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Diwali Puja Vidhi: दिवाली की शाम लक्ष्मी पूजा की मंत्र समेत ये है पूरी प्रक्रिया, नई मूर्ति की इस विधि से पूजा पर साल भर मिलता है आशीर्वाद

Diwali Puja Vidhi: दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, विधि विधान से पूजा का अमोघ फल मिलता है। लेकिन कई लोगों को मालूम नहीं होगा कि घर पर लक्ष्मी जी की पूजा कैसे करें तो ऐसे लोगों के लिए हम बता रहे हैं स्टेप बाय स्टेप विस्तृत लक्ष्मी पूजा विधि ..

जयपुरNov 01, 2024 / 06:54 pm

Pravin Pandey

Diwali Puja Vidhi 2024

Diwali Puja Vidhi 2024: दिवाली पूजा 2024

Diwali Puja Vidhi: दिवाली पूजा के लिए लोगों को महा-लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा खरीदनी चाहिए (दिवाली के लिए धनतेरस के दिन ही प्रतिमा खरीदने की मान्यता है)। यह पूजा विधि श्री लक्ष्मी की नवीन प्रतिमा या मूर्ति के लिए उपलब्ध कराई गई है। इस पूजा विधि में लक्ष्मीजी की पूजा करने के लिए सोलह चरण शामिल है जिसे षोडशोपचार पूजा के नाम से जाना जाता है।
इस विस्तृत पूजा विधि को किसी पुरोहित से संपन्न करा सकते हैं, संभव न हो तो आप स्वयं भी इन चरणों को फॉलो करते हुए पूजा पूरी कर सकते हैं। इसकी सामग्री पहले ही जुटा लेना चाहिए ..

दिवाली पूजा की जरूरी सामग्री

लक्ष्मी गणेश की प्रतिमा, लक्ष्मी जी को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, लाल कपड़ा, सप्तधान्य, गुलाल, लौंग, अगरबत्ती, हल्दी, अर्घ्य पात्र, फूलों की माला और खुले फूल, सुपारी, सिंदूर, इत्र, इलायची, कपूर, केसर, सीताफल, कमलगट्टे, कुशा, कुमकुम, साबुत धनिया (जिसे धनतेरस पर खरीदा हो), खील-बताशे, गंगाजल, देसी घी, चंदन, चांदी का सिक्का, अक्षत, दही, दीपक, दूध, लौंग लगा पान, दूब घास, गेहूं, धूप बत्ती, मिठाई, पंचमेवा, पंच पल्लव (गूलर, गांव, आम, पाकर और बड़ के पत्ते), तेल, मौली, रूई, पांच यज्ञोपवीत (धागा), रोली, लाल कपड़ा, चीनी, शहद, नारियल और हल्दी की गांठ। यदि पूजा के दौरान कुछ सामग्री छूट गई है तब मंत्र पढ़ें और प्रतीक स्वरूप सामग्री अर्पित करें।

दीपावली लक्ष्‍मी पूजन विस्तृत विधि

धनतेरस के दिन खरीदी गई माता लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की नई मूर्ति का दीपावली की रात पूजन किया जाता है। आइये जानते हैं लक्ष्‍मी पूजन की विस्‍तृत विधि..


मूर्ति स्‍थापना

सबसे पहले एक चौकी पर लाल वस्‍त्र बिछाकर उस पर मां लक्ष्‍मी और भगवान गणेश की प्रतिमा रखें और जलपात्र या लोटे से चौकी के ऊपर पानी छिड़कते हुए नीचे लिखे मंत्र को पढ़ें ..

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्‍थां गतोपि वा ।
य: स्‍मरेत् पुण्‍डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि: ।।

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धरती मां को प्रणाम

इसके बाद अपने ऊपर और अपने पूजा के आसन पर जल छिड़कते हुए नीचे दिए गए मंत्र को पढ़ें-


पृथ्विति मंत्रस्‍य मेरुपृष्‍ठ: ग ऋषि: सुतलं छन्‍द: कूर्मोदेवता आसने विनियोग: ।।
ॐ पृथ्‍वी त्‍वया धृता लोका देवि त्‍वं विष्‍णुना धृता ।
त्‍वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् नम: ।।
पृथ्वियै नम: आधारशक्‍तये नम: ।।

