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बाड़मेर

RaJasthan News : पुलवामा हमले के बाद भारत ने बंद की थार एक्सप्रेस, तो सीमा पार के लोग बोले पैदल ही आने दो

1947 के बाद बाड़मेर जिले में करीब एक लाख शरणार्थी आकर बसे हैं। जैसलमेर, जोधपुर, जालोर में भी एक लाख के करीब हैं। इन परिवारों की रिश्तेदारी पाकिस्तान में है। 2006 में भारत पाक के बीच मुनाबाव बॉर्डर से थार एक्सप्रेस शुरू की थी, लेकिन पुलवामा हमले के बाद 2019 में इसको बंद कर दिया गया।

बाड़मेरJun 20, 2024 / 06:05 pm

जमील खान

रतन दवे

Barmer News : बाड़मेेर. पाकिस्तान से राजस्थान आने वाले अधिकांश शरणार्थियों के रिश्तेदारों को आना तो जोधपुर, बाड़मेर,जैसलमेर,जालोर है लेकिन इसके लिए उन्हें पहले पंजाब के बाघा बॉर्डर जाना होगा और इसके बाद इधर आएंगे। इसी तरह बाड़मेर-जैसलमेर-जोधपुर से पाकिस्तान जाने वाले भी यही चक्कर काटते हैैं। बाड़मेर के मुनाबाव से भी पाकिस्तान जाने का मार्ग है, लेकिन विडंबना यह है कि 2019 से बंद है। बाघा बॉर्डर से ऑन फुट वीजा दिया जा रहा है और इधर ताले लगे हैं। करीब दो से ढाई लाख शरणार्थी परिवार बाड़मेर-जैसलमेर-जोधपुर में बसे हैं, उनका कहना है कि अव्वल तो थार एक्सप्रेस फिर से शुरू की जाए, ऐसा न हो तो वाघा की तरह मुनाबाव से ऑन फुट वीजा देकर मुुनाबाव-खोखरापार मार्ग को खोल जाए।
1947 के बाद बाड़मेर जिले में करीब एक लाख शरणार्थी आकर बसे हैं। जैसलमेर, जोधपुर, जालोर में भी एक लाख के करीब हैं। इन परिवारों की रिश्तेदारी पाकिस्तान में है। 2006 में भारत पाक के बीच मुनाबाव बॉर्डर से थार एक्सप्रेस (Thar Express) शुरू की थी, लेकिन पुलवामा हमले (Pulwama Attack) के बाद 2019 में इसको बंद कर दिया गया। इसके बाद इस मार्ग से आना-जाना बंद हो गया। उधर, पंजाब के बाघा बॉर्डर (Wagah Border) का मार्ग पुलवामा बाद खोल दिया गया और वहां ऑन फुट वीजा से पाकिस्तान आ जा रहे हैैं। थार एक्सप्रेस की ठोस पैरवी नहीं थार एक्सप्रेस 2006 से 2019 तक करीब 14 साल चली।
इसके 728 साप्ताहिक फेरों में 4.5 लाख लोगों ने सफर किया, जो 90 फीसदी शरणार्थी परिवारों से ताल्लुक रखते थे। थार को बंद करने के बाद इसकी ठोस पैरवी कहीं से भी नहीं हुई। इस कारण यह मार्ग बंद है। पंजाब में रिट्रीट सेरेमनी औैर आना-जाना पंजाब में न केवल बाघा बॉर्डर का मार्ग खोला हुआ है। यहां अटारी में रिट्रीट सेरेमनी भी होती है। साथ ही पर्यटकों की भी बड़ी संख्या में मौजूदगी रहती है। पश्चिम में मुनाबाव का बॉर्डर शांत माना जाता है। ऐसे में पश्चिम के इस बॉर्डर को भी बाघा की तर्ज पर ही लिया जाए तो यहां शरणार्थियों के आने-जाने के साथ ही पर्यटन का बड़ा स्थल बनने की संभावनाएं भी है।
यों दुख पाते हैं लोग
शरणार्थी परिवारों को हारी-बीमारी, तीज-त्योहार, शादी-रिश्तेदारी में बहुत जरूरी होने पर पाकिस्तान जाना और आना करना पड़ता है। अब यों समझिए कि बाड़मेर-जैसलमेर के बॉर्डर के ठीक पास गांव है, उनकी अधिकांश रिश्तेदारी ठीक सामने बॉर्डर के उस पर 15 से 100 किमी दूरी के गांवों से है। मुनाबाव से ये लोग रवाना हों तो सुबह से शाम और कम किराए में पहुंच जाएं। लेकिन सुविधा नहीं होने से पहले इनको 700-800 किमी तक पंजाब का रास्ता नापना पड़ रहा है। फिर पाकिस्तान में भी 800 से 1000 किमी सफर कर सिंध के इलाके में आना पड़ता हैै।
सरकार ध्यान दें
भारत-पाकिस्तान दोनों देशों ने पंजाब का मार्ग खोल रखा है तो मुनाबाव (Munabao) में कहां परेशानी है। ऑन फुट वीजा दे दें। इमीग्रेशन और अन्य के लिए तो मुनाबाव-खोखरापार दोनों में व्यवस्था हो सकती है, पहले भी थी। वैसे थार एक्सप्रेस को पुनङ शुरू करने में भी कहां परेशानी है? शरणार्थियों की यह बड़ी मांग है। – हिन्दूसिंह सोढ़ा, अध्यक्ष सीमांत लोक संगठन

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