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अलवर: पति ऑटो चालक…पत्नी मिर्च का उत्पादन कर कमा रही लाखों रुपये 

अलवर की सरिता ने कृषि में किया नवाचार, गेंदे की पौध तैयार, चंदन के भी लगाए पौधे। अन्य महिलाओं को भी

अलवरJul 09, 2024 / 12:42 pm

Rajendra Banjara

सैदमपुर बास गांव की सरिता मिर्च के साथ

अलवर के गोविंदगढ़ सैदमपुर बास गांव की सरिता ने खेती में नवाचार कर किसान महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं। इसने परंपरागत खेती के अलावा मिर्च-मसाले की खेती में नवाचार किया है।

सरिता अब तक 7 बिस्वा खेत में अत्याधुनिक पद्धति से मिर्च उगाकर लाखों रुपए का मुनाफा कमा चुकी है। इब्तिदा संस्था व एक्सिस बैंक फाण्डेशन के सहयोग से महिला आजीविका संर्वधन कार्यक्रम के तहत सरिता को भी खेती का प्रशिक्षण मिला था। इनके खेत की मिर्च अलवर के अलावा दूसरे शहरों में जा रही है।

सरिता ने अच्छी किस्म के बीज लेकर नर्सरी लगाकर पौध तैयार की। उसके बाद पौध को खेत में लगाकर ड्रिप पद्धति से सिंचाई कर पानी की बचत की। पहली तुडाई में 80 रुपए किलो का भाव मिला। रोजाना एक क्विंटल से अधिक मिर्च तुडाई की जा रही है। वर्तमान में भी रेट 35 से 40 रुपए किलो का भाव मिल रहा है। इससे महिलाओं को रोजगार भी मिला है।

ड्रिप सिंचाई को अपनाया: सरिता ने बताया कि उसका पति गुडगांव में ऑटो चलाता है। घर में अकेली थीं। परंपरागत खेती में मेहनत और खर्चा दोनों अधिक है, इसलिए संस्था से जुडकऱ प्रशिक्षणों के माध्यम से नई पद्धति से खेती करने के बारे में प्रशिक्षण लिया। सरिता ने मिर्च की फसल ड्रिप सिचांई और उठी हुई क्यार (बेड) बनाने को अपनाकर वह अकेली ही कम समय व कम लागत में मोटा मोनाफा कमा रही हैं।

नकदी फसल पर किसानों का ध्यान नहीं: हम महिलाओं को मलचिंग खेती लिए प्रशिक्षित करते हैं। गोविंदगढ़ उपखंड में कई जगह मलचिंग खेती से पैदावार की गई है। जिसमें किसान सफल भी हुए है। मलचिंग खेती को सिर्फ एक व्यक्ति भी कर सकता है। जानकारी के अभाव में हमारे क्षेत्र में लोग इस पर ध्यान नहीं देते है। जिसके चलते इधर खाद्यान्न फसल उगाने का प्रचलन है। नकदी फसल पर किसानों को ध्यान नहीं है।

सरिता ने अब चंदन के पेड़ लगाए है और वह गेंदे की खेती के लिए पौध तैयार कर रही हैं। पिछली बार सरिता ने गेंदे की खेती कर 2 लाख से अधिक रुपए कमाए हैं। मलचिंग खेती से सरिता अब अपना खुद का पक्का घर बना चुकी है। पहले उसे एक झोंपड़ी का सहारा था और सरकार से लाभ लेने के लिए चक्कर लगाने पड़े थे।

यह है मलचिंग खेती

मलचलिंग खेती एक पद्धति है। इससे जड़ गलने की सभावना बहुत ही कम रहती है। इससे मजदूरी की बचत होती है। लोटनल बनने से पोधों में कीट का प्रकोप कम हो जाता है।

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