स्थाई प्राचार्यों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर चार साल से कागजी घोड़े दौड़े हैं। सबसे पहले तकनीकी शिक्षा विभाग ने अप्रेल 2016 में तकनीकी शिक्षा विभाग ने जयपुर में साक्षात्कार कराए, पर कोर्ट केस के चलते नियुक्ति नहीं हो सकी। 2018 में आवेदन लेने के बाद भी साक्षात्कार नहीं हो सके। अब 2020 में दोबारा आवेदन लिए गए हैं। साक्षात्कार का अता-पता नहीं है।
प्राचार्य पद के लिए आईआईटी, एमएनआईटी और इनके समकक्ष सरकारी-निजी संस्थानों के प्रोफेसर और रीडर आवेदन करते हैं। लेकिन 2018 और 2020 में लिए गए आवेदनों में ज्यादा शिक्षकों ने रुचि नहीं दिखाई। अव्वल तो आईआईटी-एनआईटी में वेतन और भत्ते आकर्षक हैं। दूसरी ओर राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेज में सरकारी दखलंदाजी ज्यादा है।
इंजीनियरिंग कॉलेज चार साल से कामचलाऊ प्राचार्यों के भरोसे हैं। अजमेर सहित अन्य कॉलेज में वहीं के रीडर को अतिरिक्त प्रभार सौंपना जारी है। पिछली भाजपा और मौजूदा कांग्रेस सरकार स्थाई प्राचार्य नहीं तलाश पाई है।
-स्टाफ और कर्मचारियों के वेतन-भत्तों में दिक्कतें
-सरकार से नहीं मिल रहा नियमित अनुदान
-कॉलेज में नहीं उपाचार्यों का पद सृजित-शिक्षकों की नियुक्तियों
-भर्तियों पर उठते रहे हैं सवाल
-1996-97 और इसके बाद खुले कॉलेज में नहीं हैं प्रोफेसर