आचमन

अब इन मंत्रों का उच्‍चारण करते हुए गंगाजल से आचमन करें-


ॐ केशवाय नम:, ॐ नारायणाय नम: ॐ माधवाय नम:

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ध्यान

भगवती लक्ष्मी का ध्यान पहले से सामने प्रतिष्ठित की गई श्रीलक्ष्मी की नई प्रतिमा में करें। साथ में नीचे लिखे मंत्र को पढ़ें …

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी,
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः,
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता।।


मंत्र का अर्थः भगवती लक्ष्मी कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल की पंखुड़ियों के समान सुंदर बड़े-बड़े जिनके नेत्र हैं, जिनकी विस्तृत कमर और गहरे आवर्तवाली नाभि है, जो पयोधरों के भार से झुकी हुईं और सुंदर वस्त्र के उत्तरीय (दुपट्टे) से सुशोभित हैं, जो मणि-जटित (जड़ा) दिव्य स्वर्ण-कलशों द्वारा स्नान किए हुए हैं, वे कमल-हस्ता सदा सभी मंगलों के सहित मेरे घर में निवास करें।

आवाहन

श्रीभगवती लक्ष्मी का ध्यान करने के बाद, ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।


आगच्‍छ देव-देवेशि! तेजोमय‍ि महा-लक्ष्‍मी !
क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते !
।। श्रीलक्ष्‍मी देवीं आवाह्यामि ।।

मंत्र का अर्थः हे देवताओं की ईश्वरि! तेज-मयी हे महा-देवि लक्ष्मि! देव-वन्दिते! आइए, मेरे द्वारा की जानेवाली पूजा को स्वीकार करें।
॥ मैं भगवती श्रीलक्ष्मी का आवाहन करता हूं ॥

पुष्पांजलि आसन

आवाहन करने के बाद ये मंत्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पांच पुष्प अंजलि में लेकर अपने सामने छोड़े।

नाना रत्‍न समायुक्‍तं, कार्त स्‍वर विभूषितम् ।
आसनं देव-देवेश ! प्रीत्‍यर्थं प्रति-गह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै आसनार्थे पंच-पुष्‍पाणि समर्पयामि ।।

मंत्र का अर्थः हे देवताओं की ईश्वरि! विविध प्रकार के रत्नों से युक्त स्वर्ण-सज्जित आसन को प्रसन्नता के साथ ग्रहण करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के आसन के लिए मैं पांच पुष्प अर्पित करता हूं ॥

स्वागत

पुष्पांजलि रूप आसन प्रदान करने के बाद, ये मंत्र पढ़ते हुए हाथ जोड़कर श्रीलक्ष्मी का स्वागत करें।


। श्री लक्ष्मी देवी स्वागतम्।
अर्थः हे देवी लक्ष्मी आपका स्वागत है।

पाद्य

स्वागत कर निम्न-लिखित मंत्र से पाद्य (चरण धोने के लिए जल) समर्पित करें।

पाद्यं गृहाण देवेशि, सर्व-क्षेम-समर्थे, भो: !
भक्तया समर्पितं देवि, महालक्ष्‍मी ! नमोsस्‍तुते ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी-देव्‍यै पाद्यं नम:।।


मंत्र का अर्थः सब प्रकार के कल्याण करने में समर्थ हे देवेश्वरि! पैर धोने का जल भक्ति-पूर्वक समर्पित है, स्वीकार करें। हे महा-देवि, लक्ष्मि! आपको नमस्कार है।

अर्घ्य

पाद्य समर्पण के बाद अर्घ्य (शिर के अभिषेक के लिए जल) समर्पित करें।


नमस्‍ते देव-देवेशि ! नमस्‍ते कमल-धारिणि !
नमस्‍ते श्री महालक्ष्‍मी, धनदा देवी ! अर्घ्‍यं गृहाण ।
गंध-पुष्‍पाक्षतैर्युक्‍तं, फल-द्रव्‍य-समन्वितम् ।
गृहाण तोयमर्घ्‍यर्थं, परमेश्‍वरि वत्‍सले !
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अर्घ्‍यं स्‍वाहा ।।


