पूरे वर्ष विभिनन भक्ति संगीत
यह पर्व राधास्वामी मत के समस्त अनुयायियों के लिए अति पावन एवं स्मरणीय है। पूरे वर्ष विभिन्न भक्ति संगीत, प्रभात और संध्या फेरियों, सांस्कृतिक कार्यक्रम, रुहानी कव्वालियां, सेमिनार एवं कार्यशालाएं, अन्ताक्षरी एवं क्विज प्रतियोगिताएं, खेलकूद प्रतियोगिताएं तथा झाकियों आदि का सिलसिला चलता रहा। पूरे वर्ष दयालबाग एवं देश-विदेश की 500 ब्रांचों में वातावरण आध्यात्मिक एवं भक्तिरस से परिपूर्ण रहा। राधास्वामी मत के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज का अवतरण के खास दिन पर आज स्वामीजी महाराज की परम समाध पर शुक्रवार सुबह सत्संग करने के बाद कलश के शीर्ष भाग पर क्राउन लगाया गया।
राधास्वामी मत के संस्थापक स्वामीजी महाराज का जन्म खत्री परिवार में हुआ। वह महाराज शिवदयाल सिंह के नाम से मशहूर हुए। उनके पिता सेठ दिलवाली सिंह थे। बहुुत ही छोटी उम्र से स्वामीजी महाराज ने आध्यात्मिक साधनों में तीव्र अभिरुचि प्रकट की। जब वे केवल छह वर्ष के थे तब प्रतिदिन प्रात: स्नान के पश्चात आध्यात्मिक साधनों में बैठते थे। स्वामी जी महाराज का पूरा परिवार तुलसी साहब का शष्यि था और सतगुरू की भक्ति से पूरी तौर पर वाकिफ था। स्वामीजी महाराज और तुलसी साहब की गु़फ्तगू हुई उस वक्त तुलसी साहब ने स्वामीजी महाराज से सवाल किया कि त्रिकुटी के आगे कौन मुकामात है, इस पर स्वामीजी महाराज ने जवाब दिया कि त्रिकुटी के आगे मुकाम हैं: सुन्न, महासुन्न, भंवरगुफा, सत्तलोक, अलखलोक, अगमलोक व राधास्वामी धाम। इस गु़फ्तगू के बाद तुलसी साहब ने घरवालों से कहा कि तुम्हारे यहां कुल मालिक का अवतार आ गया है, अब मैं जाता हूं और फिर तुलसी साहब गुप्त हो गये।