अब तो यहां आने वाले देश-दुनिया के लाखों श्रद्धालु भी मालपुए को प्रसाद के रूप में ही खरीदकर ले जाते हैं। इनका स्वाद ही ऐसा है कि हर कोई खाने के लिए आतुर रहता है। पुष्करराज में हर साल अन्तरराष्ट्रीय मेले में आने वाले लाखों श्रद्धालु भी यहां आकर देशी-घी में बने मालपुए जरूर खाते हैं और लौटने के दौरान श्रद्धालु इसे ब्रह्माजी का प्रसाद के रूप में पैकिंग करवाकर साथ ले जाते हैं।
हलवाई ओम जाखेटिया व प्रदीप कुमावत के अनुसार पुष्कर में करीब ढाई सौ साल से मालपुए बनाए जा रहे हैं। कुछ दशक पहले तक कस्बे में तीन चार दुकानों पर ही मालपुए बनाए जाते थे, लेकिन प्रसिद्धि बढऩे के साथ ही अब दस से अधिक दुकानों पर मालपुए बनाए जाकर बेचे जा रहे हैं। गरम-गरम शक्कर की चाशनी से लबरेज देशी घी से निर्मित रबड़ी के मालपुए खाने में स्वादिष्ट है और सेहत के लिए भी नुकसानकारक नहीं है।
पुष्कर में प्रतिदिन प्रतिकिलो 360 रुपए की दर से 200 किलो से अधिक मालपुओं ( Malpua ) की बिक्री होती है। एक किलो में करीब 25 मालपुए तुल जाते हैं। ऐसे में प्रतिदिन पुष्कर में 5 हजार मालपुओं की बिक्री हो रही है। कार्तिक मास, धार्मिक उत्सवों व पुष्कर मेला भरने के दौरान प्रतिदिन 1000 किलो मालपुए भी बिक जाते हैं। चूंकि रबड़ी व देशी घी में बनने के कारण ये मालपुए 25 दिन तक खाए जा सकते हैं।
रबड़ी के मालपुओं को बनाने में दूध व मैदा काम लिया जाता है। उत्तम फेट का दस किलो दूध लगातार उबालने के बाद गाढ़ा करके साढ़े चार किलो कर लिया जाता है। इस रबड़ीनुमा दूध मेें तीन सौ ग्राम मैदा मिलाकर घोल बना लिया जाता है। इस घोल से देशी गर्म घी में डालकर जालीदार मालपुए बनते हैं। कड़क सिकाई के बाद मालपुओं को एक तार की चासनी में डुबो दिया जाता है। चासनी में केसर व इलायची मिलाने से मालपुओं का स्वाद बढ़ जाता है।
पुष्कर का गुलकंद भी देश-दुनिया तक प्रसिद्ध है। यहां का गुलाब जल दुनिया के हर कौने तक पहुंच रहा है। गुलकंद बनाने का यहां कारोबार बढ़ रहा है। पुष्कर में गुलाब की खेती होने से यहां गुलकंद व गुलाबजल बनाकर विदेशों तक निर्यात हो रहा है।