मंत्र का अर्थः हे श्री लक्ष्मि! आपको नमस्कार। हे कमल को धारण करनेवाली देव-देवेश्वरि! आपको नमस्कार। हे धनदा देवि, श्रीलक्ष्मि! आपको नमस्कार। शिर के अभिषेक के लिए यह जल (अर्घ्य) स्वीकार करें। हे कृपा-मयि परमेश्वरि! चन्दन-पुष्प-अक्षत से युक्त, फल और द्रव्य के सहित यह जल शिर के अभिषेक के लिए स्वीकार करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिए अर्घ्य समर्पित है ॥
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स्नान

अब इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को जल से स्‍नान कराएं, फिर दूध, दही, घी, शहद और चीनी के मिश्रण यानी कि पंचामृत से स्‍नान कराएं। आखिर में शुद्ध जल से स्‍नान कराएं।

गंगासरस्‍वतीरेवापयोष्‍णीनर्मदाजलै: ।
स्‍नापितासी मय देवी तथा शांतिं कुरुष्‍व मे ।।
आदित्‍यवर्णे तपसोsधिजातो वनस्‍पतिस्‍तव वृक्षोsथ बिल्‍व: ।
तस्‍य फलानि तपसा नुदन्‍तु मायान्‍तरायश्र्च ब्रह्मा अलक्ष्‍मी: ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै जलस्‍नानं समर्पयामि ।।


॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के स्नानं के लिए जल समर्पित है ॥

पंचामृत स्नान

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पंचामृत (दूध, दही, घी, शक्कर, शहद) से स्नान कराएं।


दधि मधु प्रतश्चैव पयश्च शर्करायुतम् ।
पञ्चामृतं समानीत धौनार्थ प्रतिगगृह्यताम्।
ऊँ पंचनद्यः सरस्वतीमपियन्ति सस्रोतसः, सरस्वती तु पंचधासोदेशेभवत् सरित्।।
श्रीलक्ष्मी देव्यै पंचामृतस्नानम् समर्पयामि।

गंध स्नान

अब ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को गन्ध मिश्रित जल से स्नान कराएं।


ॐ मलयाचलसम्भतम् चन्दनागरुसम्भवम् ।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीशक्ष्मी-देव्यै गंधस्नानं समर्पयामि।।

शुद्ध स्नान

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को शुद्ध जल से स्नान कराएं।

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्
श्रीलक्ष्मी देव्यै शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

वस्‍त्र

अब मां लक्ष्‍मी को मौली के रूप में वस्‍त्र अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें।


दिव्‍याम्‍बरं नूतनं हि क्षौमं त्‍वतिमनोहरम् ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।।
उपैतु मां देवसख: कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतो सुराष्‍ट्रेsस्मिन् कीर्तिमृद्धि ददातु मे ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै वस्‍त्रं समर्पयामि ।।

मधुपर्क

श्री लक्ष्मी को दूध व शहद का मिश्रण, मधुपर्क अर्पित करें।


ऊँ कापिलं दधि कुन्देन्दुधवलं मधुसंयुतम्
स्वर्णपात्रस्थितम् देवि मधुपर्कं गृहाण भोः
श्रीलक्ष्मी देव्यै मधुपर्कम् समर्पयामि।

आभूषण

अब इस मंत्र को पढ़ते हुए मां लक्ष्‍मी को आभूषण चढ़ाएं।

रत्‍नकंकड़ वैदूर्यमुक्‍ताहारयुतानि च ।
सुप्रसन्‍नेन मनसा दत्तानि स्‍वीकुरुष्‍व मे ।।
क्षुप्तिपपासामालां ज्‍येष्‍ठामलक्ष्‍मीं नाशयाम्‍यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वात्रिर्णद मे ग्रहात् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै आभूषणानि समर्पयामि ।।

लाल चंदन

ये मंत्र पढ़ते हुए लाल चंदन चढ़ाएं


ऊँ रक्तचंदनसम्रिश्रं पारिजातसमुद्भवम्।
मयादत्तं गृहाणुशु चंदनंगंधसंयुतम्।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै रक्तचंदनम् समर्पयामि ।।

सिंदूर

अब मां लक्ष्‍मी को सिंदूर चढ़ाएं


ॐ सिन्‍दुरम् रक्‍तवर्णश्च सिन्‍दूरतिलकाप्रिये ।
भक्‍त्या दत्तं मया देवि सिन्‍दुरम् प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै सिन्‍दूरम् सर्पयामि ।।

