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Eid Mubarak : पाली में चांद दिखा, अजमेर में बकरीद 12 को

ajmer news-bakrid : अल्लाह की राह में कुर्बानी का त्योहार ईद-उल-अजहा (बकरीद) 12 अगस्त को मनाया जाएगा। इस्लामिक माह जिल हिज के चांद की शहादत मिलने के बाद शुक्रवार शाम हिलाल कमेटी ने यह घोषणा की। पाली से चांद की शहादत मिलने के बाद एलान किया गया।

अजमेरAug 03, 2019 / 02:44 am

युगलेश कुमार शर्मा

Show the moon in pali, Bakrid in Ajmer on 12 august

Eid Mubarak : पाली में चांद दिखा, अजमेर में बकरीद 12 को

अजमेर. चांद देखने के लिए हिलाल कमेटी की बैठक दरगाह कमेटी (dargah committee) कार्यालय में शुक्रवार शाम शहर काजी तौसीफ अहमद सिद्दीकी की सदारत में हुई। इस दौरान अजमेर (ajmer) में कहीं चांद दिखाई नहीं दिया। मौलाना बशीरूल कादरी ने बताया कि पाली से चांद की शहादत मिलने के बाद चांद की घोषणा की गई है। इस हिसाब से 8 अगस्त को ख्वाजा साहब की महाना छठी होगी और 12 अगस्त को बकरीद (bakrid) होगी। खादिम एस.एफ.हसन चिश्ती ने बताया कि बकरीद के दिन ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा भी खोला जाएगा। यह दरवाजा तड़के 4 बजे से दोपहर 2 बजे तक खुला रहेगा। उन्होंने बताया कि 11 अगस्त को दरगाह में सरहदी क्षेत्रों कच्छ, भुज, कश्मीर, बाड़मेर, जैसलमेर से आए जायरीन रात भर इबादत करेंगे। उन्होंने बताया कि यह लोग हज यात्रा पर नहीं जा पाते, इसलिए यहां आकर इबादत करते हैं।
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सात बार इस दरवाजे से गुजरने की मचती है होड़

ईद के मौके पर ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित जन्नती दरवाजा भी खोला जाएगा। तड़के 4 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे तक इस दरवाजे से गुजर कर जियारत की जा सकेगी। यह दरवाजा साल में चार बार विशेष मौकों पर ही खोला जाता है। यही कारण है कि दरवाजा खुलने से पहले ही महिला-पुरुष जायरीन की लम्बी कतार लग जाती है। धार्मिक मान्यता है कि कोई बीमार, आर्थिक कारण या शारीरिक अक्षमताओं के चलते हज पर नहीं जा पाता, वह दरगाह स्थित जन्नती दरवाजे से आस्ताना में प्रवेश कर मजार पर मत्था टेकता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो सात बार इस दरवाजे से गुजर कर जियारत करता हैं वह जन्नत का हकदार होता है। इसी ख्वाहिश के चलते अकीदतमंद में जन्नती दरवाजे से गुजरने की होड़ मची रहती है।
इसलिए है यह मान्यता

जन्नती दरवाजे का निर्माण ख्वाजा हुसैन नागौरी ने करवाया था। मुगल बादशाह शहंशाह ने सन् 1643 में इसे मुकम्मल कराया। यह भी कहा जाता है कि ख्वाजा साहब स्वयं इस रास्ते से ही अपने हुजरे में आते-जाते थे। दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने बताया कि जन्नती दरवाजे का रुख पश्चिमी दिशा में होने से इसे विशेष धार्मिक महत्व मिला। धार्मिक स्थल मक्का के इसी दिशा में होने से जन्नती दरवाजा को मक्की दरवाजा भी कहा जाता है। इन्हीं मान्यताओं के चलते दरवाजे से निकलना जन्नत नसीब होने के बराबर माना जाता है।

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