25 से 29 अक्टूबर तक है दीपों का पंचदिवसीय त्योहार, जानिए धनतेरस, रूपचतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन और भाईदूज के शुभ मुहूर्त
1. सोना—चांदी या प्रॉपर्टी खरीदने का समयध्यान रहे
यदि किसी कारणवश 25 अक्टूबर को स्थिर लग्न में जमीन या मकान का सौदा न हो पाए तो आप इस काम को 26 अक्टूबर को सुबह 08:01 बजे से 09:00 बजे तक और दोपहर 02:08 से 03:37 बजे के बीच एडवांस मनी देकर कर सकते हैं। चूंकि तेरस तिथि 26 अक्टूबर को 3:44 मिनट तक रहेगी, इस कारण आपका सौदा धनतेरस में ही माना जाएगा।
यदि कोई चलायमान वस्तु जैसे वाहन, वॉशिंग मशीन, फ्रिज या कोई अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामान जो चलता भी है और घर में रखा भी रहता है, खरीदना चाहते हैं तो इन्हें चर लग्न या द्विस्वभाव लग्न में खरीदें। अगर वाहन टैक्सी के लिहाज से खरीदना है तो चर लग्न में खरीदना अति शुभ है। 24 अक्टूबर को द्विस्वभाव लग्न सुबह 08:43 बजे से 10:57 बजे तक रहेगा। जबकि चर लग्न रात को 10:57 बजे से रात 01:21 बजे तक रहेगा।
धनतेरस के दिन चमड़ा, लोहा, स्टील, तांबा आदि खरीदने से बचें, साथ ही किसी को उपहार में भी न दें। इससे घर में नकारात्मकता आती है।
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दीप का मुंह दक्षिण की ओर करके करें दीपदानसबसे पहले भगवान धनवंतरि की पूजा करने के लिए उनकी तस्वीर स्थापित करें। फिर हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें। भगवान धनवंतरि का आवाह्न करें। फिर पुष्प से तस्वीर पर जल छिड़कें। तस्वीर पर रोली और अक्षत से टीका करें। पुष्प, दक्षिणा, वस्त्र अगर वस्त्र नहीं है तो कलावा अर्पित करें। फिर गणपति का मंत्र बोलकर पूजा की शुरुआत करें। इसके बाद भगवान धनवंतरि का ध्यान करते हुए ओम श्री धनवंतरै नम: मंत्र का 11, 21 या 108 बार जप करें। इसके बाद दिए जा रहे मंत्र को बोलें। ओम नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय।त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपश्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः॥ मंत्र बोलकर भगवान धनवंतरि को प्रणाम करें।
पूजन करने के बाद दीप जलाकर भगवान धनवंतरि की आरती गाएं। ये है आरती। ओम जय धनवंतरि देवा, जय धनवंतरि देवा।जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।। जय धनवंतरि।। तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए। देवासुर के संकट आकर दूर किए।। जय धनवंतरि।। आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया। सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।। जय धनवंतरि।। भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी। आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।। जय धनवंतरि।। तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे। असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।। जय धनवंतरि।। हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा। वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का चेरा।। जय धनवंतरि।। धनवंतरिजी की आरती जो कोई जन गावे।रोग-शोक न आवे, सुख-समृद्धि पावे।। जय धनवंतरि।।