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Siddhi Vinayak Aarti: इस आरती से जल्दी प्रसन्न होते हैं सिद्धिविनायक, पढ़ें-गणेश जी की फेमस आरती

Siddhi Vinayak Aarti: हिंदू धर्म के अनुसार गणेशजी प्रथम पूज्य देवता हैं। कोई भी पूजा इनके बिना शुरू नहीं होती और हर संकट दूर करने वाले हैं। ऐसे कल्याणकारी गणेशजी का विग्रह मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में है। कार्तिक विनायक चतुर्थी पर आइये पढ़ें गणेशजी की फेमस आरती (Ganesh ji famous Aarti) ..

जयपुरNov 05, 2024 / 12:00 pm

Pravin Pandey

Siddhi Vinayak Aarti hindi: मुंबई में सिद्धिविनायक मंदिर की आरती

श्री सिद्धिविनायक मंदिर (Siddhi Vinayak Mandir)

Siddhi Vinayak: सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई का विश्व प्रसिद्ध गणेश मंदिर है। यहां सिद्घिविनायक का विग्रह अद्भुत है। यहां विराजे गणेश जी की सूड़ दाईं तरह मुड़ी हुई और चतुर्भुज हैं।
इनके ऊपरी दाएं हाथ में कमल और बाएं हाथ में अंकुश है और नीचे के दाहिने हाथ में मोतियों की माला और बाएं हाथ में मोदक (लड्डुओं) भरा कटोरा है। गणपति के दोनों ओर उनकी दोनो पत्नियां ऋद्धि और सिद्धि मौजूद हैं जो धन, ऐश्वर्य, सफलता और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रतीक हैं।

मस्तक पर तीसरा नेत्र और गले में एक सर्प हार के स्थान पर लिपटा है। सिद्धि विनायक का विग्रह ढाई फीट ऊंचे और यह दो फीट चौड़े शिलाखंड से बना है। दाईं ओर मुड़ी सूड़ के कारण इस सिद्घपीठ को सिद्घिविनायक मंदिर के नाम से पुकारते हैं। मुंबई के सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है। मान्यता है कि ये भक्तों की मनोकामना को तत्काल पूरा करते हैं।

हालांकि ऐसे गणपति जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी होते हैं। सिद्धि विनायक की दूसरी विशेषता यह है कि वह चतुर्भुजी विग्रह है। यहां गणेशजी की पूजा की आरती में भगवान शिव और देवी दुर्गा की स्तुतियां भी गाई जाती हैं। बहरहाल, यहां पढ़ते हैं सिद्धिविनायक मंदिर की फेमस गणेश आरती …

गणपति मंत्र और स्तुति (Ganesh Mantra)


ॐ वक्रतुण्ड महाकाय, सूर्यकोटि समप्रभः,
निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्वकार्येषु सर्वदा ।।
ॐ गं गणपतये नमो नम:, श्री सिद्धि-विनायक नमो नम: अष्ट-विनायक नमो नम:।।
गणपति बाप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया।

श्री गणेश आरती: सुखकर्ता दुखहर्ता, जय देव, जय मंगलमूर्ति (Ganesh Aarti)


सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥
जय देव जय देव
जय देव जय देव, जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापुर्ती
जय देव जय देव
रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा।
चंदनाची उटी कुंकुम केशरा॥
हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया॥
जय देव जय देव
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापुर्ती
जय देव, जय देव
लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना।
सरल सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना॥
दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकटी पावावें, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना॥

जय देव जय देव
जय देव, जय देव, जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापुर्ती
जय देव, जय देव

घालीन लोटांगण, वंदिन चरण।
डोलयांनी पाहिन रूप तुझे।
प्रेमे आलिंगीन आनंदे पुजिन।
भावें ओवाळिन म्हणे नामा॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव॥
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम देवदेव॥

कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा,
बुध्दात्मना वा प्रकृतिस्वभावात्।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै
नारायणायेति समर्पयामि॥

अच्युतं केशवं रामनारायणं,
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरि।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं,
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे॥
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥

हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥

सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची॥
जय मंगलमूर्ती, हो श्री मंगलमूर्ती
दर्शनमात्रे मन कामनापु्र्ती जय देव, जय देव॥

॥ श्री गणेशाची आरती (Ganesh Aarti) ॥


शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको ।
दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको ।
हाथ लिए गुड लड्डू सांई सुरवरको ।
महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको ॥

जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥
अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि ।
विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी ।
कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी ।
गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥

जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥
भावभगत से कोई शरणागत आवे ।
संतत संपत सबही भरपूर पावे ।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे ।
गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥

जय देव जय देव..
जय देव जय देव,
जय जय श्री गणराज ।
विद्या सुखदाता
धन्य तुम्हारा दर्शन
मेरा मन रमता,
जय देव जय देव ॥

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