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अलवर

सरकार की लेटलतीफी ने खुद की तिजोरी पर लगाया ताला

सरकार ने वैध खानों पर नियमों की पाबंदी लगाने से अवैध खनन की राह आसान हुई है। अलवर जिले में 317 खानें आवंटित हैं, इनमें करीब 100 खानें अभी बंद, जबकि खनन अलवर जिले में रोजगार का बड़ा स्रोत है।इसका बड़ा कारण सरिस्का के इको सेंसेटिव जोन का निर्धारण नहीं होना है। इस कारण आसपास की 80 से ज्यादा खानें बंद हैं।

अलवरJan 12, 2024 / 11:47 pm

Prem Pathak

सरकार की लेटलतीफी ने खुद की तिजोरी पर लगाया ताला

सरकार की लेटलतीफी ने खुद की तिजोरी पर लगाया ताला

खनन सरकार के लिए ही राजस्व ही नहीं, बल्कि रोजगार का बड़ा स्रोत है। यही कारण है कि सरकार ज्यादा से ज्यादा खनन को बढ़ावा देकर सरकारी खजाना भरने के प्रयास में रहती है, लेकिन अलवर जिले में सरकार के प्रयास इसके उलट दिखाई देते हैं। कारण है कि अलवर जिले में पर्यावरणीय स्वीकृति, वन क्षेत्र एवं सरिस्का के इको सेंसेटिव जोन के फेर में वैध खानें भी बंद हो रही हैं। नतीजतन अवैध खनन बढ़ने से सरकार को राजस्व एवं स्थानीय लोगों को रोजगार का नुकसान झेलना पड़ रहा है।
अलवर जिले में खनिज के प्रचुर भंडार हैं। यहां मार्बल, चिनाई पत्थर, डोलोमाइट, ग्रेनाइट, सिलिका, सोप स्टोन सहित अन्य खनिज के भंडार हैं। राज्य की खनिज नीति के तहत अलवर जिले में खनन विभाग की ओर से 317 खनन पट्टे जारी किए गए हैं। लेकिन वर्तमान में इनमें 100 से ज्यादा वैध खानें विभिन्न सरकारी पाबंदियों के चलते बंद हैं। इन खानों के बंद होने का बड़ा कारण सरिस्का का इको सेंसेटिव जोन के प्रारूप की अंतिम अधिसूचना जारी नहीं होना, पर्यावरणीय स्वीकृति एवं वन क्षेत्र में डायवर्जन आदि हैं।
निर्माण सामग्री की बढ़ रही मांग, वैध खानें बंद
जिले में निर्माण सामग्री की मांग में हर दिन वृदि्ध हो रही है, वहीं वैध खानें बंद हो रही है। बाजार में निर्माण सामग्री की मांग होने से खान माफिया सक्रिय होकर अवैध खनन को बढ़ावा दे रहे हैं। इससे सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है, वहीं स्थानीय लोगों को रोजगार भी नहीं मिल पा रहा है। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या बढ़ने लगी है।
एक अरब से ज्यादा का राजस्व मिलता अलवर से

राज्य सरकार को अलवर जिले से खनन से एक अरब राशि से ज्यादा राजस्व हर साल मिलता है। इसमें वैध खनन पट्टों से होने वाली आय ज्यादा होती है। एक खान से सैंकड़ों स्थानीय लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं। खानें बंद होने से स्थानीय लोगों का रोजगार भी छिन जाता है। वहीं खनन पट्टों से मिलने वाले राजस्व में भी कमी आती है।
इको सेंसेटिव जोन खुले तो बढ़ने खनन पट्टे

लंबे समय से सरिस्का का इको सेंंसेटिव जोन निर्धारित नहीं हो पाया है। इसके कारण 80 से ज्यादा खानें बंद हैं। वहीं करीब 150 नई खानों पर भी ग्रहण लगा है। सरिस्का के इको सेंसेटिव जोन का प्रारूप एक बार समयावधि निकल जाने के कारण रद्द हो चुका है, वहीं दूसरी बार राज्य सरकार के विचाराधीन है।

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