कुमकुम

ये मंत्र पढ़ते हुए अब कुमकुम समर्पित करें

ॐ कुमकुम कामदं दिव्‍यं कुमकुम कामरूपिणम् ।
अखंडकामसौभाग्‍यं कुमकुम प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै कुमकुम सर्पयामि ।।

अबीर गुलाल चढ़ाएं

अबीरश्च गुलालं च चोवा चन्दनमेव च।
श्रृंगारार्थं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अबीर गुलालं सर्पयामि ।।

सुगंधित द्रव्य

ऊँ तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विधिविधानि च।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै सुगन्धित तैलं सर्पयामि ।।

अक्षत

अब अक्षत चढ़ाएं और ये मंत्र पढ़ें


अक्षताश्च सुरश्रेष्‍ठं कुंकमाक्‍ता: सुशोभिता: ।
मया निवेदिता भक्‍तया पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै अक्षतान् सर्पयामि ।।

गंध

अब मां लक्ष्‍मी को चंदन समर्पित करें।


श्री खंड चंदन दिव्‍यं, गंधाढ्यं सुमनोहरम् ।
विलेपनं महालक्ष्‍मी चंदनं प्रति गृह्यताम् ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै चंदनं सर्पयामि ।।


हिन्दी में अर्थः हे महा-लक्ष्मि! मनोहर और सुगन्धित चन्दन शरीर में लगाने के लिए ग्रहण करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिए चंदन समर्पित करता हूं ॥

पुष्‍प

अब पुष्‍प अर्पित करें


यथाप्राप्‍तऋतुपुष्‍पै:, विल्‍वतुलसीदलैश्च ।
पूजयामि महालक्ष्‍मी प्रसीद मे सुरेश्वरि ।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै पुष्‍पं सर्पयामि ।।


हिन्दी में अर्थः हे महा-लक्ष्मि! ऋतु के अनुसार प्राप्त पुष्पों और विल्व तथा तुलसी-दलों से मैं आपकी पूजा करता हूँ।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिए पुष्प समर्पित करता हूं ॥

अंग पूजन

अब हर एक मंत्र का उच्‍चारण करते हुए बाएं हाथ में फूल, चावल और चंदन लेकर दाहिने हाथ से मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा के आगे रखें।


ॐ चपलायै नम: पादौ पूजयामि ।
ॐ चंचलायै नम: जानुनी पूजयामि ।
ॐ कमलायै नम: कटिं पूजयामि ।
ॐ कात्‍यायन्‍यै नम: नाभि पूजयामि ।
ॐ जगन्‍मात्रै नम: जठरं पूजयामि ।
ॐ विश्‍व-वल्‍लभायै नम: वक्ष-स्‍थलं पूजयामि ।
ॐ कमल-वासिन्‍यै नम: हस्‍तौ पूजयामि ।
ॐ कमल-पत्राक्ष्‍यै नम: नेत्र-त्रयं पूजयामि ।
ॐ श्रियै नम: शिर पूजयामि ।

अष्ट-सिद्धि पूजा

अंग पूजा करने के बाद पुनः बाएं हाथ में चंदन, पुष्प और चावल लेकर दाएं हाथ से भगवती लक्ष्मी की मूर्ति के पास ही अष्ट-सिद्धियों की पूजा करें।


ऊँ अणिम्ने नमः। ऊँ महिम्ने नमः।
ऊँ गरिम्णे नमः। ऊँ लघिम्ने नमः।
ऊँ प्राप्त्यै नमः। ऊँ प्राकाम्यै नमः।
ऊँ ईशितायै नमः। ऊँ वशितायै नमः।

अष्टलक्ष्मी पूजा

माता के इन मंत्रों का जाप करें


ऊँ आद्यलक्ष्म्यै नमः। ऊँ विद्यालक्ष्म्यै नमः।
ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नमः। ऊँ अमृतलक्ष्म्यै नमः।
ऊँ कमलाक्ष्यै नमः। ऊँ सत्य लक्ष्म्यै नमः।
ऊँ भोगलक्ष्म्यै नमः। ऊँ योगलक्ष्म्यै नमः।

धूप-समर्पण

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें।

वनस्पति रसोद्भूतो गन्धाढ्य सुमनोहरः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिग्रह्यताम्।
।। श्रीलक्ष्‍मी देव्‍यै धूपं सर्पयामि ।।

