क्या हैं ईद के मायनेBakrid के दिन आमतौर पर मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं। कुर्बानी के लिए बकरे को अपने घर में पाला-पोसा जाता है और उसका पूरा ख्याल रखा जाता है। इसके बाद
बकरीद के दिन उसकी कुर्बानी अल्लाह के नाम दे दी जाती है। कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक हिस्सा कुर्बानी करने वाले खुद के घर में रख लेते हैं और दो हिस्सें बांट देते हैं। कुर्बानी बकरीद की नमाज पढ़ने के बाद दी जाती है। कुर्बानी तीन दिन तक की जा सकती है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग नए कपड़े पहनकर मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हैं। वहां नमाज पढ़कर एक दूसरे के गले लगते हैं और ईद की बधाई देते हैं। नमाज पढ़कर वापस घर लौटने के बाद बकरे की कुर्बानी दी जाती है।
ईद के मौके पर जितना हो सके, उतना गरीबों को दान देने का भी विधान है। मुस्लिम संप्रदाय के लोग अपनी आय के मुताबिक जकात फितरा देते हैं। इसके अलावा बकरे का गोश्त भी गरीबों में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इस्लाम में कहा गया है कि कोई भी त्योहार मनाते हुए यह ध्यान रखा जाना जरूरी है कि उनके पड़ोसी घर में भी उतनी ही खुशी के साथ मन रहा हो। कहा जाता है कि बकरीद को लेकर अल्लाह के आदेश हैं कि इस दिन आप अपनी सबसे प्रिय चीज को कुर्बान करें।
बकरीद से दो महीने पहले रमजान महीने में ईद-उल-फितर मनाई जाती है। रमजान महीना इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम महीने से होती है और वहीं आखिरी महीना धु अल-हिज्जा होता है। बकरीद के बाद इस्लामी कैलेंडर के पहले महीने में मुहर्रम मनाई जाएगी।