डॉक्टर अहमद ने कहा कि भारत के विभाजन से पूर्व पैदा होने वाली नस्ल उर्दू को मुस्लिम पहचान के लक्षण के रूप में नहीं देखती है। उन्होंने कहा कि उर्दू की विशेष ध्वनियों का विभाजन जो मुसलमानों तथा हिन्दुओं में बराबर रूप से पाया जाता है, उससे भी यह सिद्ध होता है कि इन आवाजों का प्रयोग मुस्लिम पहचान के साथ विशेष नहीं है। डॉक्टर रिजवान अहमद ने कहा कि मुसलमानों तथा हिन्दुओं की विभिन्न नस्लों पर शोध से ज्ञात होता है कि विभिन्न नस्लें उर्दू भाषा को विभिन्न अर्थ देती हैं। उन्होंने कहा कि प्राचीन नस्ल के मुकाबले मुस्लिम युवा, उर्दू के साथ स्वयं को नहीं जोड़ते। मुस्लिम युवाओं की बातचीत में उर्दू की आवाजों के अध्ययन से पता चलता है कि वह तीन से पॉच आवाजों को छोड़ रहे हैं जो उर्दू भाषा के साथ विशेष है।
उन्होंने उर्दू के 160 वर्षीय इतिहास पर चर्चा करते हुए कहा कि उर्दू के संकेतात्मक अर्थों में यह परिवर्तन उन समाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों का प्रतिबिंब है जो बीसवीं शताब्दी में यहॉ के मुसलमानों के अंदर आई है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि भारत में साक्षरता कार्यक्रम और शिक्षा के तरीके में आने वाली परिवर्तन में भी उर्दू के संकेतात्मक अर्थों में परिवर्तन हुआ क्योंकि बहुत से मुसलमानों उर्दू लिखने के लिये देवनागरी को अपनाया जो एक बड़े परिवर्तन का कारण बना।
डॉ. अहमद ने बालीवुड में भाषा के स्तर पर आने वाले परिवर्तनों के विषय पर अपना शोध प्रस्तुत करते हुए उर्दू के प्रयोग में आने वाले परिवर्तन की चर्चा की जिसे हालिया वर्षों में विभिन्न स्कॉलर ने महसूस किया है। डॉ. रिजवान अहमद ने समाजिक एवं भाषाई पहलू से बॉलीवुड के गीतों में प्रयोग होने वाली भाषा तथा उसमें उर्दू के तत्वों का विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह बड़े स्तर पर होने वाले भाषाई परिवर्तन की प्रतीक है। उन्होंने कहा कि पूर्व काल के बॉलीवुड के स्क्रिप्ट लेखक, गीतकार तथा संगीतकार उर्दू से भलीभांति परिचित होते थे तथा अधिकतर की शिक्षा भी उर्दू में हुई थी। उनके स्थान पर नई पीढ़ी के स्क्रिप्ट राइटर, गीतकारों तथा संगीतकारों ने ले ली है जो हिन्दी तथा अंग्रेजी की शैक्षणिक परम्पराओं से सम्बन्ध रखते हैं।
व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए इतिहास विभाग के प्रो. मोहम्मद सज्जाद ने कहा कि टेलीविजन ने बोलचाल की एक नई भाषा तथा नये लहजे का रिवाज दिया है। उन्होंने कहा कि टेलीविजन के न्यूज़ एंकर शब्दों को गलत उच्चारण के साथ धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं तथा उन्हें सुनने तथा देखने वाले भी इसके आदी होते जा रहे हैं।
इससे पूर्व भाषा विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. एस इम्तियाज हसनैन ने अतिथि वक्ता का संक्षिप्त परिचय कराया तथा उनके शैक्षणिक एवं शोध प्रयासों की विशेष रूप से चर्चा की, जिनमें लेखों में भाषाओं के प्रयोग, दिल्ली में मुस्लिम पहचान तथा बॉलीवुड के गीतों में बदलती हुई भाषाई परम्पराएं शामिल हैं। अंत में डॉ. मोहम्मद जहांगीर वारसी ने अतिथिवक्ता तथा उपस्थितजनों के प्रति आभार व्यक्त किया। व्याख्यान के दौरान शिक्षक व शोधार्थी मौजूद रहे।