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आगरा

महाकवि गोपालदास नीरज के दर्शन को समझने के लिए ये दोहे जरूर पढ़िए

-महाकवि गोपालदास नीरज ने जन्म और मृत्यु को लेकर खूब लिखा है। उनके दोहे यहां पढ़ सकते हैं।
-तुम चाहे कितना चीखो, चिल्लाओ, रोओ पर मुझको डेरा आज उठाना ही होगा.. यहां देखिए महाकवि नीरज का दार्शनिक अंदाज

आगराJul 20, 2018 / 07:46 am

Bhanu Pratap

gopal das neeraj

gopal das neeraj

आगरा। महाकवि गोपालदास नीरज नहीं रहे। एम्स दिल्ली में उन्होंने 94 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। अलीगढ़ में कवि जगत में शोक की लहर है। इसके साथ ही उन्हें कविताओं के माध्यम से श्रद्धांजलि दी जा रही है। गोपालदास नीरज ने जीवन और मृत्यु पर खूब लिखा है। जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु ही है। इसी सत्य को उन्होंने अपनी कविताओं, दोहों आदि में किया है। वे कवि सम्मेलनों की शान थे। फिल्म फेयर पुरस्कार, पद्मश्री, पद्मभूषण जैसे सम्मान उन्हें पाने को आतुर रहे। वे मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के कुलाधिपति भी थे।
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गोपालदास नीरज के दोहे देखिए

मित्रो हर पल को जियो अंतिम पल ही मान
अंतिम पल है कौन सा, कौन सका है जान
रुके नहीं कोई यहां नामी हो कि अनाम
कोई जाए सुबह को, कोई जाए शाम

कुछ सपनों के मर जाने से

जीवन नहीं मरा करता है

न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ महज इतनी बात है
किसी की आंख खुल गई किसी को नींद आ गई
जब तक डोरी हाथ में देख हवा का ढंग

पता नहीं किस पल कटे, किसकी तनी पतंग

श्वेत श्याम दो रंग के चूहे हैं दिन रात

तन की चादर कुदरते पल पल रहकर साथ
जो आए ठहरे यहां थे न यहां के लोग

सबका यहां प्रवास है, नदी नाव संजोग

सिर्फ बिछुड़ने के लिए हैं ये मेल मिलाप

एक मुसाफिर हम यहां, एक मुसाफिर आप
जाने कब आखिरी खत आपके नाम आ जाए

आपसे जितना बने प्यार लुटाते रहिए

gopal das neeraj
अलविदा पीड़ा के राजकुंवर
अब शीघ्र करो तैयारी मेरे जाने की
रथ जाने को तैयार खड़ा मेरा
है मंज़िल मेरी दूर बहुत, पथ दुर्गम है
हर एक दिशा पर डाला है तम ने डेरा
कल तक तो मैंने गीत मिलन के गाए थे
पर आज विदा का अंतिम गीत सुनाऊंगा
कल तक आंसू से मोल दिया जग जीवन का
अब आज लहू से बाक़ी क़र्ज़ चुकाऊंगा
बेकार बहाना, टालमटोल व्यर्थ सारी
आ गया समय जाने का, जाना ही होगा
तुम चाहे कितना चीखो, चिल्लाओ, रोओ
पर मुझको डेरा आज उठाना ही होगा
विवेक कुमार जैन गोपाल दास नीरज को श्रद्धांजलि उन्हीं की इन पंक्तियों के साथ दी
बाद मेरे हैं यहाँ
और भी गाने वाले,
स्वर की थपकी से
पहाड़ों को सुलाने वाले….

उजाड़ बाग़ बियाबान
औ सुनसानों में,
छंद की गंध से
फूलों को खिलाने वाले….

इनके पाँवों के फफोले
न कहीं फूट पड़ें,
इनकी राहों से ज़रा
शूल हटा लूँ तो चलूँ….

ऐसी क्या बात है
चलता हूँ अभी चलता हूँ,
गीत इक और ज़रा
झूम के गा लूँ तो चलूँ…….

रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां गोपालदास नीरज की स्वर्गवासी हो जाने पर सटीक हैं –
जब गीतकार मर गया, चांद रोने आया

चांदनी मचलने लगी कफन बन जाने को

मलयानिल ने शव को कंधों पर उठा लिया

वन ने भेजे चंदन श्रीखंड जलाने को

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