीन अनाथ बच्चे बालिग हैं। लेकिन दस दिन पहले यह झोपड़ी भी गिर गई। सिर छुपाने को जगह नहीं हैं। मजबूरी में बबीता व दीपू दो भाई-बहिन को बुआ के घर जाना पड़ा। तीसरा भाई जीतू पढ़ाई के साथ अब मजदूरी करता है। उसे अपने चाचा के टूटे-फूटे मकान में शरण लेनी पड़ी है। तीनों की मां सुमन देवी की जुलाई 2019 में मृत्यु हो गई। जबकि इनके पिता रामावतार का फरवरी 2018 में निधन हो चुका है।
सचिव व सरपंच को हालातों का पता गांव के मुखिया सरपंच व सचिव होते हैं। दोनों को इस परिवार के हालातों का पता है। लेकिन, अभी तक कोई मदद नहीं हो सकी है। माता-पिता के गुजरने के बाद मजदूरी करने वाले जीतू ने अपना दर्द भी बयां किया। फिर भी अब तक सुध नहीं ली गई है।
बजट आवंटित नहीं हो सका पिछली सरकार के समय मकान मंजूर हो गया था। बाद में इस परिवार की महिला की मृत्यु हो गई। फिर इनका पैसा अटक गया। इसके बाद आचार संहिता लग गई। तभी से बजट का इन्तजार है। जबकि जिला परिषद से इनके मकान की स्वीकृति हो चुकी है।
हीरालाल, सरपंच जेठ, गादूवास स्वीकृति का इन्तजार जिस वित्तीय वर्ष में मकानों की सूची बनी है। उस वर्ष के मकानों की स्वीकृति होना शेष है। बाकी कागज पूरे हैं। पूरी प्रक्रिया हो चुकी है। इंदिरा आवास में इस परिवार के आवेदन की मुझे जानकारी नहीं है। यह सही है कि परिवार के पास सिर छुपाने को जगह नहीं है।
आशीष यादव, ग्राम सचिव, गादूवास