इंसान और हाथियों के बीच में टकराव बढ़ा हाथी डॉक्टर के नाम से चर्चित डॉ. केके शर्मा ने बताया कि इंसान और हाथियों के बीच में टकराव बढ़ गया है। साल में दो बार हाथी जगह बदलते हैं। उन रास्तों पर इंसान ने घर बना लिए, जिसने हाथियों के व्यवहार को बदला है। हाथियों के लिए संवेदनशील बनना होगा, तब ये टकराव थमेगा।
हाथियों के लिए जमीन खत्म हो रही उन्होंने बताया कि हाथियों के लिए जमीन खत्म हो रही है क्योंकि एक हाथी एक साल में 100 से 500 स्कवायर किलोमीटर घूमता है। ऐसे में उसके प्राकृतिक गलियारे यानी एलीफेंट कारीडोर में जो भी आता है वो उसे खत्म कर देता है। यही कारण है कि मनुष्य-हाथी का टकराव बढ़ा है। डॉ शर्मा ने बताया कि अकेले असम में हर साल 200 हाथी मनुष्यों के कारण जान गंवाते हैं तो 100 इंसान भी मरते हैं। पूरे देश में हर साल मनुष्य-हाथी के टकराव के कारण 500 हाथी मरते हैं।
पाँच साल में हाथियों की संख्या में 10 फीसदी की गिरावट 2012 से 2017 के बीच हाथियों की संख्या में दस फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई है। 2017 की राष्ट्रीय हाथी जनगणना के अनुसार देश में सत्ताईस हजार तीन सौ बारह हाथी थे। वहीं 2012 में जब हाथियों की गिनती हुई थी तब इनकी संख्या तकरीबन 30 हजार थी। आपको बता दें कि एशियाई हाथियों की साठ फीसद आबादी भारत में है। लेकिन शहरीकरण, वनों का तेजी से खत्म होना, जलवायु परिवर्तन, वन्यजीव पयार्वास के विखंडन की प्रक्रिया, जंगली भू-भागों में खनन गतिविधियां, रेलवे लाइन बिछाने, सड़क और नहर आदि के निर्माण में तेजी के कारण हाथियों के प्राकृतिक पयार्वास में कमी आई है। कम होते वनों के कारण ही हाथी अब उच्च ऊंचाई वाले राज्यों जैसे सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश आदि में जा रहे हैं।
मानवीय गतिविधियों से परिचित हुए हाथी विशेषज्ञों के मुताबिक अब हाथी मानवीय गतिविधियों से काफी परिचित हो गये हैं। उन्होंने कहा कि पहले हाथियों को डराने के लिए पटाखों का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब हाथी पटाखों से नहीं डरते उन्हें उनकी भी आदत पड़ चुकी है।