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आगरा

देश में हाथियों के लिए ख़त्म हो रहा खाना और ज़मीन, हर साल मर रहे 500

जैसे-जैसे इंसानों की बढ़ती आबादी जंगलों पर कब्जा कर रही है उसने नयी समस्याएं पैदा कर दी हैं। आलम ये है कि अब देश में हाथियों के रहने के लिए धीरे-धीरे जमीन भी कम पड़ती जा रही है साथ ही उनके लिए खाना भी खत्म होता जा रहा है।

आगराFeb 13, 2022 / 07:02 pm

Vivek Srivastava

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देश में हाथियों के लिए ख़त्म हो रहा खाना और ज़मीन

भारतीय वन्यजीव संस्थान की ओर से ताजनगरी आगरा में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें मुख्य रूप से हाथियों के प्रबंधन, रखरखाव और स्वास्थ्य पहलुओं पर चर्चा की जा रही है। इस कार्यशाला में शामिल हुए देश के विख्यात पशु चिकित्सक डॉ के के शर्मा ने बताया कि भारत में हुए जनसंख्या विस्फोट ने हाथियों पर संकट खड़ा कर दिया है। एक हाथी को एक दिन में खाने के लिए 300 किलो खाना व 250 लीटर पानी पीने को चाहिए होता है। बढ़ती जनसंख्या में वन खत्म हो रहे हैं, लोग जंगलों में भी घर बनाकर रह रहे हैं। शहरीकरण, वनों का खत्म होना आदि ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से अब हाथी ऊंचाई वाले राज्यों में पलायन कर रहे हैं। हाथियों के लिए कम होती जमीन के कारण ही हाथी-मनुष्य के टकराव की घटनाएं भी बढ़ रही हैं।
इंसान और हाथियों के बीच में टकराव बढ़ा

हाथी डॉक्टर के नाम से चर्चित डॉ. केके शर्मा ने बताया कि इंसान और हाथियों के बीच में टकराव बढ़ गया है। साल में दो बार हाथी जगह बदलते हैं। उन रास्तों पर इंसान ने घर बना लिए, जिसने हाथियों के व्यवहार को बदला है। हाथियों के लिए संवेदनशील बनना होगा, तब ये टकराव थमेगा।
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हाथियों के लिए जमीन खत्म हो रही

उन्होंने बताया कि हाथियों के लिए जमीन खत्म हो रही है क्योंकि एक हाथी एक साल में 100 से 500 स्कवायर किलोमीटर घूमता है। ऐसे में उसके प्राकृतिक गलियारे यानी एलीफेंट कारीडोर में जो भी आता है वो उसे खत्म कर देता है। यही कारण है कि मनुष्य-हाथी का टकराव बढ़ा है। डॉ शर्मा ने बताया कि अकेले असम में हर साल 200 हाथी मनुष्यों के कारण जान गंवाते हैं तो 100 इंसान भी मरते हैं। पूरे देश में हर साल मनुष्य-हाथी के टकराव के कारण 500 हाथी मरते हैं।
पाँच साल में हाथियों की संख्या में 10 फीसदी की गिरावट

2012 से 2017 के बीच हाथियों की संख्या में दस फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई है। 2017 की राष्ट्रीय हाथी जनगणना के अनुसार देश में सत्ताईस हजार तीन सौ बारह हाथी थे। वहीं 2012 में जब हाथियों की गिनती हुई थी तब इनकी संख्या तकरीबन 30 हजार थी। आपको बता दें कि एशियाई हाथियों की साठ फीसद आबादी भारत में है। लेकिन शहरीकरण, वनों का तेजी से खत्म होना, जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव पयार्वास के विखंडन की प्रक्रिया, जंगली भू-भागों में खनन गतिविधियां, रेलवे लाइन बिछाने, सड़क और नहर आदि के निर्माण में तेजी के कारण हाथियों के प्राकृतिक पयार्वास में कमी आई है। कम होते वनों के कारण ही हाथी अब उच्च ऊंचाई वाले राज्यों जैसे सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि में जा रहे हैं।
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मानवीय गतिविधियों से परिचित हुए हाथी

विशेषज्ञों के मुताबिक अब हाथी मानवीय गतिविधियों से काफी परिचित हो गये हैं। उन्होंने कहा कि पहले हाथियों को डराने के लिए पटाखों का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब हाथी पटाखों से नहीं डरते उन्हें उनकी भी आदत पड़ चुकी है।

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