आसावरी और कावेरी के बीच में सीना ताने खड़ा है कांकवाड़ी
दुर्ग सरिस्का गेट से अंदर चलते ही घने जंगल मेंं 23 किलोमीटर अंदर जाकर कहीं नजर आता है कांकवाड़ी दुर्ग। वीरान, सुनसान आसावरी और कावेरी घाटियों के बीच में यह दुर्ग है। पहाड़ी पर बने दुर्ग के नीचे झील है। जहां सर्दियों में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी डेरा डालते हैं। इस बार बारिश की कमी और झील के एक किनारे दीवार में दरार से पानी बेहद कम बचा है। चारों तरफ खजूर के पेड़ हैं। सरिस्का मुख्य द्वार से अंदर जाने के बाद कालीघाटी वन खंड में यह दुर्ग है। वन के अंदर आप आगे जाते जाएंगे दुर्ग के निकट पहुंचने तक भी अहसास नहीं होगा कि सामने ही दुर्ग है। अचानक से पेड़ों के झुरमट से निकलकर सामने नजर आ जाएगा विशाल दुर्ग।
भारत सरकार के संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय के मान्यता प्राप्त टूरिस्ट गाइड निरंजन सिंह राजपूत का कहना है कि किसी जमाने में यहां धनुधारी मीणाओं का आधिपत्य था। मोकलसी और करणसी दो भाईयों में से करणसी ने इस किले की नींव रखी थी। हालांकि बाद में आमेर के राजा जयसिंह द्वितीय ने यहां निर्माण कराया। यहां शुरुआत में बंगाली स्थापत्य का प्रभाव नजर आता है। मुगल स्थापत्य की भी स्पष्ट झलक है। अलवर के संस्थापक महाराज प्रताप सिंह ने दुर्ग का पुन:निर्माण करवाया था। वे खुद यहां छह माह तक रहे थे। इतिहासकार नरेंद्र सिंह राठौड़ का कहना है कि यह दुर्ग बेजोड़ है। वन दुर्ग श्रेणी के दुर्लभ किलों में से यह एक है।
अलवरवासी अनजान आज हाल ये है कि अपने अंदर इतिहास को संजोए हुए कांकवाड़ी से अलवरवासी ही अनजान हैं। पर्यटन के लिहाज से यह वन दुर्ग पूरी दुनिया को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। मत्स्य उत्सव में इस दुर्ग के वैभव को सामने लाने का प्रयास भी किया गया है। अलवरवासी पर्यटक बनकर भी यहां जाएंगे तो अपने अलवर की विरासत के बारे में बहुत कुछ जान पाएंगे। वहां एक बार जाने के बाद आप यह जरूर कहेंगे कि, कांकवाड़ी देखा क्या?
कांकवाड़ी में दाराशिकोह की नजरबंदी के बाद में हुआ था सिर कलम मुगलों के बीच हुए संघर्ष की कहानी का गवाह कांकवाड़ी का किला भी है। शाहजहां के सबसे बड़े बेटे दाराशिकोह को ही मुगल सल्तनत का वारिश माना जा रहा था। औरंगजेब ने छल कपट से दाराशिकोह की हत्या करवा दी थी। कुुछ इतिहासकारों का प्रबल मत है कि औरंगजेब ने दाराशिकोह को कांकवाड़ी के दुर्ग में कैद कर रखा था। एक मत यह है कि उसने छल कपट करते हुए शिकोह से कहा कि मुगल सल्तनत के खजाने को सुरक्षित रखने के लिए जंगलों में यह दुर्ग सबसे मुफीद रहेगा। तब दाराशिकोह को यहां लाया गया था। उसे यहीं कैद कर रखा गया था। उसे छलकपट से
अजमेर के निकट दौराई में पकड़ा गया था। अपने पिता को कैद में डालकर औरंगजेब जनता के बीच अलोकप्रिय था। निरंजन सिंह राजपूत काक हना है कि ऐसे में वह भाई की हत्या का आरोप झेलने से बचना चाहता था। तब उसे यहां रखवाया गया। यहां पीला पानी जगह आज भी है। मान्यता है कि दूषित जल पीला था। किले में उस जल के उपयोग से दाराशिकोह अपने आप बीमार होकर मर जाएगा। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। राजपूत का कहना है कि कांकवाड़ी में बड़ी संख्या में खजूर के पेड़ हैं। ये भी गवाह हैं कि वहां मुगलों का प्रवास रहा था। उनकी डाइट में खजूर शामिल थे। उसके बीज जहां तहां बिखरे होने से धीरे-धीरे खजूर के पेड़ उग आए। फॉरेस्ट गाइड लोकेश खंडेलवाल का कहना है कि बहुत कम संख्या में लोग यहां आ पाते हैं। जबकि वन क्षेत्र में ऐसा दुर्ग और कहीं मिलना संभव ही नहीं है।