आज की युवा पीढ़ी को तो यह पता ही नहीं होगा कि अजमेर के चश्मा – ए – नूर क्षेत्र की पहाड़ियों (हैप्पी वैली) में गुपचुप बैठकें होती थीं। यहां बारुद-पोटाश के जरिए टाइम बम बनाए जाते थे। यही नहीं आजादी के दीवाने युवा जोखिम लेकर गंतव्य तक पहुंचाते थे। कुछ ऐसी यादें शतायु होने जा रहे
अजमेर के जादूघर निवासी स्वतंत्रता सेनानी शोभाराम गहरवार के स्मृति पटल में अंकित हैं। शतायु के करीब गहरवार से हुई चर्चा के कुछ अंश।
त्यागी लोगों ने दिलाई आजादी
उन्होंने कहा कि महापुरुषों व वीरों का हम पर ऋण है। वह प्रेरणा के स्त्रोत हैं। इनकी जीवन गाथा संघर्ष की याद दिलाती है। उन्होंने कहा कि अब सरकार को पेंशन बढ़ानी चाहिए। रोजगार देना चाहिए। युवा भटक रहा है, इसके लिए जागने की जरुरत है।
गांधीजी आए उनके निवास पर
आजादी का जज्बा होने के कारण केसरगंज बैठकों में पहुंचते थे।शिकायत आती तो घर वाले भी सहयोग करते, कभी रोका नहीं। 1934 में महात्मा गांधी उनकी कच्ची झोंपड़ी में आए तक उन सहित पांच युवाओं को सेवादल की सफेद ड्रेस पहनाई। उन्होंने गांधी के पांव छुए तो उन्हें आशीर्वाद दिया। गहरवार ने बताया कि अजमेर के तारागढ़ की तलहटी में स्याही की गाळ या चश्मा – ए – नूर हैप्पी वैली में टिफिनों में विस्फोटक सामग्री पहुंचाते थे। यहां युवा क्रांतिकारी बम बनाते थे। यहां बनाए गए विस्फोटक पूना, मुंबई, महाराष्ट्र, बनारस आदि स्थानों तक पहुंचाते। यहां एक शेर भी प्रतिदिन पानी पीने आता था लेकिन उसने कभी हमला नहीं किया। यहां तैयार किए गए बम को ट्रेन में पुलिस से बचते हुए गंतव्य तक पहुंचाते थे। मुगलसराय में एक बार कोयले के इंजन में शरण लेनी पड़ी। बनारस पहुंचने पर डॉ. संपूर्णानंद ने पीठ थपथपाई।
गहरवार ने बताया कि अजमेर के केसरगंज गोल चक्कर में अक्सर बैठकें होती थीं। हर विलास शारदा, रामनारायण चौधरी, अब्बास अली आदि लोगों के जनअभाव अभियोग सुनते थे। इस दौरान वहां खड़े होने वाले तांगों का अंग्रेज शासक चालान बना देते थे। जुर्माना लगाते थे। तब सेठ भागचंद, टीकमचंद आदि से आग्रह करते। यह सेठ अपने मुंशियों को वहीं बैठा देते थे जो राशि जमा करवा कर आमजन को राहत दिलवाते थे।