दरअसल बिजयनगर में बाड़ी माता का प्रसिद्ध मंदिर है जिसे मां दुर्गा का ही एक रूप कहा जाता है। यह तीर्थ स्थल की तरह पूजा जाता है। यहां आसोज नवरात्रि पर रावण की जगह महिषासुर का दहन किया जाता है। यह परंपरा बीस साल से भी पहले से चल रही है। मंदिर परिसर में ही करीब 41 फीट के महिषासुर का पुतला दहन किया जाता है। इसके पीछे एक रोचक मान्यता है। स्थानीय लोग और मंदिर प्रबंधन का मानना है कि महिषासुर एक ऐसा राक्षस था जिसका वध करने के लिए देवी को ब्रहमा, विष्णु और महेश समेत अन्य बड़े देवताओं की शक्ति से बने अस्त्रों का उपयोग करना पड़ा था। माता ने शेर पर आकर विशेष अस्त्रों से उसका वध किया था। वह बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक था और इसी कारण पिछले कई सालों से उसका पुतला दहन किया जा रहा है।
मंदिर प्रबंधन का कहना है कि कई साल पहले प्रबंधन से जुड़े चुन्नीलाल टांक ने इस प्रथा को शुरू किया था और तभी से इस प्रथा के अनुसार ही रावण नहीं महिषासुर का पुतला दहन किया जाता है। इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते है। मेले जैसा माहौल रहता है। बाड़ी माता का मंदिर शक्तिपीठ है।