इससे अमोनिया के उत्पादन में उच्च दबाव और तापमान की जरूरत नहीं होगी। इससे बिजली की बचत होगी और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा। वर्तमान में अमोनिया गैस का उत्पादन उच्च ऊर्जा वाली हेबर-बॉश प्रक्रिया से होता है। इसमें हाइड्रोजन (एच2) और नाइट्रोजन (एन2) के अणुओं को विभाजित करने के लिए 200 एटमोस्फेयरिक प्रेशर और 500 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। यह अध्ययन हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पत्रिका एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुआ है।
शोध में मुख्य चुनौती नाइट्रोजन गैस को कुशलतापूर्वक तोडऩे की थी, क्योंकि नाइट्रोजन अपने दो परमाणुओं के बीच मजबूत तिहरे बंधन से बंधी होता है। संस्थान के केमिकल इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर कबीर जसूजा के नेतृत्व में रिसर्च टीम ने टाइटेनियम डाइबोराइड (टीआईबी2) से प्राप्त नई 2डी उत्प्रेरक सामग्री (नैनोशीट) का उपयोग कर इस चुनौती को हल किया। यह ऐसी सामग्री है, जो मल्टी-स्टैक्ड सैंडविच जैसी दिखती है, जिसमें बोरोन की परतों के बीच में धातु मौजूद होता है।प्रो. जसूजा बताते हैं कि प्रयोगों के दौरान हुई आकस्मिक अवलोकन की घटना ने इसके लिए प्रेरित किया। नैनोशीट्स हवादार परिस्थितियों में नाइट्रोजन के साथ रिएक्शन कर रही थी, जिसकी हमने कभी उम्मीद नहीं की थी।प्रो.राघवन रंगनाथन की टीम ने कम्प्यूटेशनल मॉडलिंग के जरिए जानकारी में पाया कि नाइट्रोजन की उपस्थिति में नैनोशीट पर टाइटेनियम और बोरोन परमाणुओं के बीच एक इलेक्ट्रॉन रस्साकशी होती है, जिस कारण यह असाधारण उत्प्रेरक क्षमता उत्पन्न होती है।