बदायूं: सफाईकर्मियों की भर्ती के नाम पर सरकारी धन की लूट, दो घंटे की बारिश में ही बने नरक जैसे हालात
राजा बहुत अच्छे संस्कार वाले पुरुष थे। राजा ने अपने सैनिकों को उन्हें सन्त को तत्काल ऊपर ले आने की आज्ञा दी। आज्ञा मिलते ही सैनिकों ने ऊपर से ही रस्से लटकाकर उन सन्त को रस्सों में फँसाकर ऊपर खींच लिया।
इस अनुचित काम के लिये राजा ने सन्त से क्षमा माँगी और कहा कि आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर पाने के लिये ही आपको ये कष्ट दिया। मेरा प्रश्न यह है कि “भगवान् हमको शीघ्र कैसे मिलें ?
सन्त महाराज जी ने कहा‒ ‘राजन्! यह बात तो आप जानते ही हो फिर भी आप पूछ रहे हो।
राजा ने पूछा‒‘कैसे?’ यह भी पढ़ें बसपा ने बनाया अब तक का सबसे बड़ा प्लान, भाजपा को चारों खाने चित करने की तैयारी
महाराज जी बोले “यदि मेरे मन में आपसे मिलने का विचार आता तो कई अड़चनें आती और बहुत ही देर लगती। पता नहीं, मिलना कभी सम्भव भी होता, या नहीं भी। पर जब आपके मन में मुझसे मिलने का संकल्प आया, तब आपको कितनी देर लगी? राजन्! इसी प्रकार यदि प्रभुजी के मन में हमसे मिलने का विचार आ जाय तो फिर उनके मिलने में देर नहीं लगेगी।’
राजा ने पूछा‒ ‘पर प्रभुजी के मन में हमसे मिलनेका विचार कैसे आ जाए?’
महाराज जी बोले‒ ‘आपके मन में मुझसे मिलने का विचार कैसे आया?
राजा ने कहा‒‘जब मैंने देखा कि आप एक ही धुन में चले जा रहे हैं। और सड़क, बाजार, दुकानें, मकान, मनुष्य आदि किसी की भी तरफ आपका ध्यान नहीं है, तब मेरे मनमें आपसे मिलनेका विचार आया।’