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अहमदाबाद

Ahmedabad news : इसलिए नाम पड़ा लोटेश्वर महादेव

माता के नियम को पूरा करने के लिए भीम ने बनाया था मिट्टी के लोटे से शिवलिंग, Ansnd news, Ahmedabad news, Gujrat news, Loteshwar mahadev

अहमदाबादSep 22, 2019 / 09:06 pm

Gyan Prakash Sharma

Ahmedabad news : इसलिए नाम पड़ा लोटेश्वर महादेव

Ahmedabad news : इसलिए नाम पड़ा लोटेश्वर महादेव

आणंद. हर पौराणिक स्थल के पीछे कोई ना कोई कहानी होती है, फिर चाहे व शिवलिंग हो या प्राचीन कोई मंदिर। आणंद के लोटेश्वर महादेव मंदिर के पीछे भी कुछ इसी प्रकार की पौराणिक कथा है। बताया जाता है कि माता कुंती के नियम को पूरा करने के लिए भीम ने मिट्टी के लोटे को उल्टा रखकर शिवलिंग जैसा बना दिया था। इसलिए इस शिवलिंग का नाम लोटेश्वर महादेव हो गया। इस शिवमंदिर के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम भी लोटेश्वर हो गया है। यहां पर महाशिवरात्रि एवं श्रावण महीने के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
ऐसे बनाया लोटेश्वर महादेव
पौराणिक कथाओं के अनुसार करीब ५ हजार वर्ष पूर्व द्वापर युग में पांडव जब वनवास में थे, तो वह घूमते-घूमते इस स्थल पर पहुंचे, जहां अभी आणंद शहर वसा है। पांडवों के साथ उनकी माता कुंती भी थी। माता का नियम था कि वह शिवलिंग के दर्शन किए बिना भोजन नहीं करती थीं। माता के इस नियम के चलते भीम को भी भूखा रहना पड़ता था, जिन्हें भूख सहन नहीं होती थी। इस स्थल पर कहीं शिवलिंग नहीं मिला तो माता कुंती ने भोजन नहीं किया, जिसके कारण भीम को भी भूखा रहना पड़ा था। ऐसे में भीम ने एक युक्ति खोजी और पेड़ की जड़ में मिट्टी के लोटे को उल्टा रखकर शिवलिंग के रूप में दर्शाया, जिसकी पूजा-अर्चना के बाद माता ने भोजन किया। तभी से यह लोटेश्वर महादेव के रूप में पूजा जाता है। मंदिर के निकट एक तालाब है, जिसे लोटेश्वर तालाब के रूप में और समग्र क्षेत्र को लोटेश्वर क्षेत्र के रूप में पहचाना जाता है।
१९८८ में बनाया शिखरबंद मंदिर

आज से ६० वर्ष पूर्व मंदिर के चारों ओर वाड़ थी और पुराना छोटा मंदिर था, जहां एक साधु शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते थे। गांव में मांगने पर जो कुछ मिलता, उसमें से पूजा का खर्च निकालकर साधु जीवन-यापन करते थे। बाद में गांव के वरिष्ठ लोगों ने मंदिर ट्रस्ट बनाया और १९८८ में मंदिर का जीर्णोद्धार करके शिखरबंद मंदिर बनाया था। वर्ष १९९५ में मंदिर में अलग-अलग देवी-देवताओं के भी मंदिर बनाए गए। मंदिर परिसर में लग्नवाड़ी (विवाह वाड़ी) भी बनी हुई है, जहां विवाह आयोजित किए जाते हैं। ट्रस्टियों की ओर से मंदिर का लगातार विकास किया जा रहा है।
जीर्णोद्धार के समय निकली थी ईंट


आज से ३१ वर्ष पूर्व मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। उस समय खुदाई के दौरान ईंट निकली थी। पुराना मंदिर छोटा था। मंदिर के निकट तालाब भी है, जो लोटेश्वर तालाब के रूप में प्रसिद्ध है। तालाब के किनारे पर भी खुदाई के दौरान ईंट निकली थी, जिसे देखकर माना जाता है कि यहां पर प्राचीन में कोई गांव वसा था, जिसी किसी कारण से नष्ट हो गया होगा। मंदिर में महाशिवरात्रि, गौरी-जयापार्वती व्रत, रामनवमी, नवरात्र एवं दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर शोभायात्रा निकाली जाती है। यहां पर भक्तों की रोजाना भीड़ रहती है।

-चिमनभाई चावड़ा, मंदिर के संचालक

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