क्या आप जानते हैं कि कुंभ सिर्फ एक नहीं बल्कि 4 प्रकार के होते हैं? कुंभ मेले के प्रकार हैं- कुंभ, अर्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ। हर मेला अलग-अलग समय पर आता है और हर मेले का अपना महत्व है। यह मेला ग्रहों की स्थिति के अनुसार मनाया जाता है। आइए इसके बारे में और जानते हैं…
कुंभ मेला
सबसे पहला प्रकार है- कुंभ मेला। यह हर 12 साल पर मनाया जाता है। इस मेले का आयोजन पूरे भारत में सिर्फ चार जगहों पर होता है- उज्जैन, नासिक, प्रयागराज और हरिद्वार। इन चार प्रमुख स्थानों का चयन ज्योतिष के मुताबिक किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु इन शहरों में बहने वाली पवित्र नदियों में स्नान करने जाते हैं। हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज में तीन नदियों का संगम है। अर्ध कुम्भ मेला
एक कुंभ मेला हर 6 साल के बाद मनाया जाता है, तो इसे अर्ध कुंभ कहा जाता है। इस कुंभ का आयोजन सिर्फ दो स्थानों पर होता है – हरिद्वार और प्रयागराज।
पूर्ण कुंभ मेला
हर 12 साल पर मनाए जाने वाले कुंभ को पूर्ण कुम्भ मेला कहा जाता है। कुंभ और पूर्ण कुंभ में यह अंतर है कि कुंभ का आयोजन चार स्थानों पर होता है और पूर्ण कुंभ का आयोजन केवल प्रयागराज में होता है।
महाकुंभ मेला
कुंभ का वो मेला जो हर 144 साल के बाद आयोजित होता है तो उसे महाकुंभ कहा जाता है। इसका आयोजन केवल प्रयागराज में होता है। इस प्रकार का कुंभ मेला अत्यंत दुर्लभ है और इसलिए और भी खास है। 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ आता है। कुंभ मेले के लिए कैसे होता है स्थान का निर्णय?
कुंभ मेले का आयोजन पूरे भारत में सिर्फ चार जगहों पर होता है- उज्जैन, नासिक, प्रयागराज और हरिद्वार। अब स्थान का चयन कैसे होता है, आइए जानते हैं। स्थान के चयन के लिए ज्योतिष और अखाड़ों के नेता एक साथ आते हैं और उस स्थान का निर्णय लेते हैं जहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाएगा।
हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तब हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन होता है। उज्जैन: कुंभ मेला उज्जैन में तब मनाया जाता है जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में होता है।
नासिक: नासिक में महाकुंभ मेला तब लगता है जब सूर्य और बृहस्पति दोनों आकाशीय नक्षत्र सिंह राशि में होते हैं। प्रयागराज: प्रयागराज में महाकुंभ तब होता है जब बृहस्पति ग्रह वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होता है।