ऐसे करें राधारानी का पूजन
राधाष्टमी के दिन शुद्ध मन से व्रत का पालन करना चाहिए। राधाजी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर, उनका श्रृंगार करें। फिर सजी हुई मूर्ति को पूजा के स्थान पर चौकी आदि पर स्थापित करें। मध्यान्ह के समय धूप, दीप, पुष्प आदि अर्पित करके राधारानी की कथा का पाठ करें व श्रद्धा तथा भक्ति के साथ आराधना करें। अंत में आरती गाएं। कई ग्रंथों में कहा गया है कि राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा करना चाहिए।
राधा जी का जन्म वरदान के रूप में बृषभान के घर गोकुल के पास रावलग्राम में हुआ था।कुछ दिन बाद राधा के पिता ने वृंदावन में व्रषभानुपुरा नामक गांव बसाया जिसे आज बरसाना के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर राधा जी का अधीश्वरी के रूप में महाभिषेक हुआ था। अभिषेक के समय सभी देवी-देवता वहां उपस्थित थे और राधा जी को स्वर्ग सिंहासन पर बैठाया गया। लेकिन आरती करते समय सभी के मन में प्रश्न आया कि राधा रानी पूरें ब्रह्माण्ड की अधीश्वरी है तो फिर उन्हें सोलह कोस में फैले वृंदावन का आधिपत्य सौपनें की क्या जरूरत है। काफी विचार-विमर्श के साथ यह निर्णय हुआ कि बैकुंठ से ज्य़ादा महत्व मथुरा का है, तो इससे ज्यादा महत्व वृंदावन का होगा। महाभिषेक में सभी देवी-देवताओं ने दान के रूप में उन्हें कुछ न कुछ दिया। सावित्री ने पद्ममाला, इंद्रपत्नी शची ने स्वर्ण सिहांसन, कुबेर की पत्नी मनोरमा ने रत्नालकार, वरुण की पत्नी प्रिया गौरी ने दिव्य छत्र, पवन पत्नी शिवा ने यामर-युगल आदि दिए। साथ ही राधा जी की सेवा में पजारों सखियों में कुछ का स्थान सर्वोपरि है। जिनका नाम श्री ललिता, श्री विशाखा, श्री चिना, श्री रंग देवी, श्री तुंगा विघा आदि थी। इन्ही सखियों में वृंदावन का अष्ट सश्वी मंदिर बना है।
राधाष्टमी पूजन व व्रत का महत्व
वेद तथा पुराणादि में राधाजी का ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है, वहीं वे कृष्णप्रिया हैं। राधाजन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुण संपन्न बनता है। भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप एवं स्मरण मोक्ष प्रदान करता है। श्रीमद देवी भागवत श्री राधा जी कि पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो भक्त श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं।