विश्वविद्यालयों की पहचान उत्कृष्ट शोध (research work )से होती है। इसमें गुणवत्तापूर्ण शोध (quality research ) सबसे अहम है, जो देश-प्रदेश और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाता है। प्रदेश के विश्वविद्यालयों में शोध गुणवत्तापूर्ण नहीं हो रहे हैं। खासतौर पर शोध के पेटेंट नहीं कराए जा रहे। नैक की ग्रेडिंग में बीते दो-तीन साल में विश्वविद्यालयों की खराब स्थिति के पीछे भी यही कारण है। शोधार्थियों और संस्थानों के शोध कार्यों का शहरी (urvan area)अथवा ग्रामीण क्षेत्रों (rural area)से सीधा जुड़ाव नहीं है। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में तो डेढ़ साल साल शोध प्रवेश परीक्षा ही नहीं हुई है।
नहीं हो रहा बरसाती पानी का संग्रहण केंद्र (central govt) और राज्य सरकार (state govt) ने सभी सरकारी अैार निजी विभागों, आवासीय एवं व्यावसायिक भवनों को बरसात के पानी को संग्रहण करने के निर्देश दिए हैं। कई सरकारी और निजी महकमों और घरों में इसकी शुरुआत हो भी गई है। फिर भी यह इनकी संख्या अंगुलियों पर गिनने लायक ही हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय सहित कई संस्थाओं में बरसात के पानी का संग्रहण (rain water conservation)नहीं हो रहा है। राजभवन ने सभी विश्वविद्यालयों से इसकी रिपोर्ट मांगी है।
सौर-पवन ऊर्जा का नहीं उपयोग
गैर पारम्परिक ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए पिछले साल कुलपति समन्वय समिति में फैसला हुआ था। विश्वविद्यालयों में सौर ऊर्जा पैनल (solar energy), पवन चक्की (wind cycle) लगाई जानी थी। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय और कुछेक को छोडकऱ अधिकांश विश्वविद्यालय उदासीन हैं। इनका कार्य संतोषजनक नहीं है। पिछले दिनों वीडियो कॉन्फे्रंसिंग में भी यह मुद्दा उठ चुका है। विश्वविद्यालयों में लाखों रुपए के बिजली आ रहे हैं। किसी विभाग-दफ्तर में आठ से दस लाइट एकसाथ जलाकर कामकाज किया जाता है।
पिछले साल भेजा था पत्र बीते साल राजभवन (raj bhawan rajasthan)ने विश्वविद्यालयों को पत्र भेजा था। इसमें विश्वविद्यालयों को शैक्षिक उत्तरदायित्व के अलावा सामाजिक सरोकार और कई अहम कार्यों में काफी पिछड़ा बताते हुए तत्काल सुधार की जरूरत बताई गई थी। इसे विश्वविद्यालयों का रिपोर्ट कार्ड माना गया था।
रेन हार्वेस्टिंग में कई संस्थाएं पीछे
शहर के 60 प्रतिशत सरकारी महकमों, निजी प्रतिष्ठानों, स्कूल-कॉलेज और अन्य संस्थाओं में रेन वाटर हार्वेस्टिंग (rain water harvesting)नहीं है। नला बाजार, कचहरी रोड, मदार गेट, महावीर सर्किल, वैशाली नगर, सावित्री स्कूल चौराहा, जयपुर रोड, मार्टिंडल ब्रिज, तोपदड़ा और आगरा गेट में पानी का भराव सर्वाधिक होता है। बरसात के रूप में जिले में करीब 5,550 एमसीएफटी पानी गिरता है। इसमें से ढाई हजार एमसीएफटी पानी ही झीलों-तालाबों अथवा भूमिगत टैंक तक पहुंचता है। बाकी पानी व्यर्थ बह जाता है।
फैक्ट फाइल…. प्रदेश में सरकारी विश्वविद्यालय-27
प्रदेश में निजी विश्वविद्यालय-50 विश्वविद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थी-5 लाख से ज्यादा