पुरस्कार ही पुरस्कार महाकवि नीरज को 1991 में पद्मश्री सम्मान मिला। 1994 में यश भारती और 2007 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। उहें विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार से भी नवाजा गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने भाषा संस्थान का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया। वे मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ के कुलाधिपति भी रहे। उन्हें 1970 के दशक मे तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। फिल्म क्षेत्र में यह सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। फिल्म मेरा नाम जोकर का गीत ए भाई जरा देख के चलो, फिल्म पहचान का गीत बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं और फिल्म चंदा और बिजली का काल का पहिया घूमे रे भइया पुरस्कृत गीत हैं। नीरज जी कवि सम्मेलनों की शान थे।
इटावा से अलीगढ़ तक का सफर नीरज का जन्म चार जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के गांव पुरावली में हुआ था। छह साल की उम्र में ही पिता ब्रज किशोर सक्सेना का स्वर्गवास हो गया। उन्होंने एटा से 1942 में हाईस्कूल किया। इटावा कचहरी मे टाइपिस्ट के रूप में भी काम किया। दुकान में नौकरी की। दिल्ली में टाइपिस्ट की नौकरी की। दिल्ली में बेरोजगार हो गए तो डीएवी कॉलेज कानपुर में लिपिक बन गए। कानपुर के कुरसंवा मोहल्ले में रहे। नौकरी के साथ ही पढ़ाई का क्रम जारी रखा। हिन्दी साहित्य से एमए तक शिक्षा ग्रहण की। मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद धर्म समाज कॉलेज, अलीगढ़ में हिन्दी प्राध्यापक नियुक्त हुए। फिर वे अलीगढ़ के होकर रह गए। जनकपुरी में उनका आवास है। आगरा में उनकी बेटी डॉ. कुंदनिका शर्मा भारतीय