श्रीकृष्ण का गृह जनपद आगरा इतिहासकार राजकिशोर राजे ने तवारीख-ए-आगरा पुस्तक में इस बात का उल्लेख किया है। उन्होंने बताया- श्रीकृष्ण का नाम आते ही मथुरा का ध्यान आता है। बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि श्रीकृष्ण का गृह जनपद आगरा है। उनके पिता वासुदेव व पितामाह शूरसैन बटेश्वर के निवासी थे। श्रीकृष्ण का जन्म अपने मामा (सगे नहीं) कंस के मथुरा स्थित कारागार में हुआ था। श्रीकृष्ण के पूर्वज यदु की संतान होने के कारण यदुवंशी कहे जाते हैं। इस बात का उल्लेख राधारमण चौबे द्वारा लिखित पुस्तक भरतपुर का संक्षिप्त इतिहास में पृष्ठ एक पर है।
गोकुलपुरा में कंस दरवाजा सन 625 में भारत आए चीनी यात्री श्यूयानचऊग ने अपने भारत वर्णन में कंस के राज्य का विस्तार 833 मील बताया है। पौद्दार अभिनंदन ग्रंथ में पृष्ठ 30 पर इसका उल्लेख है। मुस्लिम इतिहासकार अब्दुल्ला ने लिखा है कि कंस का आगरा में किला था। इस बात की पुष्टि तारीखे दाऊदी पुस्तक से होती है। कंस का किला होने की पुष्टि आगरा के गोकुलपुरा में कंस दरवाजा होने से होती है। आगरा दर्शन पुस्तक में विशन कपूर ने लिखा है कि महाभारत काल में आगरा में कंस का जेलखाना था। यहां सजायाफ्ता कैदी रखे जाते थे। आज भी कंस दरवाजा से जुड़ी एक प्राचीन दीवार का अस्तित्व कायम है। होली पर पड़वा के दिन मंसा देवी मंदिर से राधा-कृष्ण यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा कंस दरवाजा पर समाप्त होती है। उस दिन यहां मेला लगता है और कंस वध होता है।
पुरातत्व विभाग ने कहा- 1600 में बना है कंस गेट कंस दरवाजा के संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की अलग ही कहानी है। विभाग का कहना है कि गोकुलपुरा की दक्षिणी चारदीवार के पास कंस गेट है। ऐसा माना जाता है कि कंस दरवाजा का निर्माण गुजरात से आए नागर ब्राह्मण गोकल ने कराया था। वह मुगल शासक अकबर के समय आया था। कंस गेट की मुख्य आकृति अजमेर स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा से ली गई है। इसका बनावट से प्रतीत होता है कि निर्माण सन 1600 से 1622 के बीच किया गया।
अत्याचारी कंस के नाम पर दरवाजे का निर्माण क्यों? पुरातत्व विभाग की इस व्याख्या पर सवाल यह है कि कोई भी व्यक्ति अत्याचारी कंस के नाम पर किसी गेट का निर्माण क्यों कराता? गुजरात में श्रीकृष्ण की पूजा होती है। अगर किसी नागर ब्राह्मण को कुछ बनवाना ही था, तो वह श्रीकृष्ण के नाम पर बनवाता, कंस के नाम पर नहीं। शताब्दियों से इसका नाम कंस दरवाजा है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि गोकुलपुरा का संबंध कहीं न कहीं कंस के कारागार से है। इतिहासकार राजकिशोर राजे का कहना है कि पुरातत्व विभाग कोई ऐतिहासिक व्याख्या नहीं करता है। वह तो प्रमाणों के साथ यह बताता है कि यह भवन किस शैली का है और कब बना होगा। इतिहासकार ही टूटी कड़ियां जोड़कर सही आकलन कर सकता है।