कौन थे महाराजा सूरजमल, जिन्होंने मुगलों के सामने नहीं टेके घुटने, पानीपत के युद्ध के बाद मराठों को दी थी शरण
Who Was Maharaja Surajmal : भरतपुर के संस्थापक महाराज सूरजमल ने कभी मुगलों के आगे घुटने नहीं टेके, जहां कई राजा मुगलों के साथ हो गए, वे अकेले उनके लौहा लेते रहे।
कौन थे महाराजा सूरजमल, जिन्होंने मुगलों के सामने नहीं टेके घुटने, पानीपत के युद्ध के बाद मराठों को दी थी शरण
अलवर. बॉलीवुड फिल्म ( panipat ) पानीपत रिलीज होते ही विवादों में आ गई है। ( Panipat ) पानीपत फिल्म पर हो रहे विवादों का कारण इसमें ( Maharaja SurajMal ) महाराजा सूरजमल को गलत तरीके से दिखाया जाना है। फिल्म में दिखाया गया है कि ( Maharaja Surajmal ) महाराजा सूरजमल युद्ध में आगरा के किले की मांग रखते हैं, मांग पूरी नहीं होने पर वे सदाशिव के साथ युद्ध में जाने से मना कर देते हैं। केबिनेट मंत्री ( Minister Vishvendra Singh ) विश्वेन्द्र सिंह से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी इसका विरोध किया है। अब आपके मन में सवाल होगा कि जिन महाराजा सूरजमल के पात्र को गलत तरीके से दिखाया गया, वे कौन थे?
भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल ( Maharaja Surajmal Bharatpur ) राजस्थान के वीर योद्धाओं की गाथा का गुणगान समूचे विश्व में होता है। वीर राजपूती योद्धाओं के शौर्य के कारण राजस्थान को पहले राजपुताना कहा जाता था। इस राजपुताने में एकमात्र जाट महाराजा थे महाराजा सूरजमल। वे भरतपुर के संस्थापक थे। 13 फरवरी 1701 को जन्मे महाराजा सूरजमल राजा बदनसिंह के पुत्र थे। महाराजा सूरजमल को कुशल प्रशासक, दूरदर्शी और कूटनीति का धनी माना जाता है। उन्होंने सन् 1733 में भरतपुर रियासत की स्थापना की थी।
दोनों हाथ में तलवार लेकर करते थे युद्ध महाराजा सूरजमल दोनों हाथों में तलवार लेकर युद्ध किया करते थे। इसका एक खास किस्सा है कि राजा सूरजमल का जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह के अच्छा रिश्ता था। जयसिंह की मृत्यु के बाद उसके बेटों ईश्वरी सिंह और माधोसिंह में रियासत के वारिश बनने को लेकर झगड़ा शुरु हो गया। सूरजमल बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह को रियासत का अगला वारिस बनाना चाहते थे, जबकि उदयपुर रियासत के महाराणा जगतसिंह छोटे पुत्र माधोसिंह को राजा बनाने के पक्ष में थे। इस मतभेद की स्थिति में गद्दी को लेकर लड़ाई शुरु हो गई। मार्च 1747 में हुए संघर्ष में ईश्वरी सिंह की जीत हुई। लड़ाई यहां पूरी तरह खत्म नहीं हुई. माधोसिंह मराठों, राठोड़ों और उदयपुर के सिसोदिया राजाओं के साथ मिलकर वापस रणभूमि में आ गया। ऐसे माहौल में राजा सूरजमल अपने 10,000 सैनिकों को लेकर रणभूमि में ईश्वरी सिंह का साथ देने पहुंच गए थे। इस युद्ध में ईश्वरी सिंह को विजय प्राप्त हुई और उन्हें जयपुर का राजपाठ मिल गया। इसके बाद महाराजा सूरजमल का डंका पूरे भारत देश में बजने लगा।
लौहागढ़़ किले को आजतक कोई नहीं भेद पाया राजस्थान के भरतपुर में स्थित लौहागढ़ किले को देश का एकमात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है। इस किले को आजतक कोई भेद नहीं पाया। अंग्रेजों ने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों से आक्रमण किया लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। किले का निर्माण महाराजा सूरजमल ने ही कराया था। इस किले को बनाने में एक विशेष युक्ति का उपयोग किया गया था, जिससे तोप के गोलों का भी इसपर असर नहीं पड़ा।
पानीपत की लड़ाई में मराठों की मदद की महाराजा सूरजमल ने पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों के आधे से ज्यादा सैनिक मारे जाने के बाद उनकी काफी मदद की। युद्ध हारने के बाद मराठों के पास ना तो पूरा राशन था और ना ही उन्हें इलाके के बारे में जानकारी थी। महाराजा सूरजमल ने पानीपत के युद्ध से पहले सदाशिव भाऊ को सलाह दी थी अब्दाली की सेना पर अभी अतिक्रमण करना ठीक नहीं। क्योंकि उस दौरान सर्दियां थी। सूरजमल ने सलाह दी थी कि अफगान सैनिक सर्दी आसानी से सह लेंगे लेकिन गर्मी नहीं सह सकते, ऐसे में गर्मी में हमला करना ठीक होगा।
मराठा शासक इस युद्ध में कई हजार स्त्रियों और बच्चों को लेकर चले थे। महाराजा सूरजमल ने सलाह दी कि स्त्रियों और बच्चों को साथ लेकर मत घूमों, इससे ध्यान युद्ध से बंटेगा। इसके अलावा महाराजा सूरजमल ने मराठाओं को कई सलाह दी लेकिन वे नहीं माने। जब पानीपत के तीसरे युद्ध में उनकी हार हुई तो महाराजा सूरजमल ने 30-40 हजार सैनिकों को भरतपुर में शरण दी। उस समय वे भूखे-प्यासे थे। भयंकर सर्दी के कारण उनकी हालत खराब थी। महाराजा और महारानी किशोरी ने जनता से अपील कर अनाज इक_ा किया और उस समय लगभग इसका खर्च 20 लाख रुपए आया था। उन्होंने कई माह तक मराठाओं को शरण दी। जाते हुए हर व्यक्ति को एक रुपया, एक सेर अनाज और कुछ कपड़े दिए गए, जिससे उन्हें परेशानी ना हो।
सन् 1753 तक महाराजा सूरजमल ने दिल्ली और फिरोजशाह कोटला तक अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ा लिया था। इस बात से नाराज होकर दिल्ली के नवाब गाजाउद्दीन ने सूरजमल के खिलाफ मराठा सरदारों को भड़का दिया। मराठों ने भरतपुर पर चढ़ाई कर दी। कई माह तक उन्होंने कुम्हेर किले को घेरे रखा। वे भरतपुर पर कब्जा तो नहीं कर पाए, बल्कि मराठा सरदार मल्हारराव के बेटे खांडेराव होल्कर की मृत्यु हो गई। कुछ समय बाद उन्हें महाराजा सूरजमल से सन्धि करनी पड़ी।
भरतपुर रियासत का विस्तार भरतपुर के संस्थापक महाराजा सूरजमल ने भरतपुर रियासत का धौलपुर, आगरा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुडग़ांव और मथुरा तक कर दिया था। 25 दिसम्बर 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हिंडन नदी के तट पर हुए युद्ध में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हो गए।
भरतपुर और आसपास के क्षेत्र के लोगों का कहना है कि हमारे इतिहास को गौरवमयी बनाने का श्रेय सूरजमल जैसे वीर योद्धाओं को जाता है, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे। ऐसे वीर सपूत को गलत तरीके से दिखाना उन्हें बर्दाश्त नहीं है।
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