बसंत का जुलूस सुबह 11 बजे दरगाह के मुख्य द्वार निजाम गेट से रवाना होगा। इसमें शाही चौकी के कव्वाल असरार हुसैन व साथी हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए और बसंत के गीत गाते हुए चलेंगे। जुलूस बुलंद दरवाजा, शाहजहानी गेट होते हुए अहाता-ए-नूर पहुंचेगा। वहां से कव्वाल आस्ताना शरीफ में जाएंगे और मजार शरीफ पर फूलों का गुलदस्ता पेश करेंगे।
ऐसे शुरू हुई परम्परा बताया जाता है कि हजरत निजामुद्दीन ओलिया अपने भान्जे तकउद्दीन नूह का इंतकाल होने के बाद उदास रहने लगे। उनके चेहरे पर खुशी लाने के लिए एक दिन हजरत अमीर खुसरो ने अपने लफ्जों से सजी बसंत पेश की। तब से सूफी संतों की दरगाहों में बसंत पेश किए जाने का सिलसिला शुरू हो गया। ख्वाजा साहब की दरगाह में बसंत की परम्परा कब से शुरू हुई, यह अधिकृत जानकारी नहीं है लेकिन सालों से यह परम्परा शाही चौकी के कव्वाल निभाते आ रहे हैं। पहले बसंत का जुलूस लाखन कोटड़ी से शुरू होता था, 1947 के बाद बसंत का जुलूस निजाम गेट से शुरू होने लगा है।