दयालुता का भाव जगाने के लिए अभियान चला रहे डॉ. अरुण प्रताप सिकरवार
-दयालुता के भाव से विश्व में शांति आएगी, अहिंसा का दौर थमेगा
-JNU में देश के सभी राज्यों से आए प्राध्यापकों को दिया प्रशिक्षण
-जेल व राजकीय संप्रेक्षण गृह में किशोरों के लिए कौशल विकास का प्रयास
-NGO के साथ लड़कियों के लिए सेनेटरी नैपकिन की मशीनें लगवाई
आगरा। दयालबाग शिक्षण संस्थान (डीम्ड यूनिवर्सिटी) में फैकल्टी ऑफ साइंस में सहायक प्राध्यापक डॉ. अरुण प्रताप सिकरवार को पहली नजर में देखेंगे तो हल्के में लेंगे। जब उनसे बातचीत करेंगे तो दंग रह जाएंगे। उनके काम भी सबसे निराले हैं। वे लोगों के मानव मस्तिष्क को विकसित करने तथा दयालुता का भाव जगाने का काम कर रहे हैं। कहीं भी व्याख्यान के लिए जाते हैं तो दयालुता पर जरूर बात करते हैं। उनका कहना है कि दयालुता का भाव जागेगा तो विश्व में शांति आएगी। अहिंसा का दौर थमेगा। आतंकवाद की समस्या दूर होगी। न्यूरो बायोलॉजिस्ट के रूप में बुद्धिमत्ता का विकास करने के ट्रिक्स भी बताते हैं। इसके अलावा वे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम सेंटर, दिल्ली के मानद सचिव होने के नाते अनाथ किशोरों में कौशल विकास के लिए काम कर रहे हैं। जिला जेल और राजकीय सम्प्रेक्षण गृह में रह रहे किशोरों को शॉर्ट टर्म कोर्स कराकर अपने पैरों पर खड़ा करना चाहते हैं। स्वयंसेवी संस्थाओं को प्रेरित करके लड़कियों के लिए सेनेटरी नैपकिन की मशीन लगवाई हैं। पत्रिका के विशेष कार्यक्रम Person of The Week में हम आपको बता रहे हैं डॉ. अरुण प्रताप सिकरवार के बारे में।
यहां से शुरू किया सफर बल्देव (मथुरा) के गांव हथकौली में जन्मे डॉ. अरुण प्रताप सिकरवार की प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई। गांव में सिडनी से आए प्रो. सर्वदमन सिंह सिकरवार से प्रेरणा मिली कि विदेश जाना है। बृज 84 कोस परिक्रमा में अंग्रेज आते थे। उनसे अंग्रेजी में बातचीत करते रहते थे। आगरा से स्नातक किया। वेटनरी कॉलेज, मथुरा में प्रवेश के बाद छोड़ दिया। वैज्ञानिक बनने के लिए वर्ष 2000 में बीएचयू से बायो टेक्नोलोजी से एमएससी किया। एमएससी पूरी होने से पहले ही दो बार नेट, गैट, जेआरफ उत्तीर्ण किया। 2008 में मुंबई विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि ली। दुनियाभर के विश्वविद्यालयों में शैक्षिक व्याख्यान के लिए जाते रहते हैं।
जेएनयू में लेक्चर डॉ. सिकरवार यूजीसी एचआरडीसी के रिसोर्स परसन हैं। इस नाते हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली में हुई कार्यशाला में मानव मस्तिष्क और बुद्धिमत्ता पर लेक्चर दिया। इसमें देशभर के सभी राज्यों के प्रोफेसर आए। डॉ. सिकरवार का कहना है कि मानव मस्तिष्क के बारे में सबको पता होना जरूरी है। मानव मस्तिष्क की संरचना, क्रियाविधि का ज्ञान हो जाए तो स्मरण शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। स्कूल के बच्चों से लेकर प्रोफेसर तक की स्मरण शक्ति को बढ़ा सकते हैं। याद रहे कि जेएनयू लम्बे समय से चर्चा में है। वहां भी सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में कार्य कर रहे हैं।
