उन्होंने कहा कि समाज, जाति, भाषा के नाम पर बांटने वाली ताकतों से सावधान रहना होगा। दुर्गादास राठौर का यही संकल्प था।
आगरा के कण कण में कन्हैया का वास है। यहां कला है, आस्था है, समर्पण है, विश्वास है। ये ही राष्ट्र निष्ठा बढ़ाती है।
“जिस दिन कृष्ण आए, उस दिन लोकार्पण हुआ”
मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दुर्गादास राठौर का यही संकल्प था। सबसे बड़ी सत्ता के सामने जमींदारों के लिए घुटने टेक दिए थे। उनका कोई नाम लेने वाला नहीं है। दुर्गादास का नाम मारवाड़, एमपी में अमर है। हमें महापुरुषों का नाम याद रखना होगा। 10 साल से मूर्ति मेरा इंतजार कर रही थी। जिस दिन कृष्ण आए, उस दिन लोकार्पण हुआ।
“बार- बार इस हिंदुस्तान की धरती पर जन्म लूं”
उन्होंने कहा कि देश की आजादी के लिए 9 अगस्त 1925 में लखनऊ में मा. राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने काकोरी ट्रेन एक्शन की घटना को अंजाम देकर अंग्रेजी हुकुमत को चुनौती दी थी। उस समय अंग्रेजी हुकूमत हिल गई थी। ट्रेन एक्शन में इन क्रांतिकारियों को महज 4 हजार 600 रुपए मिले थे। लेकिन, उन्हें गिरफ्तार कर सजा दिलाने के लिए अंग्रेजों ने 10 लाख रुपए खर्च कर दिए। तब भी आजादी की लड़ाई कमजोर नहीं पड़ी। रामप्रसाद बिस्मिल को जब फांसी दी जा रही थी तब उनसे पूछा गया कि अंतिम अभिलाषा हो तो बताइए। तब बिस्मिल जी ने कहा- इस भारतवर्ष में सौ बार मेरा जन्म हो और मौत का कारण सदा ही देश उपकार कर्म हो। बार- बार इस हिंदुस्तान की धरती पर जन्म लूं।
कौन थे दुर्गादास राठौड़ ?
दुर्गादास राठौड़ एक वीर राठौड़ राजपूत योद्धा थे, जिन्होने मुगल शासक औरंगजेब को युद्ध में हराया था। दुर्गा दास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 को ग्राम सालवा में हुआ था। दुर्गादास का पालन पोषण लुनावा नामक गांव में हुआ। दुर्गादास मारवाड़ के शासक महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री आसकरण राठौड़ के पुत्र थे। दुर्गादास राठौड़ की माता का नाम माता नेतकंवर बाई था। दुर्गादास की माता अपने पति आसकरण जी से दूर सालवा के पास लुडावे (लुडवा ) गांव में रहती थीं। दुर्गादास सूर्यवंशी राठौड़ कुल के राजपूत थे। 22 नवंबर 1718 को उज्जैन में शिप्रा के तट पर दुर्गादास राठौड़ की 81 साल की आयु में मृत्यु हो गई।