गोपालदास नीरज के दोहे देखिए मित्रो हर पल को जियो अंतिम पल ही मान
अंतिम पल है कौन सा, कौन सका है जान
कोई जाए सुबह को, कोई जाए शाम कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ महज इतनी बात है
किसी की आंख खुल गई किसी को नींद आ गई
अब शीघ्र करो तैयारी मेरे जाने की
रथ जाने को तैयार खड़ा मेरा
है मंज़िल मेरी दूर बहुत, पथ दुर्गम है
हर एक दिशा पर डाला है तम ने डेरा
कल तक तो मैंने गीत मिलन के गाए थे
पर आज विदा का अंतिम गीत सुनाऊंगा
कल तक आंसू से मोल दिया जग जीवन का
अब आज लहू से बाक़ी क़र्ज़ चुकाऊंगा
बेकार बहाना, टालमटोल व्यर्थ सारी
आ गया समय जाने का, जाना ही होगा
तुम चाहे कितना चीखो, चिल्लाओ, रोओ
पर मुझको डेरा आज उठाना ही होगा
बाद मेरे हैं यहाँ
और भी गाने वाले,
स्वर की थपकी से
पहाड़ों को सुलाने वाले….
उजाड़ बाग़ बियाबान
औ सुनसानों में,
छंद की गंध से
फूलों को खिलाने वाले….
इनके पाँवों के फफोले
न कहीं फूट पड़ें,
इनकी राहों से ज़रा
शूल हटा लूँ तो चलूँ….
ऐसी क्या बात है
चलता हूँ अभी चलता हूँ,
गीत इक और ज़रा
झूम के गा लूँ तो चलूँ…….
रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां गोपालदास नीरज की स्वर्गवासी हो जाने पर सटीक हैं –