पहाडग़ंज स्थित एक भूखंड राणा को आवंटित किया गया था। इसके पड़ोस में रहने वाले शकूर ने इस पर निर्माण सामग्री व अन्य सामान डाल कर कब्जा कर लिया। मामला अदालत में 25 मार्च 1983 को पहुंचा। राणा ने बेदखली का वाद किया। जिसे अदालत ने 27 नवम्बर 1992 को राणा के पक्ष में तय कर दिया। इसके बाद राणा के पुत्र मंघाराम ने वकील जतनचंद जैन, जेपी ओझा व दीपक अग्रवाल के जरिए डिक्री की पालना करने की अर्जी लगाई।
प्रतिवादी शकूर ने डिक्री की पालना नहीं होने दी व आपत्ति दर आपत्ति लगाता रहा। करीब 26 साल यह कानूनी लड़ाई चली। शकूर कभी वादी को मालिक होने से इनकार करता रहा तो कभी स्वयं को काबिज होने के आधार पर मालिक बताता रहा। अंतत: अदालत ने कुर्की की कार्रवाई के आदेश देते हुए कोर्ट नाजिर जैन को पुलिस इमदाद के साथ भूखंड का कब्जा दिलाया।