फौज को अहमद बख्श खान के नेतृत्व में तीन दिन पहले ही अंग्रेजों के शिविर में भेजी जा चुकी थी, भरतपुर रियासत की सीमा के पास स्थित और अलवर रियासत की सीमा में लासवाडी गांव के आसपास फैले इस युद्ध क्षेत्र का अहमद बख्श ने अंग्रेजों के सेनानायक गेराल्ड लेक को पूरा नक्शा समझाया, रणनीति बनाई और अपनी सेना तथा अलवर की स्थानीय जनता को ब्रिटिश फौज के पक्ष में खड़ा किया, इधर हिंदुस्तानी फौज का साथ देने के लिए नीमारणा रियासत के नेतृत्व में लासवाड़ी इलाके के हजारों ऊंट सवार, घुड़सवार और पैदल सैनिक नसवारी पहुंचे।
युद्ध में मारे गए 7000 सैनिक
नीमराणा के राजा उस समय चंद्रभान सिंह चौहान थे। लसवाडी का युद्ध भयंकर युद्ध था जिसमें लिखित दस्तावेजों के मुताबिक 7000 लोग मारे गए और 800 से अधिक लोग गंभीर घायल हुए। इतिहास के जानकार बताते हैं कि नसवाड़ी में हिंदुस्तान फौज का नेतृत्व मराठा सेनानायक अंबाजी इंगले ने किया था तथा दौलतराव सिंधिया प्रतिनिधि थे। अंत में जब यह मैदान निर्णायक रूप में अंग्रेजों के हाथ में चला गया तो राठ की एक घुड़सवार टुकड़ी ने रातों-रात घायल सेनानायक अंबाजी इंगले को युद्ध मैदान से निकालकर नीमराणा के किले में पहुंचाया अंग्रेजों के बाद रिकॉर्ड में इसलिए नीमराणा के राजा चंद्रभान सिंह को बागी राजा लिखा है।
आज भी आते हैं इग्लैंड से सिर झुकाने
नसवारी के ग्रामीण बताते हैं कि भारत के आजाद हो जाने के बाद इंग्लैंड से अंग्रेज आते थे। इतिहासकार बताते हैं कि नसवारी में एक मिट्टी का टीला है यहां युद्ध में मारे गए अंग्रेज अफसरों के शव को दफनाया गया था। इस युद्ध में मेजर, कर्नल और कमांडर मेजर जनरल बेयर भी मरने वालों में शामिल थे। खुद सेनानायक गेराल्ड लेक का बेटा भी युद्ध में मारा गया जिसके शव को मिट्टी के टीले में दफनाया हुआ है आज भी सिर झुकाने के लिए इंग्लैंड से लोग यहां आते हैं।
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नसवारी से गुजरतीहै रूपारेल नदी
अलवर जिले की उदय भान उदय नाथ की पहाड़ियों से निकलने वाली रूपारेल नदी के तट के किनारे नसवारी गांव बसा हुआ है आज भी यहां एक टीला है जिसमें बताया जाता है कि अंग्रेज सैनिकों के सब यहीं पर दफनाए गए थे।