मन्त्र का अर्थः वृक्षों के रस से बनी हुई, सुंदर, मनोहर, सुगन्धित और सभी देवताओं के सूंघने के योग्य यह धूप आप ग्रहण करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिए मैं धूप समर्पित करता हूं ॥

दीप-समर्पण

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दीप समर्पित करें।


साज्यं वर्ति संयुक्तं च, वहि्नना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य त्रिमिरापहम्।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि, श्रीलक्ष्म्यै परातत्परायै।
त्राहिमाम् निरयाद् घोराद् दीपोSयम् प्रतिगृह्यताम्।
श्रीलक्ष्मी देव्यै दीपं समर्पयामि।


मन्त्र का अर्थः हे देवेश्वरि! घी के सहित और बत्ती से मेरे द्वारा जलाया हुआ, तीनों लोकों के अंधेरे को दूर करने वाला दीपक स्वीकार करें। मैं भक्ति-पूर्वक परात्परा श्रीलक्ष्मी-देवी को दीपक प्रदान करता हूं। इस दीपक को स्वीकार करें और घोर नरक से मेरी रक्षा करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं दीपक समर्पित करता हूं ॥
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नैवेद्य-समर्पण

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को नैवेद्य समर्पित करें।

शर्करा-खण्ड-खाद्यानि, दधि-क्षीर-घृतानि च।
आहारो भक्ष्य भोज्यं च, नैवेद्यं प्रति-गृह्यताम् ।
यथांशतः श्रीलक्ष्मी-देव्यै नैवैद्यं समर्पयामि।
ऊँ प्राणाय स्वाहा, ॐ अपानाय स्वाहा।
ॐ समानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा ।।
मंत्र का अर्थः शर्करा-खण्ड (बताशा आदि), खाद्य पदार्थ, दही, दूध और घी जैसी खाने की वस्तुओं से युक्त भोजन आप ग्रहण करें।
॥ यथा-योग्य रूप भगवती श्रीलक्ष्मी को मैं नैवेद्य समर्पित करता हूं – प्राण के लिए, अपान के लिए, समान के लिए, उदान के लिए और व्यान के लिए, स्वीकार हो ॥

आचमन-समर्पण/जल-समर्पण

ये मंत्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीलक्ष्मी को जल समर्पित करें।


ततः पानीयं समर्पयामि, इति उत्तरापोशनम्।
हस्त प्रक्षालनम् समर्पयामि। मुख प्रक्षालनम्।
करोद्वर्तनार्थे चंदनं समर्पयामि।


मंत्र का अर्थः नैवेद्य के बाद मैं पीने और आचमन (उत्तरा-पोशन) के लिए, हाथ धोने के लिए, मुख धोने के लिए जल और हाथों में लगाने के लिए चंदन समर्पित करता हूँ।

ताम्बूल-समर्पण

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।


पूगी-फलं महादिव्यं नाग-वल्ली-दलैर्युतम्, कर्पूरैला समायुक्तं, ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ।।
।। श्रीलक्ष्मी देव्यै मुख वासार्थं पूगीफलं युक्तं ताम्बूलं समर्पयामि।।


मंत्र का अर्थः पान के पत्तों से युक्त अत्यन्त सुंदर सुपाड़ी, कपूर और इलायची से प्रस्तुत ताम्बूल आप स्वीकार करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के मुख को सुगन्धित करने के लिए सुपाड़ी से युक्त ताम्बूल मैं समर्पित करता हूं ॥

दक्षिणा

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को दक्षिणा समर्पित करें।


हिरण्य-गर्भ-गर्भस्थं हेम-वीजं विभावसोः।
अनंतपुण्यफलदमतः शांति प्रयच्छ मे।
॥ श्री लक्ष्मी-देव्यै सुवर्ण पुष्प दक्षिणां समर्पयामि।।


मंत्र का अर्थः असीम पुण्य प्रदान करनेवाली स्वर्ण-गर्भित चम्पक पुष्प से मुझे शांति प्रदान करें।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं स्वर्ण-पुष्प-रूपी दक्षिणा प्रदान करता हूं ॥

प्रदक्षिणा

अब श्रीलक्ष्मी की प्रदक्षिणा (बाएं से दाएं ओर की परिक्रमा) के साथ ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को फूल समर्पित करें।