साइंटिफिक एक्सपर्ट पैनलिस्ट भारत के टीवी चैनल में साइंटिफिक एक्सपर्ट पैनलिस्ट हैं। साइंस, मेडिकल बायोलॉजी और विज्ञान को बच्चों तक ले जाने के लिए टीवी पर डिबेट करते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान में महारत हासिल होने के कारण चन्द्रयान-2 लॉन्च के दौरान तीन घंटे तक चैनल पर लाइव कमेंट्री की। जब चन्द्रयान-2 चन्द्रमा की सतह पर पहुंचा तो टीवी पर साढ़े चार घंटे लगातार रहे। चन्द्रयान- 2 जब असफल हो गया तो लोकसभा टीवी पर डेढ़ घंटा लाइव रहे। ऑल इंडिया रेडियो पर स्वप्न विज्ञान, कम्प्यूटर और मानव मस्तिष्क पर वार्ता करते रहते हैं।
लड़कियों के लिए सेनेटरी नैपकिन मशीन लड़कियों के लिए सेनेटरी नैपकिन मशीन आगरा जिला जेल में और केन्द्रीय जालमा संस्थान में लगवाई हैं। अब वे कई गल्र्स इंटर कॉलेज में नैपकिन मशीन लगवाने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। यह काम स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से करा रहे हैं। इसके साथ ही सेनेटरी नैपकिन इंसीनरेटर मशीन लगवाने जा रहे हैं ताकि इनका ठीक से निस्तारण हो सके।
आईक्यू, ईक्यू, सीक्यू न्यूरो बायोलोजिस्ट (मस्तिष्क विज्ञान) विशेषज्ञ हैं। आईक्यू (इंटेलीजेंस कोशेंट- बुद्धिमत्ता), ईक्यू (इमोशन कोशेंट- भावना), सीक्यू (कंपैशियोनेट कोशेंट- दयालुता) के क्षेत्र में खासे सक्रिय हैं। अंतरिक्ष विज्ञान, भविष्य विज्ञान, स्वप्न विज्ञान में थ्योरिटकल रिसर्च कर रहे हैं। इन विषयों पर अकसर व्याख्यान देते रहते हैं।
बढ़ा सकते हैं मानव मस्तिष्क की क्षमता डॉ. अरुण प्रताप सिकरवार ने बताया कि मस्तिष्क विज्ञान के संबंध में जेएनयू में पढ़ाया। मानव मस्तिष्क विकसित है, लेकिन अगर हम इसके बारे में जान पाएं तो अधिकाधिक प्रयोग हो सकता है। इसे आईक्यू, ईक्यू और सीक्यू में गुणात्मक वृद्धि हो सकती है। इस बारे में बच्चों के लिए काम करने के लिए कैलाश सत्यार्थी से बात हुई है। उनका मानना है कि भारत में पश्चिम बंगाल राज्य के लोगों का मस्तिष्क अधिक विकसित है। मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। जैसे मशल्स बढ़ाने के लए एयरोबिक्स करते हैं, वैसे ही दिमाग बढ़ाने के लिए न्यूरोबिक्स की जरूरत है। हम रुटीन लाइफ में सीधे हाथ से काम करते हैं तो बाएं हाथ से भी काम करें तो निष्क्रिय दिमाग बढ़ता है।
दयालुता के लिए बहुत काम करने की जरूरत राजकीय संप्रेक्षण गृह में 18 साल तक के बच्चे हैं। जिला जेल में भी हैं। इन बच्चों को रोजगार दिलाने के लिए कौशल विकास के कोर्स कराने हैं। दयालुता का भाव जगाने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है। दुनिया में बहुत सारे मतभेद चल रहे हैं। दयालुता के भाव से ही शांति आएगी। अभी ये थ्योरेटिकल लगता है, लेकिन भविष्य में होगा।
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