शिव महापुराण के कोटि रूद्र संहिता के अन्तर्गत महाशिव के ज्योतिर्लिंग के बारह स्वरूपों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें सुनने मात्र से पाप दूर हो जाते हैं। सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्याम् महाकालमोंकारेश्वर परमेश्वरम्।। केदारम् हिमवत्पृष्ठे डाकिन्याम् भीमशंकरम्। वाराणस्याम् च विश्वेशम् त्र्यंबंकम् गौतमीतटे।। वैधनाथं चिता भूमौ नागेशं दारूकावने। सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं तु शिवालये।। द्वादशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय: पठेत। सर्वपापेर्विनिमुक्त: सर्वसिद्धिं फलम् लभेत।। (शि. पु. कोटि रूद्र संहिता 1/21-24)
सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्रीशैल पर मल्लिकार्जुन, उज्जैन में महाकाल, ओंकार तीर्थ में परमेश्वर, हिमालय के शिखर पर केदार, डाकिनी में भीमशंकर, वाराणसी में विश्वनाथ, गोदावरी के तट पर त्र्यंबक, चिता भूमि में वैद्यनाथ, दारूकावन में नागेश, सेतुबंध में रामेश्वर और शिवालय में घुश्मेश्वर का स्मरण करें। जो प्रतिदिन प्रात: काल उठकर इन बारह नामों का पाठ करता है वह सब पापों से मुक्त हो संपूर्ण सिद्धियों का फल पाता है। जिस-जिस मनोरथ को पाने की इच्छा रख श्रेष्ठ मनुष्य इन बारह नामों का पाठ करेंगे। वे इस लोक और परलोक में उस मनोरथ को अवश्य प्राप्त करेंगे। इनके पूजन मात्र से ही इह लोक में समस्त वर्णों के लोगों के दुखों का नाश हो जाता है। इन ज्योतिर्लिंगों का नैवेद्य यत्नपूर्वक ग्रहण करने से साधकों के पाप उसी क्षण जलकर भस्म हो जाते हैं।
भगवान भोलेनाथ भंडारी के इन 12 नामों का स्मरण करने वाले का दुर्भाग्य तत्क्षण ही समाप्त होता है और उसे सुख, सौभाग्य की प्राप्ति होती है। भगवान शिव के भक्त यदि इन स्थानों में से किसी भी एक तीर्थ पर जाकर भक्तजन महादेव के मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ अथवा महामृत्युंजय मंत्र का जप करते हैं अथवा उनकी स्तुति करते हैं तो भोले भंडारी स्वयं प्रकट होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। यहीं नहीं ऐसे भक्त इस जीवन में सुख से जीने के बाद स्वर्ग प्राप्त करते हैं जहां वह स्वयं शिव के गणों में एक बन जाते हैं।