यानि यानि च पापानि, जन्मान्तरकृतानि च।
तानि तानि विनश्यन्ति, प्रदक्षिणं पदे पदे।
अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं देवि !
तस्मात् कारुण्य-भावेन क्षमस्व परमेश्वरि ।।
।। श्रीलक्ष्मी-देव्यै प्रदक्षिणं समर्पयामि ।।
मंत्र का अर्थः पिछले जन्मों में जो भी पाप किए होते हैं, वे सब प्रदक्षिणा करते समय एक-एक पग पर क्रमशः नष्ट होते जाते हैं। हे देवि! मेरे लिये कोई अन्य शरण देनेवाला नहीं हैं, तुम्हीं शरण-दात्री हो। अतः हे परमेश्वरि! दया-भाव से मुझे क्षमा करो।
॥ भगवती श्री लक्ष्मी को मैं प्रदक्षिणा समर्पित करता हूँ ॥

वन्दना-सहित पुष्पाञ्जलि

अब वंदना करें और ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को पुष्प समर्पित करें।


कर-कृतं वा कायजं कर्मजं वा, श्रवण-नयनजं वा मानसं वाऽपराधम ।
विदितमविदितं वा, सर्वमेतत भमस्व।
जय जय करुणाब्धे, श्रीमहा-लक्ष्मि त्राहि। ।।
श्रीलक्ष्मी-देव्यै मन्त्र-पुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ||

मंत्र का अर्थः हे दया-सागर, श्रीलक्ष्मि! हाथों-पैरों द्वारा किए हुए या शरीर या कर्म से उत्पन्न, कानों-आंखों से उत्पन्न या मन के जो भी ज्ञात या अज्ञात मेरे अपराध हों, उन सबको आप क्षमा करें। आपकी जय हो, जय हो। मेरी रक्षा करें।

॥ भगवती श्रीलक्ष्मी के लिये मैं मन्त्र-पुष्पांजलि समर्पित करता हूँ ॥

साष्टांग-प्रणाम

ये मंत्र पढ़ते हुए श्रीलक्ष्मी को साष्टांग प्रणाम (प्रणाम जिसे आठ अंगों के साथ किया जाता है) कर नमस्कार करें।


ॐ भवानि ! त्वं महालक्ष्मीः सर्व काम प्रदायिनी।
प्रसन्ना सन्तुष्टा भव देवि नमोsस्तु ते। ।
।। अनेन पूजनेन श्रीलक्ष्मी देवी प्रीयताम्, नमो नमः ।।

मंत्र का अर्थः हे भवानी! आप सभी कामनाओं को देनेवाली महा-लक्ष्मी हैं। हे देवि! आप प्रसन्न और सन्तुष्ट हों। आपको नमस्कार।
॥ इस पूजन से श्रीलक्ष्मी देवी प्रसन्न हों, उन्हें बारम्बार नमस्कार ॥

क्षमा-प्रार्थना


ये मंत्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीलक्ष्मी से क्षमा-प्रार्थना करें।

आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम् ।।
पूजा-कर्म न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
मन्त्र-हीनं, क्रिया हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वरि।
मया यत पूजितं देवि ! परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
अनेन यथामिलितोपचार द्रव्यैः कृत-पूजनेन श्रीलक्ष्मी-देवी प्रीयताम्।
|| श्रीलक्ष्मी-देव्यै अर्पणमस्तु ।।


मंत्र का अर्थः न मैं आवाहन करना जानता हूं, न विसर्जन करना। पूजा-कर्म भी मैं नहीं जानता। हे परमेश्वरि! मुझे क्षमा करो। मंत्र, क्रिया और भक्ति से रहित जो कुछ पूजा मैंने की है, हे देवि! वह मेरी पूजा सम्पूर्ण हो।
यथा-संभव प्राप्त उपचार-वस्तुओं से मैंने जो यह पूजन किया है, उससे भगवती श्रीलक्ष्मी प्रसन्न हों।
॥ भगवती श्रीलक्ष्मी को यह सब पूजन समर्पित है ॥
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मां लक्ष्‍मी की आरती


ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता….
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।
जिस घर तुम रहती सब सद्‍गुण आता
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।
शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आनंद समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता…।।

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